प्रारंभिक जीवन
- जन्म का नाम - चंद्र मोहन जैन (11 दिसंबर, 1931, जबलपुर, मध्य प्रदेश)
- शिक्षा - जबलपुर यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की.
- युवावस्था अध्यात्म और दर्शन की खोज में समर्पित रही.
आचार्य रजनीश के रूप में स्थापित होना
- 1950 के दशक में जबलपुर यूनिवर्सिटी में अध्यापक के रूप में कार्य किया.
- 1953 में सन्यास लिया और आचार्य रजनीश के नाम से जाने गए.
- 1960 और 70 के दशक में पूरे भारत में व्याख्यान देकर प्रसिद्ध हुए.
- ध्यान और आत्म-साक्षात्कार पर उनके अनोखे विचारों ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई.
- तंत्र पर आधारित उनकी शिक्षाओं ने अनुयायियों को आकर्षित किया, वहीं रूढ़िवादी समाज के कुछ वर्गों द्वारा उनकी आलोचना भी हुई.
विदेश प्रवास और रजनीशपुरम
- 1981 में अमेरिका के ओरेगॉन राज्य में रजनीशपुरम नामक आश्रम की स्थापना की.
- यह आश्रम विवादों का केंद्र भी बना. अमेरिकी सरकार के साथ कानूनी पेच और विवादों के चलते 1985 में उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा.
ओशो के नाम से नया अध्याय
- 1988 में पुणे में आश्रम की स्थापना की, जिसे अब ओशो इंटरनेशनल ध्यान केंद्र के नाम से जाना जाता है.
- यहीं से "ओशो" नाम से उन्होंने अध्यात्मिक जगत में नया सफर शुरू किया.
- 19 जनवरी, 1990 को पुणे के आश्रम में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ.
विचारों और शिक्षाओं का सार
- आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक जागरण पर बल.
- ध्यान और विधायक ध्यान तकनीकों का प्रयोग.
- सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं को चुनौती देना.
- प्रेम, स्वतंत्रता, सचेतनता और आनंद पर जोर.
ओशो के आसपास विवाद
- ओशो की शिक्षाओं की आलोचना करने वालों का मानना था कि उनकी तंत्र पर आधारित शिक्षाएं और यौन से जुड़े उनके विचार समाज को नुकसान पहुंचाते हैं.
- उनका भौतिकवादी जीवनशैली और विवादास्पद आचरण भी आलोचना का विषय रहा.
ओशो की विरासत
- ओशो के समर्थक उन्हें एक विद्रोही गुरु मानते हैं, जिन्होंने धर्म और अध्यात्म की जटिलताओं को सरल शब्दों में समझाया.
- उनकी ध्यान पद्धतियां आज भी दुनियाभर में प्रचलित हैं और उनके द्वारा स्थापित आश्रम आध्यात्मिक साधकों को आकर्षित करता है.

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