दार्शनिक से राजनीतिक विचारक तक: जॉन लॉक का जीवन सफर! Biography of John Locke
John Locke Biography Hindi: जॉन लॉक के जीवन, शिक्षा, रचनाओं और अनुभववाद, प्राकृतिक अधिकार व लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर उनका प्रभाव जानें।

जीवनी Last Update Fri, 28 March 2025, Author Profile Share via
जॉन लॉक का बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
जॉन लॉक का जन्म 29 अगस्त 1632 को इंग्लैंड के रिंगटन में हुआ था। उनका परिवार मध्यम वर्गीय था और उनके पिता, जॉन लॉक सीनियर, एक वकील और अंग्रेज़ गृह युद्ध के दौरान संसदीय सेना में कैप्टन थे। उनके पिता की यह भूमिका उनके राजनीतिक विचारों और भविष्य की सोच को प्रभावित करने वाली रही।
जॉन लॉक का बचपन एक शांत और सरल वातावरण में बीता। उनकी शिक्षा की शुरुआत घर पर ही हुई, जहाँ उनके पिता ने उन्हें पढ़ाई के प्रति रुचि विकसित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्थानीय स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की और फिर 1647 में वेस्टमिंस्टर स्कूल, लंदन में दाखिला लिया। यहाँ उनकी शैक्षणिक योग्यता और बौद्धिक विकास की नींव पड़ी।
उनका परिवार धार्मिक था और पुरातनपंथी दृष्टिकोण रखता था। इस पारिवारिक धार्मिक परिवेश ने भी लॉक के दर्शन और विचारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। जॉन लॉक का परिवार उनके जीवन में आत्म-निर्भरता और स्वतंत्रता के महत्व को समझाता रहा, जो आगे चलकर उनकी राजनीतिक और शैक्षिक सिद्धांतों में परिलक्षित हुआ।
लॉक ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्हें दर्शनशास्त्र, विज्ञान और चिकित्सा में गहरी रुचि विकसित हुई।
जॉन लॉक की प्रारंभिक शिक्षा
जॉन लॉक की औपचारिक शिक्षा की शुरुआत उनके पिता द्वारा घर पर कराई गई, जिसके बाद 1647 में उन्होंने वेस्टमिंस्टर स्कूल, लंदन में दाखिला लिया। यह स्कूल उस समय के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक था और यहाँ उन्होंने शास्त्रीय शिक्षा (लैटिन, ग्रीक और इतिहास) में अपनी नींव रखी। वेस्टमिंस्टर स्कूल में उनकी पढ़ाई ने उनके बौद्धिक विकास और तर्कशक्ति के कौशल को मजबूत किया।
जॉन लॉक की ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा
1652 में जॉन लॉक ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के क्राइस्ट चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया। ऑक्सफोर्ड में उनका अनुभव मिश्रित था; उन्होंने अरस्तू की पारंपरिक दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया, लेकिन इसे कुछ हद तक रूढ़िवादी और उबाऊ पाया। इसके बावजूद, उन्होंने तर्कशास्त्र, नैतिकता और राजनीति के सिद्धांतों का गहन अध्ययन किया, जो उनके भविष्य के दर्शन के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ।
जॉन लॉक की प्राकृतिक विज्ञान और चिकित्सा में रुचि
ऑक्सफोर्ड में अध्ययन के दौरान, लॉक की रुचि सिर्फ दर्शनशास्त्र तक सीमित नहीं रही। उन्होंने रॉबर्ट बॉयल और थॉमस विलिस जैसे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर प्राकृतिक विज्ञान और चिकित्सा का भी अध्ययन किया। चिकित्सा में उनकी यह रुचि भविष्य में उनके अनुभववाद (Empiricism) और मनोविज्ञान पर आधारित विचारों में परिलक्षित हुई। 1674 में, उन्होंने चिकित्सा में बैचलर ऑफ मेडिसिन की डिग्री प्राप्त की।
रॉबर्ट बॉयल और अन्य वैज्ञानिकों के साथ विचार-विनिमय
ऑक्सफोर्ड में अपने समय के दौरान, लॉक का वैज्ञानिक और दार्शनिक विचार-विनिमय रॉबर्ट बॉयल जैसे वैज्ञानिकों के साथ हुआ। बॉयल के यांत्रिक दर्शन और वैज्ञानिक पद्धति ने जॉन लॉक को अनुभववाद की ओर प्रेरित किया, जिसमें तर्क और अनुभव के आधार पर ज्ञान को महत्त्व दिया जाता है।
बौद्धिक नींव और अनुभववाद की ओर रुझान
