स्वामी विवेकानंद: भारत के आध्यात्मिक योद्धा, संन्यासी और विचारक! Swami Vivekananda
पढ़ें स्वामी विवेकानंद के संघर्षमय जीवन और कार्यों के बारे में, जिन्होंने शिकागो में हिंदू धर्म का गौरव बढ़ाया और भारत को सशक्त राष्ट्र बनाने का सपना देखा।
जीवनी By ADMIN, Last Update Sun, 06 October 2024, Share via
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- जन्म तिथि: 12 जनवरी, 1863
- जन्म स्थान: कलकत्ता (कोलकाता), भारत
स्वामी विवेकानंद का जन्म एक ऐसे वकील परिवार में हुआ था जो आधुनिक विचारों और आध्यात्मिकता में समान रूप से विश्वास रखता था। बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के धनी नरेन्द्र अध्यात्म और दर्शन के प्रति गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन किया, साथ ही विज्ञान और पश्चिमी विचारधाराओं में भी रुचि दिखाई।
जीवन परिचय:
- जन्म: 12 जनवरी, 1863
- जन्म का नाम: नरेन्द्र नाथ दत्त
- जन्म स्थान: कलकत्ता, भारत
- गुरु: रामकृष्ण परमहंस
- मृत्यु: 4 जुलाई, 1902
विवेकानंद के संघर्षमय जीवन और कार्यों के बारे में-
बौद्धिक जिज्ञासा: बचपन से ही, नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) अध्यात्म और दर्शन में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने विभिन्न धर्मों और दर्शनों का अध्ययन किया और सत्य की खोज में लगे रहे।
रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात: 1881 में, नरेंद्र की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई, जिन्होंने उनके गुरु बन गए। रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में, नरेंद्र ने आध्यात्मिक साधना की और आत्मज्ञान प्राप्त किया।
सन्यास ग्रहण: 1886 में, नरेंद्र ने सन्यास ग्रहण कर लिया और स्वामी विवेकानंद नाम धारण किया। उन्होंने अपना जीवन ईश्वर की प्राप्ति और मानव सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
शिकागो धर्म सम्मेलन: 1893 में, स्वामी विवेकानंद को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। अपने ऐतिहासिक भाषण "Sisters and Brothers of America" से उन्होंने वेदांत दर्शन का सार पश्चिमी जगत के सामने रखा और भारत की संस्कृति एवं सभ्यता का परिचय कराया।
विश्व व्यापी प्रचार: शिकागो में सफलता के बाद, स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका और यूरोप में व्यापक रूप से वेदांत का प्रचार किया। उन्होंने कई वेदांत केंद्र स्थापित किए और पश्चिमी जगत को भारतीय आध्यात्मिकता से परिचित कराया।
राष्ट्रवाद का प्रणेता: स्वामी विवेकानंद ने भारत के युवाओं को आत्मनिर्भरता, कर्मठता और राष्ट्रभक्ति का संदेश दिया। उन्होंने भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति पर बल दिया और युवाओं को राष्ट्र निर्माण में योगदान करने के लिए प्रेरित किया।
वेदांत का सरल व्याख्यान: स्वामी विवेकानंद वेदांत के जटिल दर्शन को सरल भाषा में समझाते थे। उन्होंने बताया कि वेदांत केवल आध्यात्मिक साधना का मार्ग नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने का भी उपदेश देता है।
योग्य संगीतकार: स्वामी विवेकानंद बचपन से ही संगीत में पारंगत थे। उन्हें ध्रुपद शैली में प्रशिक्षित किया गया था और वह अक्सर अपने भाषणों में संगीत का इस्तेमाल करते थे।
अंग्रेजी व्याकरण में कमजोर: यह चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद अंग्रेजी व्याकरण में शुरुआत में कमजोर थे। उन्होंने स्नातक स्तर की परीक्षा में अंग्रेजी में केवल 50% अंक प्राप्त किए। हालांकि, उन्होंने बाद में अपनी वाक्पटुता और प्रभावी लेखन शैली के लिए ख्याति अर्जित की।
31 बीमारियों से जूझना: अपने छोटे जीवनकाल में, स्वामी विवेकानंद को 31 विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ा। हालांकि, उन्होंने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और सकारात्मक दृष्टिकोण के बल पर इन चुनौतियों को पार किया।
