कबीर दास जीवन परिचय और दोहे! Kabir Das Biography in Hindi, 30+ Dohe Arth Sahit
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥ कबीर दास मुख्य रूप से अपनी सरल, भक्तिमय कविताओं के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें "पद" या "दोहे" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सरल भाषा का प्रयोग किया ताकि उनका संदेश सभी वर्गों के लोगों तक पहुंच सके।
जीवनी By ADMIN, Last Update Mon, 22 July 2024, Share via
कबीर दास का जन्म और पालन-पोषण
कबीर दास का जन्म और पालन-पोषण एक रहस्यमय विषय है। उनके जन्म के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, लेकिन कोई निश्चित जानकारी नहीं है।
जन्म:
- समय: 1440 ईस्वी के आसपास
- स्थान: काशी (वाराणसी)
- माता-पिता: अज्ञात
- जन्म के बारे में किंवदंतियां:
- एक विधवा ब्राह्मणी ने उन्हें जन्म दिया और उन्हें गंगा नदी में बहा दिया।
- एक नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने उन्हें नदी किनारे से उठाया और उनका पालन-पोषण किया।
- कबीर दास स्वयं एक कमल के फूल से प्रकट हुए थे।
कबीर दास के जन्म और पालन-पोषण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- उनके जन्म के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है।
- उन्हें नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने पाला-पोसा।
- उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, लेकिन वे ज्ञानी और आध्यात्मिक रूप से विकसित हुए।
- वे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों से प्रभावित थे।
- उन्होंने सरल जीवन जीना सीखा और कर्मठता का महत्व समझा।
कबीर दास का जन्म और पालन-पोषण भले ही रहस्यमय हो, लेकिन उनके जीवन और शिक्षाओं ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है। उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करती रहेगी.
कबीर दास की शिक्षा और आध्यात्मिक विकास
कबीर दास का जीवन शिक्षा और आध्यात्मिक विकास से भरा रहा। उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, लेकिन उन्होंने जीवन भर ज्ञान अर्जित किया और आध्यात्मिक रूप से विकसित हुए।
शिक्षा:
- औपचारिक शिक्षा का अभाव
- विभिन्न संतों और गुरुओं से ज्ञान प्राप्ति
- हिंदी, संस्कृत, फारसी और अरबी भाषाओं का ज्ञान
- रमैनी, तुलसीदास और सूरदास जैसे समकालीन कवियों से संपर्क
आध्यात्मिक विकास:
- भक्ति और कर्म का समन्वय
- सामाजिक न्याय और समानता पर ज़ोर
- सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश
- सरल जीवन और उच्च नैतिकता का महत्व
कबीर दास की शिक्षा और आध्यात्मिक विकास के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- विभिन्न स्रोतों से ज्ञान: उन्होंने विभिन्न संतों, गुरुओं, धार्मिक ग्रंथों और जीवन अनुभवों से ज्ञान प्राप्त किया।
- भक्ति और कर्म का समन्वय: उन्होंने भक्ति और कर्म को एक दूसरे से जुड़ा हुआ माना। उनका मानना था कि ईश्वर प्राप्ति के लिए कर्म करना आवश्यक है।
- सामाजिक न्याय और समानता: उन्होंने जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव की कटु आलोचना की। उन्होंने सभी मनुष्यों को समान माना और सामाजिक न्याय और समानता का आह्वान किया।
- सहिष्णुता और भाईचारा: उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों के बीच सद्भाव का उपदेश दिया। उनका मानना था कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर विभिन्न मार्ग हैं।
- सरल जीवन और उच्च नैतिकता: उन्होंने सरल जीवन जीने और उच्च नैतिक मूल्यों को अपनाने का महत्व बताया।
कबीर दास की कविता की विशेषताएं:
- सरल भाषा: उन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग किया, जो उस समय आम जनता की भाषा थी।
- प्रतीकों और उपमाओं का प्रयोग: उन्होंने अपनी कविताओं में दैनिक जीवन से जुड़े प्रतीकों और उपमाओं का प्रयोग किया, जिससे उनकी बात पाठकों के मन तक सीधे पहुँचती थी।
- भक्ति भाव: उनकी अधिकांश रचनाएँ ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत हैं। उन्होंने ईश्वर को प्रेममय, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान के रूप में चित्रित किया।
- सामाजिक आलोचना: उन्होंने अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त बुराइयों, जैसे जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, पाखंड और ढोंग की कड़ी आलोचना की।
- नैतिक उपदेश: उन्होंने सत्य, अहिंसा, दया, ईमानदारी और कर्म जैसे नैतिक मूल्यों का उपदेश दिया।