ऑक्सफोर्ड में शिक्षा के दौरान, लॉक का बौद्धिक विकास प्रमुख रूप से अनुभववाद और प्राकृतिक कानून के सिद्धांतों की ओर हुआ। उनका मानना था कि सभी ज्ञान अनुभव पर आधारित होता है, जो आगे चलकर उनकी प्रसिद्ध कृति "An Essay Concerning Human Understanding" में विस्तारित हुआ। उनकी शिक्षा और ऑक्सफोर्ड में बिताया गया समय उनके दर्शनशास्त्र की बुनियाद बना।
जॉन लॉक के अध्ययन और शिक्षा के ये प्रारंभिक वर्ष उनके बौद्धिक विचारों और सिद्धांतों के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण थे, जो आगे चलकर आधुनिक राजनीति, समाजशास्त्र और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सहायक बने।
जॉन लॉक की शिक्षा और अनुसंधान: शैक्षणिक नियुक्तियाँ
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षण
जॉन लॉक की शैक्षिक यात्रा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उनकी पढ़ाई के बाद भी जारी रही। 1660 के दशक में, उन्होंने क्राइस्ट चर्च कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ग्रीक भाषा, नैतिकता और दर्शनशास्त्र के शिक्षक (Lecturer) के रूप में काम करना शुरू किया। हालाँकि, उन्हें परंपरागत अरस्तूवादी दर्शनशास्त्र से असंतोष था, लेकिन अपने विद्यार्थियों को नैतिकता और तर्कशास्त्र की शिक्षा देने का काम जारी रखा। ऑक्सफोर्ड में उनका शिक्षण कार्य उनकी बौद्धिक क्षमता और दर्शनशास्त्र में उनकी गहरी रुचि को प्रतिबिंबित करता है।
अनुसंधान और चिकित्सा में योगदान
लॉक न केवल दर्शनशास्त्र बल्कि विज्ञान और चिकित्सा में भी रुचि रखते थे। 1668 में उन्होंने रॉयल सोसाइटी के एक सदस्य के रूप में रॉबर्ट बॉयल, थॉमस सिडेनहैम और अन्य प्रमुख वैज्ञानिकों के साथ मिलकर वैज्ञानिक शोध किया। चिकित्सा में उनका योगदान मुख्य रूप से रोगों के निदान और चिकित्सा पद्धतियों पर आधारित था। उनका चिकित्सकीय दृष्टिकोण रोगियों के व्यावहारिक इलाज पर केंद्रित था, जिसे उन्होंने अनुभववाद के सिद्धांत के आधार पर विकसित किया।
एंथनी एशले कूपर के सचिव के रूप में कार्य
लॉक का सबसे महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक और व्यावहारिक योगदान तब हुआ जब उन्होंने 1667 में एंथनी एशले कूपर, जो आगे चलकर लॉर्ड शैफ्ट्सबरी बने, के निजी सचिव और चिकित्सक के रूप में कार्य किया। इस भूमिका में, उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक मामलों पर अनुसंधान और लेखन किया। लॉक ने शैफ्ट्सबरी की सेवा में रहते हुए "Two Treatises of Government" और "Essay Concerning Human Understanding" जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों पर काम किया, जो उनके राजनीतिक और दार्शनिक विचारों की नींव बनीं।
राजनीतिक और शैक्षिक विचारों का विकास
शैफ्ट्सबरी के साथ काम करने के दौरान लॉक ने राजनीति, सरकार और शिक्षा के अपने विचारों को और परिपक्व किया। उनकी पुस्तक "Some Thoughts Concerning Education" ने आधुनिक शिक्षा पर गहरा प्रभाव डाला। इसमें उन्होंने तर्कसंगत सोच, नैतिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्त्व पर जोर दिया, जो उनके अनुभववाद पर आधारित दर्शन का ही विस्तार था।
रॉयल सोसाइटी की सदस्यता
1688 में लॉक को रॉयल सोसाइटी का सदस्य बनाया गया, जहाँ उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान, चिकित्सा और राजनीति के विषयों पर गहन चर्चा और शोध किया। यह सदस्यता उनकी शैक्षणिक प्रतिष्ठा को और बढ़ाने के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समर्थन देने का प्रमाण थी।