भविष्यवाणी: स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी कि वह 40 साल से अधिक नहीं जिएंगे। यह भविष्यवाणी 1902 में 39 वर्ष की आयु में उनके निधन के साथ सच साबित हुई।
पश्चिमी प्रभाव: स्वामी विवेकानंद पश्चिमी विचारों और दर्शन से अच्छी तरह परिचित थे। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया और अपने विचारों को विकसित करने में इसका उपयोग किया।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना: 1897 में, स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक शिक्षा का प्रसार करना और समाज सेवा करना है। रामकृष्ण मिशन आज भी दुनिया भर में सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यों में सक्रिय है।
अद्वैत वेदांत का प्रचारक: स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत वेदांत दर्शन का सार्वभौमिक संदेश दिया। उन्होंने बताया कि यह दर्शन सभी धर्मों का सार है और सभी मनुष्यों में ईश्वरत्व का अंश विद्यमान है।
कठोर परिश्रम और अनुशासन: स्वामी विवेकानंद अत्यधिक परिश्रमी और अनुशासित थे। वह दिन में कई घंटे अध्ययन और साधना करते थे। उन्होंने दूसरों को भी कठिन परिश्रम और आत्म-अनुशासन के महत्व पर बल दिया।
विनम्र स्वभाव: स्वामी विवेकानंद अपने विनम्र स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे। वह सभी धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान करते थे और दूसरों के विचारों को सुनने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
अमर प्रेरणा: स्वामी विवेकानंद के विचार और आदर्श आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। उनका "उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्त करो" का संदेश आज भी प्रासंगिक है और लोगों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
प्रकृति प्रेमी: स्वामी विवेकानंद प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे। वह अक्सर प्रकृति की गोद में ध्यान लगाते और ऊर्जा प्राप्त करते थे। उन्होंने हिमालय की यात्राओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि प्रकृति ईश्वर का मंदिर है।
कुशल वक्ता और लेखक: स्वामी विवेकानंद अपनी प्रभावी वाक्पटुता और लेखन शैली के लिए जाने जाते थे। उनके भाषणों में गहरी दार्शनिकता, हास्य, और जोश का सम्मिश्रण होता था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था।
पश्चिमी संस्कृति से परिचय: स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका और यूरोप में रहने के दौरान पश्चिमी संस्कृति और दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने पश्चिमी विचारकों के कार्यों को पढ़ा और उनसे संवाद किया।
खेलों में रुचि: यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि स्वामी विवेकानंद को बचपन में खेलों में भी रुचि थी। वह कुश्ती, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेल खेलते थे।
आधुनिक विचारधाराओं का समर्थक: स्वामी विवेकानंद आधुनिक वैज्ञानिक खोजों और प्रगति के समर्थक थे। उनका मानना था कि आधुनिक विज्ञान और आध्यात्मिकता का समन्वय होना चाहिए
सामाजिक सुधारों के पक्षधर: स्वामी विवेकानंद जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे। उन्होंने समाज में समानता लाने और महिलाओं के सशक्तीकरण का समर्थन किया।
विनोदप्रिय स्वभाव: स्वामी विवेकानंद गंभीर विचारक होने के साथ-साथ विनोदप्रिय भी थे। वह अक्सर हास्य-व्यंग्य का प्रयोग करते थे और अपने आसपास के लोगों को खुश रखने का प्रयास करते थे
आत्मनिर्भरता का प्रचार: स्वामी विवेकानंद ने हमेशा आत्मनिर्भरता और कर्मठता पर बल दिया। उन्होंने भारतीय युवाओं को आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
वैश्विक नागरिक की अवधारणा: स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रवाद के साथ-साथ वैश्विक नागरिक होने की अवधारणा को भी प्रचारित किया। उनका मानना था कि सभी मनुष्य एक हैं और विश्व बंधुत्व का निर्माण करना चाहिए।
