राजा भोज और अमरत्व का फल! विक्रम - बेताल की कहानी A Short Story in Hindi
विक्रम - बेताल की कहानी: राजा विक्रमादित्य के रोमांचक कारनामों में से एक कहानी, "राजा भोज और अमरत्व का फल" आपको दान, लोभ और अहंकार के परिणामों पर विचार करने के लिए प्रेरित करेगी।
कहानियाँ By Tathya Tarang, Last Update Thu, 03 October 2024, Share via
राजा भोज और सच्चा दान
राजा विक्रमादित्य, पेड़ पर चढ़कर बेताल को पकड़ने में कामयाब हो गए। उसे अपने कंधे पर लाद कर चल पड़े। रास्ते में बेताल ने कहानी सुनाना शुरू किया।
बेताल की कहानी:
एक समय था, उज्जैन के पास भोज नाम का एक राजा राज्य करता था। वह धनवान था, पर दानी नहीं। एक दिन दरबार में एक गरीब ब्राह्मण आया और राजा से दान मांगा। राजा ने उसका अपमान किया और कुछ नहीं दिया। ब्राह्मण निराश होकर चला गया।
रास्ते में उसे एक साधु मिला। ब्राह्मण ने अपनी व्यथा सुनाई। साधु ने उसे एक उपाय बताया। उसने कहा, 'कल वापस जाओ और राजा से कहो कि तुम उसे अमरत्व का फल देना चाहते हो।' अगले दिन ब्राह्मण ने वैसा ही किया। राजा अमरत्व के लालच में फंस गया और ब्राह्मण को अपने महल में ले आया।
ब्राह्मण ने राजा को एक गड्ढा खोदने के लिए कहा। राजा ने वैसा ही किया। फिर ब्राह्मण ने कहा कि अमरत्व का फल उसी गड्ढे में मिलता है, लेकिन उसे निकालने से पहले एक शर्त है। राजा को अपना सारा धन उस गड्ढे में डालना होगा। राजा लोभ में आ गया और अपना सारा खजाना गड्ढे में डाल दिया।
जब राजा ने सारा धन डाल दिया, तो ब्राह्मण ने हंसते हुए कहा, 'अरे राजा, अमरत्व का फल तो तेरे पास ही था। दान ही सच्चा अमरत्व है। तूने दान नहीं दिया, इसलिए अमरत्व तुझसे दूर हो गया।' यह कहकर ब्राह्मण वहां से चला गया। राजा को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
बेताल का सवाल:
कहानी सुनाकर बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, "हे राजा! इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? राजा भोज की सबसे बड़ी गलती क्या थी?"
राजा विक्रम का जवाब
राजा विक्रम ने बेताल की कहानी ध्यान से सुनी। बेताल के सवाल का जवाब देते हुए वे बोले, "हे बेताल, कहानी से हमें दान के महत्व का पता चलता है। राजा भोज की सबसे बड़ी गलती लोभ में फंस जाना था। उसने दान देने से इनकार कर दिया और अमरत्व पाने के लालच में अपना सारा धन गंवा दिया।"
बेताल का गुस्सा
बेताल राजा विक्रम के जवाब से सहमत तो हुआ, पर उसे गुस्सा भी आ गया। वह बोला, "यह तो बहुत साधारण सीख है। इससे तो कोई भी समझ सकता है। क्या तुम और गहराई से नहीं सोच सकते?"
राजा विक्रम का दूसरा जवाब
बेताल के गुस्से को शांत करने के लिए राजा विक्रम ने कहा, "हे बेताल, तुम सही कहते हो। कहानी में और भी गहराई छिपी है। राजा भोज की गलती सिर्फ लोभ में फंसना ही नहीं थी। उसकी असली गलती दूसरों के ज्ञान को कम आंकना था। उसने गरीब ब्राह्मण की बात को तुरंत ही खारिज कर दिया।"
राजा विक्रम का तर्क
"यदि राजा भोज ब्राह्मण की बात ध्यान से सुनता, तो शायद उसे अमरत्व का फल न मिलता, पर वह सच्चे दान का महत्व समझ जाता। हो सकता है वह ब्राह्मण की जरूरत को पूरा करता या उससे अमरत्व पाने का सही तरीका पूछता। राजा भोज के अहंकार ने ही उसे अंधा बना दिया और वह धोखा खाने के लिए तैयार हो गया।"
बेताल की जिज्ञासा
राजा विक्रम का दूसरा जवाब बेताल को पसंद आया। वह बोला, "तुम ठीक कहते हो राजा। राजा भोज को दूसरों को कम आंकने की सजा मिली। पर क्या तुम बता सकते हो कि राजा भोज को धोखा देने वाला ब्राह्मण सही था? क्या उसका तरीका दान का प्रचार करने का सही रास्ता था?"