जॉन लॉक का शिक्षण और अनुसंधान कार्य उनके दार्शनिक विचारों और सिद्धांतों की नींव था। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उनके शिक्षण कार्य से लेकर रॉयल सोसाइटी में उनके वैज्ञानिक अनुसंधान तक, लॉक ने अपने समय के प्रमुख बौद्धिक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शिक्षण और अनुसंधान ने न केवल उनके समय के राजनीतिक और शैक्षिक ढांचे को बदल दिया, बल्कि आज के समाज और शिक्षा व्यवस्था को भी प्रभावित किया।
जॉन लॉक के विचारों पर डेसकार्टेस और हॉब्स का प्रभाव
1. रेने डेसकार्टेस का प्रभाव
फ्रांसीसी दार्शनिक रेने डेसकार्टेस (René Descartes) ने तर्कसंगतता और द्वैतवाद (Dualism) के अपने सिद्धांतों के माध्यम से यूरोप के दार्शनिक वातावरण को प्रभावित किया। हालांकि जॉन लॉक का दर्शन अनुभववाद (Empiricism) पर आधारित था, फिर भी डेसकार्टेस के विचारों का उन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है।
डेसकार्टेस का यह मानना था कि ज्ञान के स्रोत के रूप में तर्कशक्ति (Reason) सबसे प्रमुख है, जबकि लॉक का मानना था कि सभी ज्ञान अनुभव से उत्पन्न होता है। दोनों के बीच यह अंतर स्पष्ट है, लेकिन डेसकार्टेस ने लॉक को एक बुनियादी सवाल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया: "मनुष्य कैसे जानता है कि वह क्या जानता है?" डेसकार्टेस की "Cogito, ergo sum" (मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ) की धारणा ने लॉक को अपनी प्रसिद्ध कृति "An Essay Concerning Human Understanding" लिखने की प्रेरणा दी, जिसमें लॉक ने ज्ञान के स्रोतों पर अपने अनुभववादी दृष्टिकोण को विस्तारित किया।
लॉक ने डेसकार्टेस के "आदर्शवादी" दृष्टिकोण को नकारते हुए यह तर्क दिया कि मनुष्य जन्म से "Tabula Rasa" (कोरा पृष्ठ) लेकर आता है और अनुभव के माध्यम से उसके विचार और ज्ञान का निर्माण होता है। इस प्रकार, डेसकार्टेस की तर्कवादी पद्धति से प्रेरणा लेते हुए, लॉक ने अनुभव को ज्ञान का मूल स्रोत माना।
2. थॉमस हॉब्स का प्रभाव
अंग्रेज़ दार्शनिक थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes) का जॉन लॉक पर राजनीतिक विचारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव था। हॉब्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति "Leviathan" में यह तर्क दिया था कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी और संघर्षशील होते हैं और इसलिए, एक मजबूत सरकार की आवश्यकता होती है जो लोगों को नियंत्रित करे और कानून और व्यवस्था बनाए रखे।
हालांकि लॉक ने हॉब्स के "स्वाभाविक राज्य" (State of Nature) की अवधारणा को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने हॉब्स की निरंकुश सरकार की आवश्यकता के विचार का विरोध किया। हॉब्स का मानना था कि मनुष्य को नियंत्रित करने के लिए एक सर्वशक्तिमान शासक की आवश्यकता होती है, जबकि लॉक का दृष्टिकोण अधिक सकारात्मक था। लॉक ने तर्क दिया कि स्वाभाविक राज्य में लोग तर्कसंगत होते हैं और प्राकृतिक अधिकारों (जैसे जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति) का सम्मान करते हैं।
लॉक के राजनीतिक सिद्धांतों पर हॉब्स के विचारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, लेकिन लॉक ने इसे एक उदार और लोकतांत्रिक ढांचे में प्रस्तुत किया। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य लोगों के प्राकृतिक अधिकारों की सुरक्षा करना है और यदि सरकार इन अधिकारों का हनन करती है, तो लोगों को उसे बदलने का अधिकार है।
जॉन लॉक के विचारों पर डेसकार्टेस और हॉब्स दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा, लेकिन उन्होंने इन दोनों के विचारों से हटकर अपने अनुभववादी और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का विकास किया। डेसकार्टेस ने उन्हें ज्ञान की प्रकृति पर सोचने के लिए प्रेरित किया, जबकि हॉब्स ने उन्हें राजनीतिक सिद्धांतों को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ाया। हालांकि, अंततः लॉक ने तर्कशक्ति और अनुभव, स्वाभाविक अधिकार और सरकार के बीच संतुलन स्थापित किया, जो आधुनिक दार्शनिक और राजनीतिक विचारों के विकास में अहम साबित हुआ।
