बूढ़े कलाकार का स्पर्श!
राजा रवि एक शक्तिशाली सम्राट थे. उन्हें अपने राज्य में वैभव और कला का प्रदर्शन बहुत पसंद था. हर साल राजधानी में एक कला उत्सव का आयोजन होता था, जहां देश भर के सबसे प्रतिभाशाली कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे.
इस साल उत्सव में मूर्तिकला, चित्रकला और नृत्य जैसी कई विधाओं के कलाकार आए थे. राजा रवि हर कलाकार की प्रशंसा कर रहे थे. तभी उन्हें एक कोने में एक बूढ़ा आदमी बैठा दिखा. उसके सामने सिर्फ रंग और ब्रश रखे थे.
राजा रवि उस बूढ़े के पास गए और पूछा, "तुम भी कोई कलाकार हो?"
बूढ़े ने सिर हिलाया.
राजा रवि ने पूछा, "तुम क्या बना रहे हो? मुझे तुम्हारी कला देखनी है."
बूढ़ा मुस्कुराया और बोला, "महाराज, मैं कुछ नहीं बना रहा हूँ. मैं सिर्फ रंगों को महसूस कर रहा हूँ."
राजा रवि चौंक गए. "रंगों को महसूस करना? ऐसा कैसे?"
बूढ़े ने आगे बताया, "महाराज, आंखें ही कला देखने का एकमात्र तरीका नहीं हैं. हर रंग की अपनी खुशबू, अपनी बनावट होती है. मैं अपनी उंगलियों से रंगों को छूकर उनकी कहानी सुनता हूँ."
राजा रवि को बूढ़े की बात अजीब लगी, पर उसकी जिज्ञासा भी जगी. उन्होंने बूढ़े को महल में रहने का निमंत्रण दिया. महल में हर रोज बूढ़ा रंगों को छूकर उनकी कहानियां सुनाता. कभी हसीन वादियों की, कभी उमड़ते तूफानों की. राजा रवि को बूढ़े की कला में एक अलग ही तरह का सौंदर्य नजर आने लगा.
सच्ची कला का सार
कुछ दिनों बाद कला उत्सव का समापन समारोह था. राजा रवि ने मंच पर बूढ़े को बुलाया और कहा, "इस उत्सव में आपने सबसे अनोखी कला का प्रदर्शन किया है. आप हमें रंगों की दुनिया से रूबरू कराते हैं, जिसे हम देख नहीं सकते."
बूढ़े ने मुस्कुराकर कुछ रंगों को अपने हाथों में लिया और उन्हें धीरे-धीरे हवा में घुमाया. कमरे में रंगों की खुशबू फैल गई. लोगों ने कभी ऐसी खुशबू नहीं सूंघी थी.
उस दिन बूढ़ा महल का नहीं, बल्कि पूरे राज्य का सबसे चर्चित कलाकार बन गया. उसने लोगों को यह सिखा दिया कि कला को देखने के लिए सिर्फ आंखें ही जरूरी नहीं हैं, उसे महसूस भी किया जा सकता है.

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