सम्राट अकबर और उनके सलाहकार बीरबल के किस्से! 5+ Akbar and Birbal Short Story in Hindi with Moral
आपका स्वागत है मुगल भारत की मनमोहक दुनिया में, जहां चतुराई बुद्धि से मिलती है और इंसाफ अपना परचम लहराता है! आइए हमारे साथ सम्राट अकबर और उनके सलाहकार, बुद्धिमान बीरबल की अमर कहानियों की गहराई में उतरें. Akbar and Birbal Short Stories-
कहानियाँ By ADMIN, Last Update Tue, 23 July 2024, Share via
अकबर और बीरबल के किस्से: कहानी- 1
शहंशाह अकबर को अपने दरबार में बुद्धिमान और चतुर मंत्री बीरबल पर बहुत भरोसा था. एक दिन, अकबर ने बीरबल को बुलाया और पूछा, "बीरबल, पूरे राज्य में सबसे सच्चा सौदागर कौन है?"
बीरबल ने जवाब दिया, "जहांपनाह, सच्चे सौदागर को पहचानने के लिए हमें एक परीक्षा लेनी होगी."
अकबर को ये बात जंची. उन्होंने बीरबल को परीक्षा लेने की अनुमति दे दी.
बीरबल ने पूरे राज्य में एक घोषणा करवाई. "शहंशाह अकबर एक अनोखी चीज खरीदना चाहते हैं, जो कभी खोती नहीं है. जो भी इसे बेचना चाहता है, वह दरबार में उपस्थित हो!"
घोषणा सुनकर राज्य भर के सौदागर दरबार में इकट्ठा हो गए. हर कोई ये अनोखी चीज बेचने का दावा कर रहा था. कुछ ने रेशमी कपड़े लाए, तो कुछ ने हीरे-जवाहरात. लेकिन बीरबल ने किसी को भी मंजूरी नहीं दी.
आखिर में, एक साधारण सा दिखने वाला बूढ़ा दरबार में आया. उसके हाथ में कुछ नहीं था. अकबर ने पूछा, "तुम क्या बेचना चाहते हो?"
बूढ़े ने शांत स्वर में कहा, "जहांपनाह, मैं वक्त बेचना चाहता हूं."
यह सुनकर सब सौदागर हंसने लगे. अकबर भी हैरान रह गए. बीरबल ने आगे बढ़कर कहा, "जहांपनाह, यही सच्चा सौदागर है. वक्त ही एक ऐसी चीज है जो कभी खोती नहीं है और जिसका सदुपयोग अमूल्य होता है."
अकबर को बीरबल की बात समझ में आ गई. उन्होंने बूढ़े को सम्मानित किया और उसे राज्य का सबसे सच्चा सौदागर घोषित किया.
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्ची दौलत धन-दौलत नहीं, बल्कि हमारा समय है. समय का सही सदुपयोग ही सफलता की कुंजी है. इसे व्यर्थ गंवाना सबसे बड़ा नुकसान है.
कहानी- 2 अकबर और बीरबल के किस्से: सच्ची मित्रता
शहंशाह अकबर को अपने दरबार में चहल-पहल और मजाक बहुत पसंद था. एक दिन उन्होंने बीरबल को बुलाया और कहा, "बीरबल, क्या तुम जानते हो कि सच्ची मित्रता किसे कहते हैं?"
बीरबल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "जहांपनाह, सच्ची मित्रता को परखने के लिए एक छोटा सा प्रयोग किया जा सकता है."
अकबर को ये बात मंजूर हुई. उन्होंने बीरबल को प्रयोग करने की अनुमति दे दी.
बीरबल ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि शहंशाह अकबर को एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की जरूरत है. जो भी उन्हें उधार देगा, उसे दोगुना लौटाया जाएगा.
यह सुनकर राज्य भर के लोग दरबार में स्वर्ण मुद्राएं लेकर पहुंचने लगे. हर कोई सम्राट को उधार देकर दोगुना मुनाफा कमाने का लालच कर रहा था. लेकिन बीरबल ने किसी को भी स्वीकृति नहीं दी.