जॉन लॉक की प्रमुख रचनाएँ और सिद्धांत
जॉन लॉक, आधुनिक दार्शनिक और राजनीतिक चिंतन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनके सिद्धांत और रचनाएँ पश्चिमी दर्शनशास्त्र, राजनीति और समाजशास्त्र पर गहरा प्रभाव डालती हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ और सिद्धांत इस प्रकार हैं:
1. "An Essay Concerning Human Understanding" (1690)
यह लॉक की सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक कृति है, जिसमें उन्होंने ज्ञान के अनुभववादी (Empiricist) सिद्धांत को विकसित किया। इस पुस्तक में उनके प्रमुख सिद्धांत हैं:
Tabula Rasa (कोरा पृष्ठ):
लॉक ने कहा कि मनुष्य का मस्तिष्क जन्म के समय एक खाली पृष्ठ की तरह होता है, जिस पर अनुभव और बाहरी दुनिया के संपर्क के माध्यम से ज्ञान लिखा जाता है। उन्होंने यह विचार जन्मजात ज्ञान (Innate Ideas) के खिलाफ प्रस्तुत किया, जो उस समय के प्रमुख दार्शनिक दृष्टिकोणों में से एक था।
ज्ञान का स्रोत:
लॉक ने तर्क दिया कि सभी ज्ञान अनुभव से आता है। हमारे पास केवल दो प्रकार के अनुभव होते हैं:
संवेदी अनुभव (Sensation)
अंतःप्रज्ञा (Reflection)
इन दोनों के माध्यम से ही हम किसी भी जानकारी को प्राप्त करते हैं।
2. "Two Treatises of Government" (1690)
यह पुस्तक राजनीति और सरकार पर लॉक के विचारों की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। इसमें उनके प्रमुख सिद्धांत हैं:
प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights):
लॉक ने तर्क दिया कि हर व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का प्राकृतिक अधिकार होता है। इन अधिकारों का स्रोत कोई सरकार नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से मानव अस्तित्व होता है।
सामाजिक अनुबंध (Social Contract):
लॉक के अनुसार, सरकार का गठन एक सामाजिक अनुबंध के तहत होता है, जिसमें लोग अपनी स्वेच्छा से अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए सरकार को सत्ता सौंपते हैं। यदि सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो लोगों को उसे हटाने का अधिकार है।
लोकतांत्रिक सिद्धांत:
लॉक का मानना था कि सरकार लोगों की सहमति से ही वैध होती है। इस सिद्धांत ने आधुनिक लोकतंत्र और संविधान की नींव रखी।
3. "A Letter Concerning Toleration" (1689)
इस पुस्तक में लॉक ने धार्मिक सहिष्णुता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार को धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और हर व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
धार्मिक स्वतंत्रता:
लॉक ने कहा कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का मामला है और इसे राज्य से अलग रखा जाना चाहिए। यह विचार चर्च और राज्य के अलगाव की नींव बना।
4. "Some Thoughts Concerning Education" (1693)
इस पुस्तक में लॉक ने बच्चों की शिक्षा और नैतिक विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उनके शिक्षा संबंधी प्रमुख सिद्धांत थे:
शारीरिक और मानसिक अनुशासन:
लॉक का मानना था कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को तर्कसंगत और नैतिक बनाना है। उन्होंने व्यक्तिगत अनुशासन और नैतिकता पर जोर दिया।
अनुभव आधारित शिक्षा:
उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को अनुभव के माध्यम से सिखाया जाना चाहिए और शिक्षा को उनके वास्तविक जीवन के अनुभवों के साथ जोड़ना चाहिए।
5. अनुभववाद (Empiricism) का सिद्धांत