सतत अध्ययनशील: स्वामी विवेकानंद जीवन भर ज्ञान प्राप्त करने के लिए समर्पित रहे। वह विभिन्न विषयों का अध्ययन करते थे और नए विचारों को अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
स्वामी विवेकानंद का नाटककार के रूप में प्रयास: कम ही लोगों को पता है कि स्वामी विवेकानंद नाटक लेखन में भी रुचि रखते थे। उन्होंने 1884 में "The Life of Raja Ramkrishna" नामक एक नाटक लिखा था, जो उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर आधारित था। हालांकि, यह नाटक कभी मंचित नहीं हो पाया।
स्वामी विवेकानंद और अल्पज्ञात भाषाओं का ज्ञान: स्वामी विवेकानंद संस्कृत, हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं के जानकार थे। लेकिन, उनकी भाषा क्षमता यहीं तक सीमित नहीं थी। वे अरबी, फारसी और जर्मन जैसी भाषाओं को भी समझने और बोलने में सक्षम थे।
स्वामी विवेकानंद की वैज्ञानिक जिज्ञासा: आध्यात्मिकता के प्रचारक होने के बावजूद, स्वामी विवेकानंद विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भी गहरी रुचि रखते थे। उनका मानना था कि विज्ञान और आध्यात्मिकता का समन्वय मानव जीवन के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम खोजों का अध्ययन किया और अपने विचारों को विकसित करने में उनका उपयोग किया।
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स्वामी विवेकानन्द के जीवन से जुड़ी कहानियाँ
1- कठिन यात्रा और अप्रत्याशित सहायता
शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद यूरोप होते हुए अमेरिका जा रहे थे। यात्रा लंबी और कठिन थी। जहाज पर भोजन साधारण और सीमित था, जिससे स्वामी विवेकानंद कमजोर पड़ने लगे। उनके पास ज्यादा धन भी नहीं था।
एक दिन, जहाज पर यात्रा करते समय, स्वामी विवेकानंद को अचानक तेज बुखार आ गया। उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन जहाज पर कोई डॉक्टर नहीं था। साथी यात्री भी उनकी ज्यादा मदद नहीं कर पा रहे थे।
कुछ देर बाद, एक बुजुर्ग अमेरिकी महिला स्वामी विवेकानंद के पास आईं। उन्होंने उनकी दशा देखी और पूछा कि उन्हें क्या तकलीफ है। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें बताया कि उन्हें बुखार है और उनके पास दवाइयां भी नहीं हैं।
महिला ने सहानुभूतिपूर्वक उन्हें आश्वासन दिया और अपने केबिन से कुछ दवाइयां लाकर दीं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की देखभाल भी की। कुछ देर बाद, दवाओं का असर हुआ और स्वामी विवेकानंद को थोड़ा आराम मिला।
जब स्वामी विवेकानंद स्वस्थ हो गए, तो उन्होंने महिला का आभार व्यक्त किया। महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, "आप किसी संत जैसे लगते हैं। आपकी मदद करना मेरे लिए खुशी की बात है।"
स्वामी विवेकानंद उस महिला की दयालुता से प्रभावित हुए। उन्होंने महसूस किया कि मानवता की भावना हर जगह मौजूद है, और मुश्किल समय में अप्रत्याशित सहायता मिल सकती है।
यह छोटी सी घटना स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक बन गई। इसने उन्हें मानवता में विश्वास और दूसरों की मदद करने के महत्व का पाठ पढ़ाया।
2- बंदरों का सामना: साहस और बुद्धि का परिचय
स्वामी विवेकानंद एक बार हिमालय की यात्रा पर निकले थे। पहाड़ों की ऊंचाइयों पर ध्यान लगाते हुए वह एकांत स्थान की तलाश में थे। रास्ते में उन्हें एक सुनसान मंदिर दिखाई दिया। वह वहां रुकने का फैसला कर मंदिर के प्रांगण में बैठ गए।
कुछ देर बाद, वहां बंदरों का एक झुंड आ गया। वे शोर मचाते हुए स्वामी विवेकानंद के पास इधर-उधर कूदने लगे। बंदरों की हरकतों से स्वामी विवेकानंद की समाधि भंग हो गई। उन्होंने बंदरों को जाने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने। बल्कि, उनकी चीख-चोट और हरकतें और बढ़ गईं।
आसपास कोई न होने के कारण स्वामी विवेकानंद असहाय महसूस करने लगे। तभी उन्हें पास में ही एक वृद्ध संन्यासी दिखाई दिए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को देखा और उनकी स्थिति समझ ली।
वृद्ध संन्यासी ने स्वामी विवेकानंद से कहा, "डरो मत! उनका सामना करो।"
