एक महान दार्शनिक, क्रांतिकारी और योगी: भारत रत्न श्री अरबिंदो घोष का जीवन परिचय! Biography of Sri Aurobindo

अरबिंदो घोष का जीवन परिचय: इस लेख में हम भारत के महान दार्शनिक, क्रांतिकारी और योगी श्री अरबिंदो के जीवन, दर्शन और योगदान के बारे में विस्तार से जानेंगे।

एक महान दार्शनिक, क्रांतिकारी और योगी: भ...
एक महान दार्शनिक, क्रांतिकारी और योगी: भ...


महान दार्शनिक: श्री अरबिंदो

श्री अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर कृष्णधर घोष एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। बचपन से ही अरबिंदो एक प्रतिभाशाली बालक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से संस्कृत, ग्रीक, लैटिन और फ्रेंच में उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे भारत लौटे।

श्री अरबिंदो का राजनीतिक जीवन

भारत लौटने के बाद अरबिंदो ने बड़ौदा के महाराजा के दरबार में सेवा की। इस दौरान उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। बंगाल विभाजन के विरोध में उन्होंने एक क्रांतिकारी पत्रिका ‘वंदे मातरम’ का संपादन किया। उनकी लेखन शैली और विचारों ने युवाओं को देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत किया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी गतिविधियों पर नजर रखी और अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

श्री अरबिंदो का आध्यात्मिक जीवन

जेल में रहते हुए अरबिंदो ने गहन आत्मिक अनुभव किया। उन्होंने पाया कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी भारत के लिए आवश्यक है। जेल से मुक्त होने के बाद वे पांडिचेरी चले गए और वहां एक आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम में उन्होंने अपने जीवन को पूर्णतः आध्यात्मिक साधना के लिए समर्पित कर दिया।

दर्शन और योग

श्री अरबिंदो एक महान दार्शनिक थे। उन्होंने वेदों, उपनिषदों और भारतीय दर्शन पर गहन अध्ययन किया। उनके अनुसार, मानव चेतना की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने एक नई योग पद्धति का विकास किया जिसे ‘अभिन्न योग’ कहा जाता है। इस योग का लक्ष्य व्यक्ति को भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर पूर्णता प्राप्त करने में मदद करना है।

श्री अरबिंदो की विरासत

श्री अरबिंदो की विरासत आज भी जीवंत है। उनके विचारों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया और देश के आध्यात्मिक पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा स्थापित आश्रम, ऑरोविले, आज भी एक आदर्श समाज के रूप में प्रेरित करता है।

श्री अरबिंदो की जीवनी केवल एक जीवन का वृत्तांत नहीं है, बल्कि एक विचारधारा का इतिहास है, जिसने भारत और विश्व को प्रभावित किया है।

श्री अरबिंदो का जीवनकाल और प्रमुख घटनाएँ

श्री अरबिंदो का जीवन, भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने एक क्रांतिकारी, दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में एक बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। आइए उनके जीवनकाल की प्रमुख घटनाओं पर एक विस्तृत नज़र डालते हैं:

श्री अरबिंदो का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (1872-1893)

जन्म: 15 अगस्त, 1872 को कोलकाता में हुआ।

शिक्षा: भारत में प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से संस्कृत, ग्रीक, लैटिन और फ्रेंच में उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की।

श्री अरबिंदो की भारत वापसी और राजनीतिक जीवन (1893-1910)

भारत वापसी: 1893 में भारत लौटे और बड़ौदा के महाराजा के दरबार में सेवा की।

राष्ट्रीय आंदोलन: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।

बंगाल विभाजन: बंगाल विभाजन के विरोध में एक क्रांतिकारी पत्रिका 'वंदे मातरम' का संपादन किया।

गिरफ्तारी: ब्रिटिश सरकार ने उनकी गतिविधियों पर नजर रखी और अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

श्री अरबिंदो का आध्यात्मिक जीवन की ओर मोड़ (1910-1950)

जेल में आध्यात्मिक अनुभव: जेल में रहते हुए गहन आत्मिक अनुभव किया।

पांडिचेरी: जेल से मुक्त होने के बाद पांडिचेरी चले गए और वहां एक आश्रम की स्थापना की।