लॉक का सबसे बड़ा योगदान अनुभववाद का सिद्धांत था। उन्होंने कहा कि सभी ज्ञान अनुभव से प्राप्त होता है और मनुष्य के पास जन्मजात कोई ज्ञान नहीं होता। यह विचार बाद में डेविड ह्यूम और जॉर्ज बर्कली जैसे दार्शनिकों ने और भी विकसित किया।
6. मन और शरीर का द्वैतवाद
लॉक ने मन और शरीर के बीच द्वैतवाद के विचार को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि मनुष्य का मस्तिष्क और उसका अनुभव ज्ञान का स्रोत होते हैं, जबकि शरीर और इंद्रियाँ ज्ञान के माध्यम होती हैं।
जॉन लॉक की रचनाएँ और सिद्धांत आधुनिक दर्शनशास्त्र, राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक प्रभावशाली रहे हैं। उनके अनुभववाद, प्राकृतिक अधिकार और लोकतांत्रिक सिद्धांतों ने न केवल उनके समय के विचारकों और दार्शनिकों को प्रभावित किया, बल्कि आज भी उनके विचार मानव अधिकारों, स्वतंत्रता और लोकतंत्र की बुनियाद माने जाते हैं।
जॉन लॉक का स्वास्थ्य और निधन
जॉन लॉक का जीवन स्वास्थ्य समस्याओं से भरा रहा। उनके जीवन के अंतिम वर्षों में उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा, जिससे उन्हें सार्वजनिक जीवन और लेखन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके स्वास्थ्य और अंतिम बीमारी के बारे में निम्नलिखित विवरण दिए जा सकते हैं:
1. स्वास्थ्य समस्याएँ
लॉक का स्वास्थ्य बचपन से ही कमजोर था। उन्हें सांस लेने में दिक्कतें होती थीं, जो उनके जीवनभर बनी रहीं।
अस्थमा और श्वसन संबंधी समस्याएँ:
लॉक को अस्थमा की बीमारी थी, जिससे उन्हें नियमित रूप से सांस लेने में परेशानी होती थी। इन समस्याओं के कारण उन्हें कई बार सार्वजनिक जीवन से दूर रहना पड़ा और उन्होंने एकांत में जीवन बिताना पसंद किया।
चिकित्सा में रुचि:
अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लॉक ने चिकित्सा विज्ञान में गहरी रुचि ली और ऑक्सफोर्ड में चिकित्सा का अध्ययन किया। वह प्रसिद्ध चिकित्सक थॉमस सिडेनहैम के साथ काम भी करते थे।
2. अंतिम बीमारी
लॉक के जीवन के अंतिम वर्षों में उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ और गंभीर हो गईं। विशेष रूप से उनकी श्वसन संबंधी समस्याओं और अस्थमा ने उनकी जीवनशैली को सीमित कर दिया।
निवृत्ति:
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, उन्होंने अधिकतर समय ग्रामीण इलाकों में बिताया। वह अपने करीबी दोस्त लेडी मैशम के घर में रहने लगे, जहाँ उन्होंने काफी शांतिपूर्ण समय व्यतीत किया।
अंतिम लेखन:
हालाँकि उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था, फिर भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता और लेखन का काम जारी रखा। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक लेखन किया, लेकिन उनकी सेहत ने उन्हें अधिक सक्रिय रूप से काम करने से रोक दिया।
3. निधन (28 अक्टूबर 1704)
लगातार स्वास्थ्य समस्याओं और गंभीर अस्थमा के कारण 28 अक्टूबर 1704 को जॉन लॉक का इंग्लैंड के एस्सेक्स में लेडी मैशम के घर में निधन हो गया।
शांतिपूर्ण मृत्यु:
माना जाता है कि उनका निधन शांतिपूर्ण तरीके से हुआ था। उनके निधन के समय वे 72 वर्ष के थे।
अंतिम दिनों में शांति:
जीवन के अंतिम दिनों में लॉक ने धर्म और दर्शन पर चिंतन किया। उनका मानना था कि जीवन का उद्देश्य स्वतंत्रता, न्याय और नैतिकता को बनाए रखना है और उन्होंने इसी दृष्टिकोण के साथ अपना जीवन व्यतीत किया।
जॉन लॉक का स्वास्थ्य जीवनभर कमजोर रहा, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी दार्शनिक और राजनीतिक रचनाओं के माध्यम से गहरी छाप छोड़ी। उनकी अंतिम बीमारी ने उनके शारीरिक जीवन को सीमित कर दिया, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी जीवित हैं और आधुनिक दार्शनिक और राजनीतिक चिंतन पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
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