14 जनवरी मकर संक्रांति: भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्व
14 जनवरी मकर संक्रांति: यह लेख मकर संक्रांति के धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक महत्व को उजागर करता है। देशभर में इसे विभिन्न नामों जैसे लोहड़ी, पोंगल और खिचड़ी के साथ...
रोचक तथ्य Last Update Sun, 12 January 2025, Author Profile Share via
14 जनवरी मकर संक्रांति: भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्व
14 जनवरी भारत के इतिहास और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो मकर संक्रांति के रूप में मनाई जाती है। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ने का प्रतीक है। इसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति को हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ता है। उत्तरायण का समय शुभ माना जाता है और इसे देवताओं का दिन कहा जाता है। यह बदलाव दिन को लंबा और रात को छोटा करने का प्रतीक है। मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे पापों का नाश और पुण्य प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।
विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से उत्सव
1. पंजाब - लोहड़ी
14 जनवरी के एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है। यह त्योहार फसल कटाई के बाद खुशी का प्रतीक है। लोग अलाव जलाकर गाने गाते हैं और भांगड़ा करते हैं।
2. गुजरात और राजस्थान - उत्तरायण
गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। पतंगबाजी का यह उत्सव पूरे देश में प्रसिद्ध है और लोग "काई पो चे" के नारे लगाते हैं।
3. तमिलनाडु - पोंगल
तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है। यह फसल कटाई का त्योहार है और इस दौरान नई फसल से तैयार पोंगल नामक मिठाई बनाई जाती है।
4. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक - संक्रांति
इन राज्यों में मकर संक्रांति को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव परिवार के साथ मिलकर मनाया जाता है और मिठाई, खासतौर पर तिल और गुड़ से बनी वस्तुएँ बांटी जाती हैं।
5. महाराष्ट्र - मकर संक्रांति
महाराष्ट्र में लोग तिल और गुड़ से बनी मिठाई "तिलगुल" बांटते हैं और कहते हैं, "तिलगुल घ्या, गोड गोड बोला (तिल-गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो)"। यह मीठे संबंधों का प्रतीक है।
6. उत्तर प्रदेश और बिहार - खिचड़ी
उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। लोग स्नान करके सूर्य देव की पूजा करते हैं। खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
7. पश्चिम बंगाल - पौष संक्रांति
पश्चिम बंगाल में इसे पौष संक्रांति कहा जाता है। इस दिन तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। गंगा सागर मेले का भी विशेष महत्व है।
8. असम - भोगाली बिहू
असम में इसे भोगाली बिहू के रूप में मनाया जाता है। यह फसल कटाई का त्योहार है और इसे खाने-पीने और उत्सव का समय माना जाता है।
पौराणिक कथाएँ और लोककथाएँ
भीष्म पितामह: महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का समय चुना।
सूर्य और शनि: सूर्य देव इस दिन अपने पुत्र शनि से मिलने आते हैं। यह पिता-पुत्र के संबंधों का प्रतीक है।
संस्कृति और परंपराएँ
तिल और गुड़: यह संयोजन गर्मी और ऊर्जा का प्रतीक है।
दान का महत्व: इस दिन दान करने से विशेष पुण्य मिलता है।
पतंग उत्सव: पतंग उड़ाना जीवन के उत्थान का प्रतीक है।
14 जनवरी भारतीय संस्कृति का एक ऐसा दिन है जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कृषि और प्रकृति के साथ हमारी सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली का भी प्रतीक है। यह पूरे देश में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, लेकिन सबका उद्देश्य एक है - प्रकृति का सम्मान, परिवार और समाज के साथ मेलजोल, और जीवन में सकारात्मकता लाना।
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