कबीर दास का साहित्यिक योगदान:
- हिंदी भाषा का विकास: उनकी सरल और प्रभावी भाषा ने हिंदी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भक्ति आंदोलन: उन्होंने भक्ति आंदोलन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, जिसने भारत में ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति पर जोर दिया।
- सामाजिक सुधार: उनके सामाजिक सुधार कार्यों ने भारतीय समाज में जातिवाद, छुआछूत और अन्य कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का मार्ग प्रशस्त किया।
- साहित्यिक योगदान: उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर मानी जाती हैं। उनकी सरल भाषा, गहरे अर्थ और सामाजिक संदेश आज भी प्रासंगिक हैं।
कबीर दास की कुछ प्रमुख रचनाएँ:
- बीजक: यह कबीर दास की प्रमुख रचना है, जिसमें लगभग 1200 पद संग्रहित हैं।
- साखी: ये दो पंक्तियों वाली छोटी कविताएँ हैं जिनमें गहरे अर्थ छिपे होते हैं।
- उलटबाँसी: ये पहेलीनुमा रचनाएँ हैं जिनमें गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं।
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1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: जब मैं दुनिया में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने अंदर झांका, तो खुद को सबसे बुरा पाया।
2. बड़े हुए तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
अर्थ: खजूर का पेड़ कितना भी ऊंचा हो जाए, वह किसी को छाया नहीं देता और उसके फल इतने ऊपर होते हैं कि आसानी से तोड़े नहीं जा सकते। उसी तरह आप कितने भी बड़े आदमी बन जाएं, लेकिन आपके अंदर विनम्रता नहीं है और आप किसी की मदद नहीं करते हैं, तो आपके बड़े होने का कोई फायदा नहीं है।
3. साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥
अर्थ: हे भगवान, मुझे इतना ही दीजिए कि मैं और मेरा परिवार भूखा न रहे, और कोई भी गरीब या ज़रूरतमंद मेरे दरवाजे से भूखा न जाए।
4. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए॥
अर्थ: चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी रो पड़े। चक्की के दो पाटों के बीच में कोई भी चीज पूरी नहीं बच पाती। इस दोहे के माध्यम से कबीर संसार की नश्वरता और जीवन की अनिश्चितता का वर्णन करते हैं।
5. मन चंगा तो कठिन क्या, रे मन चंगा तो। सब जग जंगी होय, गंगा जमुना गोदा॥
अर्थ: यदि मन शुद्ध है तो कोई भी कार्य कठिन नहीं है। यदि मन शुद्ध है तो संसार की सभी नदियाँ (गंगा, यमुना, गोदावरी) एक जैसी लगती हैं।
6. माटी कहे कुम्हार को, तू क्या रोंदे मोहि। एक दिन मैं भी करूंगी, राजा तेरे सोहि॥
अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्यों सता रहा है? एक दिन मैं भी तुझे राजा बना दूंगी। इस दोहे के माध्यम से कबीर संसार के चक्र का वर्णन करते हैं, जहाँ ऊँचा नीचा होता रहता है।
7. जाति-पाँति पूछे नहि, कोई हरि को भजै। चारो खान पांचो मेवा, सबहिं को एक रसा दे॥
अर्थ: भगवान किसी की जाति या धर्म नहीं पूछते। वह चारों दिशाओं से आने वाली हवा और पाँचों प्रकार के फलों का स्वाद सभी को समान रूप से देता है।
8. दुनियाँ देखी बहुँ विधि, सब हीं मतवारे। कोई धन में, कोई रूप में, कोई संसार प्यारे॥
अर्थ: मैंने दुनिया को कई तरह से देखा है, हर कोई किसी न किसी चीज में मतवाला है। कोई धन में लिप्त है, कोई रूप में, और कोई संसार में।
9. सोच विचार कर ले मन, एहि तन की है क्या आस। आज हंसता, कल रोता, एक दिन सब होयेंगे नाश॥
अर्थ: हे मन, सोच विचार कर, इस शरीर का क्या भरोसा है? आज हंस रहा है, कल रोएगा, एक दिन सब मिट्टी में मिल जाएंगे।
10. निर्गुण राम नाम ही, सदा रहे मन माँहि। दुःख सुख सब सम रहो, तजहिं लोभ अभिमान॥
अर्थ: निराकार राम का नाम ही सदैव मन में रहे। सुख और दुख में समान रहो, और लोभ और अभिमान को त्याग दो।
11. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
अर्थ: सिर्फ किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। असली ज्ञान प्रेम के दो अक्षरों को समझने में है।
12. साँची भक्ति ऐसा कर, निंदा न कर किसी की। आप हीं सुधरो आप हीं, राम राहे सब थोरी॥
अर्थ: सच्ची भक्ति दूसरों की निंदा करने में नहीं है। खुद को सुधारो और राम का रास्ता हर किसी के लिए खुला है।
13. जो तू ब्राह्मण, ब्राह्मणी का जाया। आन बाट काहे नहीं आया॥
अर्थ: यदि तू ब्राह्मण है और ब्राह्मणी की संतान, तो फिर भेदभाव का रास्ता क्यों अपनाता है?
14. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ: कल का काम आज कर लो, आज का काम अभी कर लो। कब मौत आ जाए, यह कोई नहीं जानता।
15. सबै संसार काहे का, जो रैदास को प्रेम न लागे॥
अर्थ: संसार का सारा वैभव व्यर्थ है, अगर उसमें रैदास को (भगवान को) प्रेम न जगे।
16. संत कबीर सोई सदा, जिसके हृदय राम॥
अर्थ: वही सच्चा संत है, जिसके हृदय में राम का वास हो।
17. ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग॥
अर्थ: जैसे तिल में तेल होता है और चकमक में आग, वैसे ही तेरा ईश्वर भी तेरे अंदर ही है। जागृत हो जाओ और उसे पहचानो।
18. माया मरी चिंता मरी, क्रोध मर्यो अभिमान। कहता कबीर सुनो भाई, यही सच्चा ज्ञान॥
अर्थ: जब माया मिट जाती है, तो चिंता भी मिट जाती है। क्रोध और अभिमान भी मिट जाते हैं। कबीर कहते हैं कि यही सच्चा ज्ञान है।
19. बोली तो सो बोलिये, मन का अँधियारा टलै। झूठ न बोले कभी भी, पर हित की ही चलै॥
अर्थ: बोलो तो ऐसी बोलो कि मन का अंधकार दूर हो जाए। कभी झूठ न बोलो, और सिर्फ अच्छे कामों की बात करो।
20. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
अर्थ: यह शरीर विष की बेल जैसा है, और गुरु ज्ञान का अमृत का खजाना है। अगर गुरु मिल जाए तो उसके चरणों में सिर झुकाना सस्ता सौदा है।
21. जो पर दुःख देखि हंसै, तिस पर क्रोध करे कोई। कहै कबीर वाही के घर, आपा आप मिटै सोई॥
अर्थ: जो दूसरों के दुःख में हंसता है, और कोई उस पर क्रोध करता है। कबीर कहते हैं कि वही व्यक्ति वास्तव में बुद्धिमान माना जा सकता है, जो अपने अहंकार को मिटा देता है।
22. बड़े बड़े घर ऊँचे महल, जोवन धन सम्पत्ति। एक दिन सब छिनहिं जाहिं, लेहुगे साथ कफन कफ़नी॥
अर्थ: बड़े-बड़े घर, ऊंचे महल, जवानी, धन और संपत्ति - सब कुछ एक दिन चला जाएगा। सिर्फ कफन ही आपके साथ जाएगा।
23. सब हीं जल में मीन है, कोई बाहर कोई भीतर। कहै कबीर सो जागता, जो हरि नाम जपै सदा॥
अर्थ: सभी मछली पानी में हैं, कोई बाहर है, कोई अंदर। कबीर कहते हैं, वही जागता है जो हमेशा भगवान का नाम जपता है।
24. दुःख में सुख में एक रहो, मन संतोषी राखो। कहै कबीर दुःख सुख दोनों, राम की ही लीला॥
अर्थ: सुख-दुख में एक समान रहो, मन को संतुष्ट रखो। कबीर कहते हैं कि सुख और दुख दोनों ही राम की लीला हैं।
25. संतोषी सुखी सदा, लोभी दुःखी सदा। कहै कबीर संतोष ही, सब सुख का कारण॥
अर्थ: संतुष्ट व्यक्ति हमेशा खुश रहता है, लालची व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है। कबीर कहते हैं कि संतोष ही सब सुख का कारण है।
26. ज्ञान बिना वैराग्य क्या, ज्ञान बिना वैराग्य। अंधा कुआँ में पड़े, क्या करेगा वैराग्य॥
अर्थ: ज्ञान के बिना वैराग्य क्या है? यह एक अंधे आदमी के कुएं में गिरने जैसा है। तब वैराग्य का क्या फायदा?
