सादगी, करुणा और आध्यात्मिकता का प्रतीक: संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी के जीवन का चक्र! Biography of Saint Francis
Saint Francis of Assisi Biography: 13वीं सदी के संत फ्रांसिस ऑफ असिसी ने सादगी, करुणा और प्रकृति प्रेम से दुनिया को प्रेरित किया। उनका जीवन ईश्वर के प्रति समर्पण और सभी जीवों के प्...
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जीवनी Last Update Tue, 24 September 2024, Author Profile Share via
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी के जीवन का चक्र
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी (1181-1226) का जन्म इटली के असिसी शहर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पिएत्रो डि बर्नाडोने था, जो कपड़े के व्यवसाय से जुड़े थे, और उनकी माँ पिका एक धर्मपरायण महिला थीं। उनका जन्म नाम जियोवन्नी था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें फ्रांसेस्को (फ्रांस से जुड़े होने के कारण) कहा, क्योंकि वे फ्रांस से व्यापारिक सामान लाया करते थे और फ्रांसीसी संस्कृति से काफी प्रभावित थे।
संत फ्रांसिस का प्रारंभिक जीवन:
फ्रांसिस का बचपन काफी सुखद और विलासिता में बीता। वे एक सुंदर, आकर्षक और आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। युवा अवस्था में वे बहुत ही मिलनसार और खुशमिजाज व्यक्ति थे, और अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में उन्हें बहुत आनंद आता था। उनका जीवन धनी परिवारों की अन्य संतानों की तरह ही मज़े और मनोरंजन से भरा हुआ था। वे अच्छे कपड़े पहनते थे, नृत्य करते थे और उत्सवों में भाग लेते थे।
युद्ध के प्रति उनका रुझान भी देखा गया, जब उन्होंने अपने शहर की सेना में शामिल होकर युद्ध में भाग लिया। 1202 में, असिसी और पेरूगिया के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसिस को बंदी बना लिया गया और लगभग एक वर्ष तक कैद में रखा गया। इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनके बंदी जीवन के दौरान, वे बीमारी से भी ग्रस्त हो गए, जिसके बाद उन्होंने जीवन के गहरे अर्थों की खोज शुरू की।
संत फ्रांसिस की आध्यात्मिक जागृति:
कैद से रिहा होने के बाद, फ्रांसिस ने अपने जीवन में एक परिवर्तन महसूस किया। उन्होंने अपनी पुरानी विलासितापूर्ण जीवन शैली से दूरी बनानी शुरू कर दी। एक दिन, फ्रांसिस असिसी के पास सेंट डेमियन चर्च गए और वहाँ प्रार्थना करने लगे। कहते हैं कि उसी समय उन्होंने चर्च में एक क्रॉस से यह आवाज़ सुनी, "जाओ, मेरे घर का पुनर्निर्माण करो।" फ्रांसिस ने इसे एक ईश्वरीय आदेश समझा और अपने परिवार की संपत्ति का त्याग कर दिया। उन्होंने अपने पिता की दुकान से कपड़े बेचकर प्राप्त धन से चर्च की मरम्मत शुरू की।
इस घटना के बाद, फ्रांसिस ने अपनी सारी संपत्ति छोड़ दी और गरीबों के बीच रहने लगे। उन्होंने गरीबी, सादगी और ईश्वर के प्रति प्रेम को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बना लिया। वे अपने पुराने दोस्तों से दूर हो गए और अधिकतर समय प्रार्थना और ध्यान में बिताने लगे। वे अक्सर जंगलों में चले जाते और वहाँ शांतिपूर्वक प्रार्थना करते।
फ्रांसिस का आध्यात्मिक जीवन धीरे-धीरे गहराता गया। उन्होंने हर प्राणी में ईश्वर का अंश देखा और प्रकृति के साथ गहरे संबंध स्थापित किए। उन्होंने जीवन की सरलता और शांति को अपनाया और लोगों को भी ईश्वर के प्रेम की ओर अग्रसर किया। उनका मानना था कि सच्चा सुख और संतोष ईश्वर के प्रति समर्पण में है, न कि भौतिक सुखों में।
फ्रांसिस की गरीबों और रोगियों के प्रति सेवा:
फ्रांसिस की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी सेवा भावना। उन्होंने समाज के सबसे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की सेवा की। वे कोढ़ियों की सेवा में भी अग्रणी रहे, जो उस समय समाज से पूरी तरह से अलग-थलग थे। फ्रांसिस ने न केवल उनकी देखभाल की बल्कि उनके बीच रहकर उन्हें अपनाया।
उन्होंने "भाइयों का छोटा समूह" (Fraternal Order) की स्थापना की, जिसे आज फ्रांसिस्कन ऑर्डर के नाम से जाना जाता है। इस समूह का उद्देश्य गरीबों की सेवा और ईसाई धर्म के सादगीपूर्ण जीवन को अपनाना था। इस समुदाय के सदस्य धन-संपत्ति का त्याग कर एक सादा और धर्मपरायण जीवन जीने लगे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर की स्थापना का इतिहास