यह सुनकर स्वामी विवेकानंद थोड़ा चौंके। उन्होंने सोचा कि बंदरों का सामना करना खतरनाक हो सकता है। लेकिन वृद्ध संन्यासी के शब्दों में दृढ़ता थी।
स्वामी विवेकानंद ने हिम्मत जुटाई और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे। उन्होंने जोर से आवाज निकाली और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। बंदरों को उनके इस आत्मविश्वासपूर्ण व्यवहार से अचानक झटका लगा। वे कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गए, फिर धीरे-धीरे पीछे हटने लगे।
कुछ ही देर में, बंदरों का पूरा झुंड वहां से भाग गया। स्वामी विवेकानंद राहत का सांस लेते हुए वृद्ध संन्यासी के पास गए और उनका आभार व्यक्त किया।
वृद्ध संन्यासी ने मुस्कुराते हुए कहा, " कभी-कभी डर का सामना करने के लिए साहस की नहीं, बल्कि थोड़ी सी बुद्धि की जरूरत होती है।"
यह घटना स्वामी विवेकानंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण सीख बन गई। उन्होंने सीखा कि मुश्किल परिस्थितियों में डरने के बजाय, बुद्धि और साहस का परिचय देना चाहिए।
3- एक अविस्मरणीय सबक: गरीब महिला की उदारता
स्वामी विवेकानंद एक बार ग्रामीण इलाकों में भ्रमण कर रहे थे। धूप तेज थी और उन्हें प्यास लगने लगी। एक छोटे से गांव में पहुंचकर उन्होंने एक गरीब महिला से पानी मांगा। महिला झोपड़ी के अंदर गई और मिट्टी के घड़े में थोड़ा सा पानी लेकर बाहर आईं।
स्वामी विवेकानंद ने पानी लिया और पीने लगे। पानी पीने के बाद उन्होंने महिला को धन्यवाद दिया और पूछा, "यह पानी आपने कहां से लाया?"
महिला ने बताया कि गांव में सूखा पड़ा है और पानी बहुत कम बचा है। यह पानी उन्होंने अपने बच्चों के लिए रखा था।
स्वामी विवेकानंद उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गए। उन्होंने महसूस किया कि महिला ने अपनी जरूरतों को दरकिनार कर उनकी प्यास बुझाई है। उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने महिला से कहा, "माताजी, आपने मुझे जो अमूल्य उपहार दिया है, उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।"
कुछ देर बाद, स्वामी विवेकानंद गांव से निकलने लगे। जाते समय उन्होंने महिला को कुछ दान देना चाहा, लेकिन महिला ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, "स्वामी जी, आपका आशीर्वाद ही मेरे लिए सबसे बड़ा दान है।"
स्वामी विवेकानंद गांव से निकल तो गए, लेकिन महिला की उदारता उनके दिल में गहरी छाप छोड़ गई। उन्होंने महसूस किया कि सच्ची दयालुता और त्याग किसी के पास कितना भी कम हो, वह दूसरों के जीवन में कितना बड़ा बदलाव ला सकता है।
यह घटना स्वामी विवेकानंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण सबक बन गई। उन्होंने सीखा कि दान-दक्षिणा की राशि महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि देने वाले का भाव और त्याग की भावना मायने रखती है।
4- टूटी हुई मूर्ति और आत्मिक जागरण
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। एक बार, रामकृष्ण परमहंस मंदिर में स्थित कृष्ण की मूर्ति टूट गई। यह घटना पूरे मठ में शोक का कारण बनी। शिष्यों में से कई दुखी और क्रोधित थे।
स्वामी विवेकानंद, जो उस समय नरेन्द्र के नाम से जाने जाते थे, इस घटना से अविचलित रहे। उन्होंने शांत भाव से टूटी हुई मूर्ति को देखा और कहा, "देखो, अब कृष्ण बाहर आ गए हैं। पहले वह सिर्फ पत्थर की मूर्ति थे, अब वह इस मंदिर की दीवारों में, पेड़ों में, हर जगह विद्यमान हैं।"
नरेन्द्र के इन शब्दों को सुनकर रामकृष्ण परमहंस मुस्कुराए। उन्होंने समझाया कि ईश्वर सर्वव्यापक है और किसी एक मूर्ति या स्थान तक सीमित नहीं है। टूटी हुई मूर्ति ईश्वर के अस्तित्व को नकारती नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाती है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है।
यह घटना नरेन्द्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। उन्होंने इस अनुभव से आध्यात्मिक जागरण का अनुभव किया और ईश्वर की सर्वव्यापकता को गहराई से समझा। उन्होंने महसूस किया कि ईश्वर की प्राप्ति बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभूति में निहित है।
