दोस्ती का इम्तिहान - बेताल की पहेली और राजा विक्रम का जवाब! Vikram Betal ki Kahani Hindi Short Story
दो सहेलियों की अनमोल दोस्ती पर एक खूबसूरत सोने का कंगन भारी पड़ गया! आखिर क्या हुआ कि एक सहेली पर चोरी का इल्जाम लग गया? बेताल की इस कहानी में राजा विक्रम कैसे सुलझाते हैं ये पेचीदा मामला और क्या सीख देते हैं सच्ची दोस्ती के बारे में, जानने के लिए पूरी कहानी जरूर पढ़ें!
कहानियाँ By Tathya Tarang, Last Update Sun, 03 November 2024, Share via
सोने का कंगन - बेताल की कहानी और राजा विक्रम का फैसला
राजा विक्रम आदित्य एक न्यायप्रिय शासक थे. हर रात बेताल उन्हें एक कहानी सुनाता और उसमें से कोई रहस्य निकालकर उसका जवाब मांगता था. एक ऐसी ही रात, बेताल ने कहानी सुनाई:
बेताल की कहानी:
एक गाँव में दो सहेलियाँ रहती थीं - शीला और मंजू. दोनों एक-दूसरे के घर आती-जाती थीं और उनके बीच गहरी दोस्ती थी. एक दिन, शीला को उपहार में एक सुंदर सोने का कंगन मिला. वो कंगन पहनकर बहुत खुश थी और उसने तुरंत अपनी सहेली मंजू को दिखाया.
मंजू कंगन देखते ही मोहित हो गई. वो भी वैसा ही कंगन चाहती थी. कुछ दिनों बाद, शीला का कंगन अचानक गायब हो गया. उसने हर जगह ढूंढा लेकिन कहीं नहीं मिला. शक की सुई मंजू पर गई क्योंकि सिर्फ वही कंगन देखने आई थी. शीला ने राजा के दरबार में चोरी की शिकायत दर्ज कराई और मंजू को चोर बताया.
बेताल का सवाल:
क्या मंजू पर चोरी का इल्जाम लगाना सही है? सिर्फ इसलिए कि उसने कंगन देखा था? आपके हिसाब से, इस मामले में राजा को क्या फैसला सुनाना चाहिए?
राजा विक्रम का जवाब और सीख
बेताल की कहानी सुनकर, राजा विक्रम ने कुछ सोचा और फिर जवाब दिया, "सिर्फ इतने सबूतों के आधार पर मंजू को चोर करार देना जल्दबाजी होगी. हो सकता है कि कंगन किसी और ने चुराया हो. इस मामले में राजा को दोनों सहेलियों से अलग-अलग पूछताछ करनी चाहिए. साथ ही, गांव के अन्य लोगों से भी पूछताछ करनी चाहिए कि क्या किसी ने कुछ संदिग्ध देखा है. जांच-पड़ताल के बाद ही सही फैसला लिया जा सकता है."
राजा विक्रम के जवाब से बेताल खुश हुआ. इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि:
- किसी पर भी जल्दबाजी में इल्जाम नहीं लगाना चाहिए.
- फैसला लेने से पहले ठीक से जांच-पड़ताल करनी चाहिए.
- सच्ची दोस्ती कभी किसी की चीज को पाने की लालच से नहीं टूटती.
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विक्रम और बेताल की उपरोक्त कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
1. निष्कर्ष पर जल्दबाजी न करें: कहानी हमें सिखाती है कि बिना पर्याप्त सबूतों के किसी पर भी आरोप नहीं लगाना चाहिए. सिर्फ इसलिए कि मंजू ने शीला का कंगन देखा था, उस पर चोरी का इल्जाम लगाना गलत था. जल्दबाजी में किसी को दोषी ठहराना न्याय नहीं है.
2. जांच-पड़ताल जरूरी है: राजा विक्रम का फैसला इस बात पर बल देता है कि किसी भी मामले में ठीक से जांच-पड़ताल करनी चाहिए. दोनों सहेलियों से पूछताछ और गांववालों से जानकारी हासिल करना जरूरी था. सच्चाई का पता लगाने के लिए साक्ष्य जुटाना और पूरी छानबीन आवश्यक है.
3. सच्ची दोस्ती ईर्ष्या से परे होती है: कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्ची दोस्ती किसी की चीजों को पाने की इच्छा से प्रभावित नहीं होती. मंजू को कंगन पसंद आया होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसने उसे चुरा लिया. सच्चे दोस्त एक-दूसरे की खुशी में खुश होते हैं और ईर्ष्या से दूर रहते हैं.
4. न्याय के लिए सतर्कता जरूरी: राजा विक्रम का फैसला हमें न्याय व्यवस्था के महत्व को भी याद दिलाता है. चोरी का सही आरोपी पकड़ने के लिए राजा को सतर्क रहना और सच्चाई का पता लगाना जरूरी था. न्याय प्रणाली को निष्पक्ष और भ्रष्टाचार से मुक्त होना चाहिए.
कुल मिलाकर, यह कहानी हमें जल्दबाजी में फैसला न लेने, सच्चाई का पता लगाने के लिए जांच करने और ईर्ष्या से दूर रहकर सच्ची दोस्ती निभाने का पाठ पढ़ाती है.