राजा विक्रम का बेताल के प्रश्न का उत्तर:
राजा विक्रम ने बेताल के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, "हे बेताल, मैं समझता हूँ कि तुम राजा भोज को धोखा देने वाले ब्राह्मण के तरीके से सहमत नहीं हो। दान का प्रचार करने के लिए झूठ बोलना या धोखा देना गलत है। सच्चा दान तो वह है जो निस्वार्थ भाव से और बिना किसी अपेक्षा के किया जाए।"
"लेकिन, मैं यह भी मानता हूँ कि ब्राह्मण का इरादा गलत नहीं था। वह राजा भोज को दान के महत्व का एहसास दिलाना चाहता था। हो सकता है कि उसने सोचा हो कि राजा भोज को लालच दिखाकर ही वह उससे दान करवा पाएगा।"
"हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कहानी में राजा भोज के चरित्र को नकारात्मक रूप से चित्रित किया गया है। वह अहंकारी और लोभी था। हो सकता है कि यदि ब्राह्मण ने उसे सच बता दिया होता, तो भी वह दान नहीं करता।"
"इसलिए, मैं कहूंगा कि इस प्रश्न का कोई आसान उत्तर नहीं है। हमें सभी पहलुओं पर विचार करना होगा और फिर अपना निर्णय लेना होगा।"
राजा विक्रम के उत्तर के निहितार्थ:
- राजा विक्रम का उत्तर दर्शाता है कि वे नैतिकता के जटिल मुद्दों को समझने में सक्षम थे।
- वे दोनों पक्षों की बात सुनने और फिर अपना निर्णय लेने के लिए तैयार थे।
- वे मानते थे कि हर स्थिति में हमेशा सही या गलत का कोई निश्चित उत्तर नहीं होता है।
कहानी का संदेश:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें दान के महत्व को समझना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए। हमें लोभ और अहंकार से बचना चाहिए। हमें दूसरों के इरादों को समझने का प्रयास करना चाहिए और जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए।
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उपरोक्त कहानी से हमें कई सीख मिलती हैं:
दान का महत्व: कहानी दान के महत्व को रेखांकित करती है। राजा भोज के पास अपार धन था, लेकिन दान न करने के कारण वह उसका सुख नहीं भोग सका। दान से न केवल गरीबों की मदद होती है, बल्कि यह पुण्य कर्म भी माना जाता है।
लोभ का त्याग: कहानी हमें सिखाती है कि लोभ मनुष्य को अंधा बना देता है। राजा भोज अमरत्व के लालच में फंस गया और अपना सारा धन गंवा बैठा। लोभ से बचकर ही हम सही निर्णय ले पाते हैं।
दूसरों को कम ना आंकें: राजा भोज ने गरीब ब्राह्मण की बात को तुच्छ समझा, जिसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ा। हमें दूसरों के ज्ञान और अनुभव का सम्मान करना चाहिए।
समस्याओं का हल ढूंढना: कहानी यह भी सवाल खड़ा करती है कि क्या ब्राह्मण का राजा को धोखा देना सही था? दान का प्रचार करने के लिए क्या झूठ का सहारा लेना चाहिए? कहानी हमें सिखाती है कि समस्याओं का हल ईमानदारी और चतुराई से ढूंढना चाहिए।
कहानी का गहराया अर्थ: कहानी हमें केवल सीधे अर्थ को ग्रहण करने के लिए नहीं, बल्कि उसमें छिपे गहरे अर्थ को समझने के लिए भी प्रेरित करती है। राजा विक्रम के जवाबों ने बेताल को यह एहसास दिलाया कि कहानी में दान से जुड़े कई आयाम हैं।
संक्षेप में, यह कहानी हमें दान, लोभ, अहंकार और ईमानदारी जैसे विषयों पर गंभीरता से विचार करने का मौका देती है।