आखिरकार, बीरबल का एक गरीब मित्र दरबार में आया. उसके पास सिर्फ दस स्वर्ण मुद्राएं थीं. उसने बीरबल को बताया कि वह सम्राट को उधार देना चाहता है.
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा, "मित्र, सम्राट को हजार स्वर्ण मुद्राओं की जरूरत है. तुम्हारे पास तो सिर्फ दस हैं."
गरीब मित्र ने जवाब दिया, "बीरबल, मित्रता स्वार्थ के लिए नहीं होती. जरूरत के समय थोड़ा देना भी बहुत होता है."
बीरबल उस गरीब मित्र की सच्ची मित्रता से बहुत प्रभावित हुआ. उसने अकबर को सारी बात बताई. अकबर को भी गरीब मित्र की ईमानदारी और निस्वार्थ भाव पसंद आया.
उन्होंने उस गरीब मित्र को सम्मानित किया और उसे राज्य का सबसे सच्चा मित्र घोषित किया. साथ ही, उन्होंने उसे दस हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में दीं.
इस कहानी से सीख मिलती है कि सच्ची मित्रता स्वार्थ पर नहीं, बल्कि निस्वार्थ भाव और जरूरत के समय साथ देने पर टिकी होती है. सच्चा मित्र वही होता है जो आपके सुख-दुख में हमेशा आपके साथ खड़ा रहता है.
कहानी- 3 अकबर और बीरबल के किस्से: सच बोलने का फल
शहंशाह अकबर को अपने राज्य में सच्चाई का बहुत महत्व था. एक दिन, दरबार में एक किसान आया और रोते हुए बोला, "जहांपनाह, किसी ने मेरी गाय चुरा ली है. अब मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा?"
अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि चोर को ढूंढा जाए. बीरबल ने सोचा और एक तरकीब निकाली. उन्होंने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी खोई हुई गाय वापस लाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा.
घोषणा सुनकर, असली चोर घबरा गया. वह सोचने लगा कि कहीं कोई उसे देख न ले. वह बीरबल के पास गया और बोला, "मैं गाय वापस ला सकता हूं, लेकिन मुझे इनाम का आधा चाहिए."
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन पहले गाय को वापस लाओ." चोर खुशी-खुशी जाकर किसान की गाय वापस ले आया.
बीरबल ने चोर को पकड़ लिया और दरबार के सामने खड़ा कर दिया. उन्होंने अकबर से कहा, "जहांपनाह, असली चोर यही है. इसने मुझे पहले ही गाय वापस लाने का सौदा किया था."
चोर सफाई देने लगा, लेकिन कोई भी उसकी बात नहीं मानने वाला था. अकबर ने चोर को कड़ी सजा दी और किसान को उसकी गाय वापस लौटा दी. साथ ही, उन्होंने बीरबल की बुद्धिमानी की प्रशंसा की.
इस कहानी से सीख मिलती है कि सच बोलने का हमेशा फल मिलता है. झूठ बोलकर या चोरी करके मिली खुशी क्षणिक होती है, लेकिन सच बोलकर आप न सिर्फ सम्मान पाते हैं बल्कि मुसीबतों से भी बच सकते हैं.
कहानी- 4 अकबर और बीरबल के किस्से: अनोखा मेहमान
एक दिन, दरबार में अकबर उदास बैठे थे. बीरबल ने उन्हें परेशान देखकर पूछा, "जहांपनाह, आपको क्या हुआ?"
अकबर ने कहा, "बीरबल, कल रात मुझे एक अजीब सपना आया. सपने में मैंने देखा कि एक आदमी मेरे महल में घुसा और मुझे गाली देने लगा. मैं बहुत गुस्से में था, लेकिन उसे पकड़ नहीं पाया."
बीरबल ने सोचकर कहा, "जहांपनाह, ये कोई बुरा सपना नहीं है. दरअसल, ये आने वाले समय की चेतावनी हो सकती है."
