प्रोफेसर बीरबल साहनी: प्राचीन वनस्पतियों के रहस्य खोलने वाले वैज्ञानिक की कहानी! Professor Birbal Sahni
क्या आप जानते हैं पौधों का इतिहास भी उतना ही रोमांचक होता है जितना किसी राजा-महाराजा का? इस लेख में हम भारत के जाने-माने वैज्ञानिक प्रोफेसर बीरबल साहनी के जीवन, उनके शोध कार्यों और...
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जीवनी Last Update Sat, 05 October 2024, Author Profile Share via
प्रोफेसर बीरबल साहनी: भारतीय जीवाश्म विज्ञान के जनक
प्रोफेसर बीरबल साहनी (14 नवंबर, 1891 - 10 अप्रैल, 1949) भारत के एक प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक और जीवाश्म विज्ञानी थे। उन्हें भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान (पैलियोबॉटनी) का जनक माना जाता है। उन्होंने जीवाश्मों के अध्ययन के माध्यम से भारत के प्राचीन वनस्पति जगत को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बीरबल साहनी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बीरबल साहनी का जन्म अविभाजित भारत के शाहपुर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) के भेड़ा नामक गांव में हुआ था। उनके पिता, प्रोफेसर रुचिराम साहनी, एक विद्वान और शिक्षाविद थे। बीरबल साहनी की रुचि बचपन से ही प्रकृति विज्ञान में थी। उन्होंने लाहौर के मिशन और सेंट्रल मॉडल स्कूलों में पढ़ाई की और बाद में सरकारी कॉलेज, लाहौर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड का रुख किया।
बालक बीरबल एक तीव्र बुद्धि के धनी छात्र थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के मिशन और सेंट्रल मॉडल स्कूलों में प्राप्त की और बाद में सरकारी कॉलेज में पढ़ाई की। गणित और विज्ञान उनके प्रिय विषय थे। 1911 में पंजाब विश्वविद्यालय (अब पाकिस्तान में) से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी सर अल्बर्ट चार्ल्स सीवार्ड के मार्गदर्शन में अध्ययन किया। 1919 में लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्हें कई प्रतिष्ठित छात्रवृत्तियां मिलीं, जो उनकी प्रतिभा और लगन का प्रमाण हैं।
शोध कार्य और उपलब्धियां
लंदन विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के दौरान, बीरबल साहनी प्रसिद्ध जीवाश्म वैज्ञानिक सर अल्बर्ट चार्ल्स सीवार्ड के मार्गदर्शन में आए। सीवार्ड के मार्गदर्शन में, साहनी ने जीवाश्म पौधों के अध्ययन में गहरी रुचि विकसित की। उन्होंने भारतीय उपमहद्वीप से प्राप्त जीवाश्म पौधों का गहन अध्ययन किया और उन्हें वर्गीकृत किया। उनके शोध से पता चला कि भारत में लाखों करोड़ों वर्ष पहले विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते थे, जो आज के पौधों से काफी भिन्न थे।
साहनी ने जीवाश्मों के अध्ययन के लिए नई तकनीकों का भी विकास किया। उन्होंने जीवाश्म पौधों के ऊतकों का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए विशेष तकनीकों का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी संरचना और विकास को बेहतर ढंग से समझा जा सका।
उन्होंने भारतीय जीवाश्म विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं। उन्होंने भारतीय उपमहद्वीप से जीवाश्म फर्न, सिकड (Cycads), और जीवाश्म लकड़ी के नमूनों की पहचान की। उन्होंने यह भी पाया कि गोंडवाना सुपर महाद्वीप के टूटने से पहले भारत अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका से जुड़ा हुआ था।
शिक्षा और संस्थान निर्माण में योगदान
बीरबल साहनी एक महान शिक्षक भी थे। उन्होंने भारत में जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग की स्थापना की और वहां जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन को शुरू किया।
1946 में, उन्होंने लखनऊ में ही भारतीय विज्ञान परिषद के अंतर्गत बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान की स्थापना की। यह संस्थान आज भी भारत में जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र है।
प्रोफेसर बीरबल साहनी का व्यक्तिगत जीवन:
अपने व्यस्त शोध कार्य के बावजूद, प्रोफेसर साहनी प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें लंबी पैदल यात्रा करना और हिमालय की ऊंचाइयों का पता लगाना पसंद था। वह अपने विनोदपूर्ण स्वभाव और कहानियों सुनाने की कला के लिए भी जाने जाते थे।
सम्मान और विरासत
प्रोफेसर बीरबल साहनी को उनके असाधारण शोध कार्यों के लिए कई सम्मानों से सम्मानित किया गया। उन्हें रॉयल सोसाइटी (लंदन) का फेलो चुना गया, जो विज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।