यह कहानी हमें यह सीख देती है कि जीवन में होने वाली घटनाओं को हम किस नजरिए से देखते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। नकारात्मक घटनाओं में भी सकारात्मक सीख निहित हो सकती है, और वही हमें आध्यात्मिक विकास की ओर ले जा सकती है।
5- जहाज पर प्रवचन: आश्चर्य और प्रशंसा
शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद जहाज से यात्रा कर रहे थे। जहाज पर विभिन्न देशों और धर्मों के लोग सवार थे। स्वामी विवेकानंद को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जहाज पर धार्मिक चर्चा करने के लिए कोई स्थान नहीं है।
उन्होंने जहाज के अधिकारियों से अनुरोध किया कि उन्हें यात्रियों को कुछ धार्मिक प्रवचन देने की अनुमति दी जाए। अधिकारियों ने पहले तो हिचकिचाया, लेकिन स्वामी विवेकानंद के आग्रह पर उन्होंने उन्हें एक कमरा उपलब्ध करा दिया।
निर्धारित समय पर स्वामी विवेकानंद कमरे में पहुंचे। वहां पहले से ही कुछ यात्री इंतजार कर रहे थे। उन्होंने वेदांत दर्शन के बारे में सरल और प्रभावी ढंग से बात की। उनके ओजस्वी वक्तव्य और गहरे ज्ञान ने उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
प्रवचन के बाद, यात्रियों ने स्वामी विवेकानंद की जमकर प्रशंसा की। विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद से कई सवाल पूछे और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान पाया।
कुछ दिनों बाद, जहाज के अधिकारियों ने स्वामी विवेकानंद को सूचित किया कि यात्रियों की मांग को देखते हुए उन्हें जहाज के डेक पर प्रवचन देने की अनुमति दी गई है। अब बड़ी संख्या में लोग उनके प्रवचन सुनने के लिए आते थे।
यह जहाज पर हुआ प्रवचन स्वामी विवेकानंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई। इस अनुभव ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि आध्यात्मिक ज्ञान की सभी को आवश्यकता है, और इसे विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोगों के बीच साझा किया जाना चाहिए। उन्होंने महसूस किया कि सार्वभौमिक सत्य की भाषा सभी को समझ आती है, और यह भाषा प्रेम, करुणा और मानवता की है।
स्वामी विवेकानंद के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। उनका जन्म नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था।
2. स्वामी विवेकानंद को ये उपाधि किसने दी और क्यों?
उनके गुरु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें विवेकानंद नाम दिया। "विवेक" का अर्थ है बुद्धि और "आनंद" का अर्थ है आनंद। स्वामी रामकृष्ण को लगा कि नरेन्द्र को दुनिया को ज्ञान का प्रसार करना चाहिए।
3. स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध क्यों हुए?
1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अपने प्रभावशाली भाषण के कारण वे विश्व प्रसिद्ध हुए। अपने भाषण में उन्होंने हिंदू धर्म के सार को पश्चिमी जगत के सामने रखा और भारत के वैभवशाली अतीत की याद दिलाई।
4. स्वामी विवेकानंद की मुख्य शिक्षाएं क्या थीं?
- वेदांत दर्शन: उन्होंने वेदांत दर्शन के सार को सरल भाषा में बताया, जो आत्मज्ञान और ईश्वर प्राप्ति पर जोर देता है।
- विश्व बंधुत्व: उन्होंने पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखने का संदेश दिया और धर्मों के बीच सहिष्णुता की बात की।
- कर्मयोग: उन्होंने कर्म पर ध्यान देने और कर्मफल की चिंता न करने की शिक्षा दी।
- नारी शक्ति: उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण पर बल दिया और उनका मानना था कि राष्ट्र की प्रगति के लिए महिला शिक्षा जरूरी है।
5. स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना क्यों की?
उन्होंने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन का उद्देश्य गरीबों की सेवा करना, शिक्षा का प्रसार करना और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना था।