चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 345 ईसा पूर्व माना जाता है। उनके बचपन की जानकारी सीमित है, लेकिन इतिहासकार बताते हैं कि उनका बचपन कठिनाइयों में बीता। कहा जाता है कि महान गुरु चाणक्य (कौटिल्य) ने उन्हें शिक्षा और मार्गदर्शन दिया। Chandragupta Maurya childhood और guru Chanakya relation आज भी ऐतिहासिक चर्चाओं का महत्वपूर्ण विषय है।
सत्ता का उदय
उस समय मगध साम्राज्य पर राजा धनानंद का शासन था। चाणक्य उनके अत्याचारों से नाराज थे और उन्होंने चंद्रगुप्त को एक महान योद्धा के रूप में तैयार किया। 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने मिलकर धनानंद को पराजित किया और Maurya Samrajya ki sthapna की। यह भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय था।
विजय अभियान और विस्तार
चंद्रगुप्त मौर्य महत्वाकांक्षी शासक थे। उन्होंने सिंध और पंजाब पर विजय प्राप्त की और Alexander the Great के सेनापतियों को हराकर उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर किया। Sapne me Alexander aur Chandragupta जैसी ऐतिहासिक घटनाएं भारत की ताकत को दर्शाती हैं। उन्होंने सिंधु नदी को साम्राज्य की पश्चिमी सीमा बनाया।
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रशासन
चंद्रगुप्त एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने चाणक्य के अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को लागू किया। उनके प्रशासन में कई विभाग, अधिकारी और मजबूत spy system था। चंद्रगुप्त मौर्य की प्रशासन व्यवस्था भारत के प्राचीन प्रशासन का सर्वोत्तम उदाहरण है।
साम्राज्य का वैभव
उनके शासनकाल में Maurya Empire चरम पर पहुँचा। यूनानी राजदूत Megasthenes ने चंद्रगुप्त के दरबार की समृद्धि का वर्णन किया। कला, स्थापत्य और संस्कृति को बढ़ावा मिला। यह काल भारत के golden era of history के रूप में जाना जाता है।
जैन धर्म और अंतिम वर्ष
जीवन के अंतिम वर्षों में चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म से प्रभावित हुए। उन्होंने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी और आचार्य भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत चले गए। 297 ईसा पूर्व में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में उन्होंने जैन सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
चंद्रगुप्त मौर्य की विरासत
चंद्रगुप्त मौर्य का योगदान भारतीय इतिहास में अमिट है।
- राजनीतिक विरासत: मौर्य साम्राज्य की स्थापना और एकीकृत भारत का निर्माण।
- प्रशासन: मजबूत और संगठित प्रशासनिक तंत्र।
- कूटनीति: यूनानी साम्राज्य से संधि और विदेश नीति में संतुलन।
- कला-संस्कृति: स्थापत्य और साहित्य का उत्कर्ष।
- धार्मिक सहिष्णुता: सभी धर्मों को समान सम्मान।
- शिक्षा: नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा केंद्रों को प्रोत्साहन।

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