बीरबल साहनी भारतीय जीवाश्म विज्ञान के पितामह के रूप में जाने जाते हैं। उनके शोध कार्यों से भारत के प्राचीन वनस्पति जगत को समझने में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। उन्होंने भारत में जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन की नींव रखी और इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए संस्थानों की स्थापना की।
बीरबल साहनी के शोध कार्य एवं उपलब्धियाँ
प्रोफेसर बीरबल साहनी को भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान (Palaeobotany) का जनक माना जाता है। उन्होंने जीवाश्म पौधों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आइए उनके शोध कार्य और उपलब्धियों पर एक नज़र डालें:
बीरबल साहनी के शोध कार्य के क्षेत्र:
1. जीवाश्म पौधों का अध्ययन: साहनी जीवाश्म पौधों के अध्ययन में विशेष रूप से रुचि रखते थे। उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों से जीवाश्म पौधों के नमूने एकत्र किए और उनका गहन अध्ययन किया। इन अध्ययनों से उन्हें प्राचीन वनस्पति और पौधों के विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली।
2. पौधों का विकास: साहनी ने जीवाश्म पौधों के अध्ययन के माध्यम से पौधों के विकास के बारे में नया ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने पौधों के विभिन्न समूहों के बीच संबंधों को समझने में मदद की और यह बताया कि आधुनिक पौधे कैसे विकसित हुए।
3. पौधों का वर्गीकरण: साहनी ने जीवाश्म पौधों के वर्गीकरण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जीवाश्म पौधों को वर्गीकृत करने के लिए नई प्रणालियाँ विकसित कीं, जिससे उनकी पहचान और अध्ययन करना आसान हो गया।
4. पौधों का भूगोल: साहनी ने यह समझने में भी रुचि रखी थी कि प्राचीन काल में पौधे कहाँ पाए जाते थे। उन्होंने जीवाश्म पौधों के वितरण का अध्ययन किया और यह पता लगाने की कोशिश की कि महाद्वीपों का टूटना-फूटना कैसे पौधों के वितरण को प्रभावित करता है।
बीरबल साहनी की उपलब्धियाँ:
1. पेंटोजाइली की खोज: साहनी की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है पेंटोजाइली (Pentoxylales) नामक जीवाश्म पौधों का समूह। यह समूह अब तक का पाया गया सबसे प्राचीन बीज वाले पौधों में से एक है।
2. साह्नियोक्सिलॉन राजमहलेंस: साहनी ने राजमहल की पहाड़ियों ( झारखंड) से एक विशेष प्रकार के जीवाश्म लकड़ी की खोज की जिसे उन्होंने साह्नियोक्सिलॉन राजमहलेंस (Sahnioxylon rajmahalense) नाम दिया।
3. भारतीय विज्ञान संस्थानों की स्थापना: साहनी ने भारत में विज्ञान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लखनऊ में भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान (Birbal Sahni Institute of Palaeobotany) की स्थापना की, जो आज भी इस क्षेत्र में अग्रणी संस्थान है।
4. विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा: साहनी एक महान शिक्षक भी थे। उन्होंने विज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारत में विज्ञान शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयासरत रहे।
कुल मिलाकर, प्रोफेसर बीरबल साहनी ने भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। उनके शोध कार्यों और उपलब्धियों ने हमें पौधों के विकास और प्राचीन वनस्पति के बारे में बहुत कुछ समझने में मदद की है।
प्रोफेसर बीरबल साहनी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान के जनक के रूप में जाने जाते हैं, प्रोफेसर बीरबल साहनी ने जीवाश्म पौधों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शोध कार्यों और उपलब्धियों ने हमें पौधों के विकास और प्राचीन वनस्पति के बारे में बहुत कुछ समझने में मदद की है। उनकी जीवन उपलब्धियों को निम्न तालिका में सारांशित किया गया है:
क्षेत्र | महत्वपूर्ण योगदान |
शोध कार्य के क्षेत्र | जीवाश्म पौधों का अध्ययन |
उपलब्धियाँ | पेंटोजाइली की खोज - अब तक का पाया गया सबसे प्राचीन बीज वाले पौधों में से एक। |
सम्मान | फेलोशिप ऑफ द रॉयल सोसाइटी (FRS) और इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (INSA) की फैलोशिप। |
विरासत | भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान की स्थापना - आज भी दुनिया के अग्रणी संस्थानों में से एक। |
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