आध्यात्मिक साधना: अपना जीवन पूर्णतः आध्यात्मिक साधना के लिए समर्पित कर दिया।

अभिन्न योग: एक नई योग पद्धति का विकास किया जिसे 'अभिन्न योग' कहा जाता है।

ऑरोविले: माँ (मिरे) के साथ मिलकर ऑरोविले की स्थापना की, जो एक विश्व नगर के रूप में परिकल्पित था।

श्री अरबिंदो का अंतिम वर्ष और विरासत

शारीरिक बीमारी: अपने अंतिम वर्षों में शारीरिक रूप से बीमार रहे।

निधन: 5 दिसंबर, 1950 को पांडिचेरी में उनका निधन हुआ।

विरासत: उनकी विरासत आज भी जीवंत है। उनके विचारों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया और देश के आध्यात्मिक पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

श्री अरबिंदो का जीवनकाल एक ऐसी यात्रा थी जिसमें उन्होंने एक क्रांतिकारी से एक महान दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु बनने का सफर तय किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और लाखों लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।

श्री अरबिंदो: महत्वपूर्ण व्यक्तिगत और मुख्य जानकारी

जानकारी

विवरण

पूरा नाम

श्री अरबिंदो घोष

जन्म तिथि

15 अगस्त, 1872

जन्म स्थान

कोलकाता, भारत

निधन तिथि

5 दिसंबर, 1950

निधन स्थान

पांडिचेरी, भारत

पिता का नाम

डॉ. कृष्णधनांध घोष

माता का नाम

स्वर्णकुमारी देवी

शिक्षा

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड

पेशा

दार्शनिक, क्रांतिकारी, कवि, योगी

प्रमुख कार्य

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, अभिन्न योग, ऑरोविले की स्थापना, साहित्यिक रचनाएँ

प्रमुख विचार

सर्वोच्च चेतना, अभिन्न योग, पूर्ण विकसित मानवता

विरासत

भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का पुनरुद्धार, ऑरोविले, साहित्यिक कृतियाँ

श्री अरबिंदो की आध्यात्मिक शिक्षाएँ

श्री अरबिंदो की आध्यात्मिक शिक्षाएँ भारतीय दर्शन की गहन समझ पर आधारित हैं। उन्होंने वेदों, उपनिषदों और भगवद् गीता का व्यापक अध्ययन किया। उनके अनुसार, मानव चेतना की अपार संभावनाएँ हैं। उन्होंने इसे 'सर्वोच्च चेतना' या 'दिव्य चेतना' कहा।

1. अभिन्न योग: श्री अरबिंदो ने एक नई योग पद्धति का विकास किया जिसे 'अभिन्न योग' कहा जाता है। यह योग केवल मन या आत्मा की शुद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक और दिव्य सभी स्तरों पर पूर्णता प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।

2. इश्वर और विश्व: उनके दर्शन में ईश्वर और विश्व का अभिन्न संबंध है। ईश्वर केवल एक दूरस्थ सत्ता नहीं है, बल्कि वह विश्व के भीतर और बाहर व्याप्त है। मानव का लक्ष्य ईश्वर के साथ एकता स्थापित करना है।

3. मानव विकास: श्री अरबिंदो ने मानव विकास को एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में देखा। उन्होंने कहा कि मानव चेतना धीरे-धीरे विकसित हो रही है और एक दिन वह दिव्य चेतना के स्तर तक पहुंच जाएगी।

ऑरोविले: एक आदर्श समाज

श्री अरबिंदो और माँ (मिरे) ने पांडिचेरी के निकट ऑरोविले की स्थापना की। यह एक विश्व नगर के रूप में परिकल्पित किया गया था जहां लोग सभी धर्मों, राष्ट्रीयताओं और विचारधाराओं से परे रहकर एक साथ रहेंगे। ऑरोविले के मूल सिद्धांत हैं:

1. समानता: सभी लोगों के बीच समानता।

2. प्रगति: निरंतर विकास और प्रगति की खोज।

3. आध्यात्मिक एकता: सभी धर्मों और आध्यात्मिक पथों का सम्मान।

ऑरोविले आज भी एक प्रयोगात्मक शहर है जहां लोग विभिन्न क्षेत्रों में नवीन विचारों को आजमा रहे हैं।

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