अकबर चौंक गए. उन्होंने पूछा, "तो क्या करना चाहिए?"
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा, "जहांपनाह, कल रात के मेहमान की खातिरदारी करवाएं. महल के हर कोने में स्वादिष्ट भोजन और आराम करने की जगह तैयार करवाएं."
अकबर को बीरबल की बात समझ नहीं आई, लेकिन उन्होंने फिर भी वैसा ही करने का आदेश दिया.
अगली रात, महल के पहरेदारों ने शोर सुना. उन्होंने देखा कि एक आदमी महल में घुसने की कोशिश कर रहा है. पहरेदारों ने उसे पकड़ लिया और अकबर के सामने ले आए.
वह आदमी कोई चोर नहीं, बल्कि एक दरबारी कवि था. वह रात को शराब के नशे में महल में घुस आया था. अकबर उसे सजा देने वाले थे, लेकिन बीरबल ने उन्हें रोक लिया.
बीरबल ने कहा, "जहांपनाह, ये वही आदमी है जो आपके सपने में आया था. कल रात के मेहमान की तरह उसे खाना दीजिए और सुबह माफी मांगने के लिए कहिए."
अकबर ने बीरबल की बात मानी. कवि को खाना खिलाया गया और सुबह माफी मांगने को कहा गया. कवि ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और अकबर से माफी मांगी.
अकबर को बीरबल की सूझबूझ पर गर्व हुआ. उन्होंने कवि को माफ कर दिया और उसे शराब न पीने की नसीहत दी.
इस कहानी से सीख मिलती है कि हर परिस्थिति में बुद्धि से काम लेना चाहिए. गुस्से में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए और गलती करने वालों को सुधरने का मौका देना चाहिए.
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कहानी- 5 अकबर और बीरबल के किस्से: सच्चा न्याय
शहंशाह अकबर अपने दरबार में न्याय को सर्वोपरि मानते थे. एक दिन, उनके दरबार में दो व्यक्ति आए. उनमें से एक धनी व्यापारी था और दूसरा गरीब किसान.
धनी व्यापारी ने रोते हुए कहा, "जहांपनाह, इस गरीब किसान ने मेरा सोने का हार चुरा लिया है." किसान ने अपनी बेगुनाही बताई, लेकिन व्यापारी के पास हार चोरी होने का सबूत था.
अकबर परेशान थे. सबूत व्यापारी के पक्ष में था, लेकिन उन्हें किसान पर भी शक हो रहा था. उन्होंने बीरबल की तरफ देखा.
बीरबल ने आगे बढ़कर कहा, "जहांपनाह, सच्चा न्याय करने के लिए हमें थोड़ा प्रयोग करना होगा." उन्होंने दोनों को एक-एक खाली बोरी दी और कहा, "आप दोनों अपने घर जाकर इन बोरियों में मिट्टी भरकर लाएं."
व्यापारी और किसान अपने-अपने घर चले गए. थोड़ी देर बाद वापस आए. व्यापारी की बोरी भरी हुई थी, जबकि किसान की बोरी आधी ही भरी थी.
बीरबल ने दोनों की बोरियों को ध्यान से देखा. फिर व्यापारी की तरफ मुखातिब होकर बोले, "तुम इतने धनी व्यापारी हो, फिर भी तुम्हारी बोरी पूरी नहीं भरी? लगता है चोर कोई और है."
व्यापारी घबरा गया. दरअसल, उसने चोरी का आरोप किसान पर लगाकर, असली चोरी को छुपाने की कोशिश की थी. उसकी बोरी में सोने का हार छिपा हुआ था, जिसके कारण उसका वजन ज्यादा था.
अपनी चालाकी पकड़ी जाते देख व्यापारी ने सच बता दिया. उसने किसान से माफी मांगी और अकबर ने उसे कड़ी सजा सुनाई. किसान को बेगुनाह घोषित कर दिया गया.
इस कहानी से सीख मिलती है कि सच्चाई हमेशा सामने आती है. हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और न्याय हमेशा सत्य पर आधारित होना चाहिए.