27. कबीर सोई जगत में, जे सब सनमुख राखै। अपने को राखे नीचा, सब सिर ऊँचा राखै॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि दुनिया में वही व्यक्ति सफल होता है जो सभी का सम्मान करता है। वह खुद को नीचा रखता है और सबका सिर ऊंचा रखता है।
28. सब हीं ज्ञानी कहलावे, ज्ञान बिना बहुतेरे। कहै कबीर ज्ञान को, अँधेरे में दीपक करे॥
अर्थ: हर कोई ज्ञानी कहलाना चाहता है, लेकिन बहुत से ज्ञान के बिना होते हैं। कबीर कहते हैं कि ज्ञान अंधेरे में दीपक के समान है।
29. सब तजि एकहि ध्यावहिं, राम नाम सार। कहै कबीर दुःख मिटै, सुख उपजै निरधार॥
अर्थ: सब कुछ त्याग कर एक ही चीज का ध्यान करें - राम नाम। कबीर कहते हैं कि ऐसा करने से निश्चित रूप से दुःख दूर होगा और सुख प्राप्त होगा।
30. जगत में सबै पंछी हैं, माया का जाल बिछा। कहै कबीर सतगुरु मिले, तभी छूटै फाँसा॥
अर्थ: दुनिया में सभी पंछी हैं, जो माया के जाल में फंसे हुए हैं। कबीर कहते हैं कि केवल एक सच्चा गुरु ही आपको इस जाल से निकालने में मदद कर सकता है।
कबीर दास के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. कबीर दास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
कबीर दास के जन्म का सही समय और स्थान स्पष्ट नहीं है। माना जाता है कि उनका जन्म 1440 ईस्वी के आसपास हुआ था, कुछ इतिहासकार 1455 ईस्वी भी बताते हैं। जन्मस्थान को लेकर भी विवाद है, कुछ लोग मानते हैं कि वह लहरतपुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पैदा हुए थे, जबकि अन्य उनका जन्मस्थान काशी (वर्तमान वाराणसी) बताते हैं।
2. कबीर दास किस धर्म से संबंधित थे?
कबीर दास किसी खास धर्म से नहीं जुड़े थे। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की आलोचना की और एक सर्वोच्च ईश्वर की उपासना का संदेश दिया। उनका मानना था कि सच्चा धर्म प्रेम और भक्ति में है, रीति-रिवाजों में नहीं।
3. कबीर दास की रचनाओं की भाषा कौन सी थी?
कबीर दास की रचनाओं की भाषा खड़ी बोली का प्रारंभिक रूप मानी जाती है। उन्होंने उस समय की जनभाषा का प्रयोग किया, जिसमें खड़ी बोली के साथ अवधी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं का भी मिश्रण था। उनकी रचनाओं की सरल भाषा आम लोगों को भी समझने में आसान थी।
4. कबीर दास की रचनाओं का मुख्य विषय क्या था?
कबीर दास की रचनाओं का मुख्य विषय भक्ति, सद्गुरु की महिमा, सामाजिक बुराइयों की आलोचना और सच्चे धर्म का उपदेश था। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया।
5. कबीर दास की कौन सी रचनाएँ सबसे प्रसिद्ध हैं?
कबीर दास की कई रचनाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें प्रमुख रूप से बीजक, साखी, पद और रहस्य शामिल हैं। बीजक उनकी प्रमुख रचना है, जिसमें उनकी अधिकांश रचनाएँ संकलित हैं।