संत फ्रांसिस ऑफ़ असिसी ने जिस फ्रांसिस्कन ऑर्डर (Franciscan Order) की स्थापना की, वह मध्यकालीन ईसाई धर्म में एक क्रांतिकारी धार्मिक आंदोलन था। इसका उद्देश्य ईसाई धर्म के सादगी, सेवा, और भाईचारे के मूल्यों का पालन करना था। इस ऑर्डर की स्थापना गरीबों, जरूरतमंदों और समाज के सबसे हाशिए पर रहने वाले लोगों की सेवा के लिए की गई थी।
संत फ्रांसिस का जीवन परिवर्तन उनके आध्यात्मिक जागरण के बाद शुरू हुआ। अपने धनी व्यापारी पिता और विलासितापूर्ण जीवन को त्यागकर उन्होंने एक साधारण और सादा जीवन अपनाया। उनका मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और समाज के गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा करना था।
उन्होंने पूरी तरह से गरीबी, सादगी और निस्वार्थ सेवा को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। ईश्वर के प्रति उनकी असीम आस्था और मानवता के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें अपने समय के धार्मिक व्यक्तित्वों में विशिष्ट स्थान दिया।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर की स्थापना:
1209 में, फ्रांसिस ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ मिलकर फ्रांसिस्कन ऑर्डर की नींव रखी। उन्होंने इस ऑर्डर को "भाइयों का छोटा समूह" (Fraternal Order) कहा। इस ऑर्डर की स्थापना रोम के पोप इनोसेंट तृतीय से अनुमति प्राप्त करने के बाद हुई। फ्रांसिस और उनके अनुयायियों ने पोप से मिलकर अपनी नई धार्मिक व्यवस्था को मान्यता देने की प्रार्थना की।
फ्रांसिस ने पोप को बताया कि वे ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, जिसमें पूरी तरह से गरीबी, सादगी, और ईश्वर के प्रति समर्पण हो। पोप ने उनकी सादगी और समर्पण को देखकर उन्हें मौखिक रूप से ऑर्डर की स्थापना की अनुमति दे दी।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर के सिद्धांत:
फ्रांसिस्कन ऑर्डर के तीन मुख्य सिद्धांत थे:
गरीबी – फ्रांसिस और उनके अनुयायी किसी भी प्रकार की संपत्ति, धन, या भौतिक सुखों का त्याग करते थे। वे पूर्णतः भिक्षा पर निर्भर रहते थे और जो भी उन्हें दान मिलता था, उसी से अपना जीवन यापन करते थे।
सादगी – उनका जीवन अत्यंत साधारण होता था। वे धनी वस्त्रों और विलासितापूर्ण साधनों से दूर रहते थे। उनकी वेशभूषा साधारण भूरे वस्त्र होती थी, जिसे एक रस्सी से बांधकर पहना जाता था। इस प्रकार के वस्त्रों का उद्देश्य उनकी सादगी और समर्पण को दर्शाना था।
भाईचारा – फ्रांसिस्कन ऑर्डर के सदस्य सभी इंसानों को अपना भाई और बहन मानते थे। वे जाति, वर्ग, और स्थिति से परे जाकर सभी के साथ समानता का व्यवहार करते थे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर का मुख्य उद्देश्य गरीबों, बीमारों, और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की सेवा करना था। उन्होंने अस्पतालों में काम किया, कोढ़ियों की सेवा की, और जहाँ कहीं भी ज़रूरतमंद लोग थे, उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते थे।
संगठन का विस्तार:
जैसे-जैसे फ्रांसिस की ख्याति और उनके संदेश का प्रसार हुआ, उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। इस ऑर्डर में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी भाग लिया। संत फ्रांसिस ने अपनी एक महिला अनुयायी, क्लेयर ऑफ़ असिसी के साथ मिलकर एक महिला शाखा की स्थापना की, जिसे "क्लेरिस" (Poor Clares) के नाम से जाना जाता है। इस शाखा की महिलाएं भी गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में जीवन व्यतीत करती थीं।
इसके साथ ही, एक तीसरी शाखा की भी स्थापना की गई, जिसे "थर्ड ऑर्डर" कहा गया। यह शाखा उन लोगों के लिए थी जो अपनी सामान्य दुनिया में रहते हुए फ्रांसिस्कन सिद्धांतों का पालन करना चाहते थे, लेकिन औपचारिक रूप से ऑर्डर का हिस्सा नहीं बन सकते थे।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर का प्रभाव:
फ्रांसिस्कन ऑर्डर ने मध्यकालीन यूरोप के धार्मिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। इसने समाज में समानता, मानवता, और भाईचारे के मूल्यों का प्रसार किया। संत फ्रांसिस का यह आंदोलन एक ऐसी धार्मिक व्यवस्था थी, जो केवल चर्च के अंदर ही सीमित नहीं थी, बल्कि समाज के गरीब और उपेक्षित वर्गों की सेवा के लिए समर्पित थी।
फ्रांसिस्कन ऑर्डर ने अपने सेवा कार्यों से समाज में बदलाव लाने का काम किया। इस ऑर्डर के सदस्य ईसाई धर्म के सच्चे आदर्शों के अनुसार जीते थे और उनका मुख्य लक्ष्य समाज में शांति, प्रेम, और सहानुभूति का प्रसार करना था।
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