दुनिया के सबसे बड़े महाकुंभ में छाए इंजीनियर बाबा – एक IITian की आध्यात्मिक यात्रा
जानिए, कैसे आईआईटी बॉम्बे के अभय सिंह ने आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाया और विज्ञान व दर्शन को जोड़ा। पढ़ें उनकी अनोखी यात्रा और शिव भक्ति की प्रेरणादायक दास्तां।
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चर्चा में Last Update Sun, 02 February 2025, Author Profile Share via
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हो चुका है। हर कोने से श्रद्धालुओं और साधु-संतों का संगम इस महापर्व को अलौकिक बना रहा है। लेकिन इस बार महाकुंभ में चर्चा का केंद्र बने हैं एक अनोखे संत – इंजीनियर बाबा। आईआईटी बॉम्बे से पढ़े अभय सिंह, जिन्हें "इंजीनियर बाबा" के नाम से जाना जा रहा है, अपनी आध्यात्मिक यात्रा और प्रेरणादायक जीवन से लाखों लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।
कौन हैं "इंजीनियर बाबा" अभय सिंह?
हरियाणा के झज्जर जिले में जन्मे अभय सिंह एक असाधारण व्यक्तित्व हैं। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और लाखों के पैकेज वाली नौकरी पाई। लेकिन इस चकाचौंध भरी जिंदगी को छोड़कर, उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग चुनने का फैसला किया।
अभय सिंह के जीवन के इस मोड़ को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि प्रेम में धोखा मिलने के बाद उन्होंने यह राह अपनाई, जबकि कुछ इसे अवसाद और बेरोजगारी का परिणाम मानते हैं। खुद अभय सिंह का कहना है,
"मैंने जीवन का गहरा अर्थ तलाशने के लिए यह रास्ता चुना। सांसारिक सुखों में वह शांति नहीं मिली, जो अध्यात्म में है।"
आध्यात्मिकता की ओर पहला कदम
महाकुंभ 2025 में चर्चा का विषय बने इंजीनियर बाबा ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत सद्गुरु के आश्रम से की। वहां नौ महीने तक उन्होंने सेवक के रूप में समय बिताया। उन्होंने योग, ध्यान और क्रिया के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझा। बाबा कहते हैं,
"सत्य और धर्म को अपने जीवन में कैसे उतारा जाए, यह मैंने साधना और ध्यान के जरिए सीखा। 2021 के बाद, जैसे महादेव ने मुझे सीधे मार्गदर्शन देना शुरू कर दिया।"
विज्ञान से आध्यात्म तक – एक प्रेरणादायक यात्रा
इंजीनियर बाबा की कहानी उनकी वैज्ञानिक सोच और आध्यात्मिक विश्वास के बीच के गहरे संबंध को दर्शाती है। अपने इंजीनियरिंग के दिनों में उन्होंने सुकरात, प्लेटो और अन्य दार्शनिकों की किताबों का अध्ययन किया। फोटोग्राफी, फिजिक्स पढ़ाने और डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों में काम करने के बावजूद, वे जीवन के उद्देश्य को लेकर संघर्षरत रहे।
कोरोना महामारी के बाद, उन्होंने भारत लौटकर पैदल चारधाम यात्रा की। इसके साथ ही, हिमालय की गुफाओं में साधना कर उन्होंने खुद को समझने की कोशिश की। उनका मानना है,
"अब विज्ञान और आध्यात्म में कोई अंतर नहीं दिखता। सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है।
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