करत हो तो कर; मत कर; करने का ध्यान; करत ह्ये तो कर; मत कर; मत करने का ध्यान

कबीर का प्रसिद्ध दोहा एक अविनाशी ज्ञान का टुकड़ा प्रदान करता है जो हमें हमारे दैनिक जीवन में मार्गदर्शन कर सकता है। यह हमें हमारे कार्यों में निर्णायक, सचेत और केंद्रित होने के लिए...

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करत हो तो कर - दोहे का विश्लेषण:

दोहा: करत हो तो कर; मत कर; करने का ध्यान।

करत ह्ये तो कर; मत कर; मत करने का ध्यान।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कबीरदास जी ने कर्म और निश्चय के महत्त्व को दर्शाया है। इसका सरल अर्थ है कि जब आप किसी कार्य को करने का निर्णय लें, तो उसे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करें। अधूरे मन से या अनिर्णय की स्थिति में रहकर काम करने से वह कार्य सफल नहीं हो पाएगा। साथ ही, यह भी कहा गया है कि यदि आप किसी कार्य को नहीं करना चाहते हैं, तो उसे छोड़ दें, लेकिन उसे न करने का ध्यान भी न करें। यहाँ, कबीरदास जी हमें बता रहे हैं कि निर्णय लेना और उसे दृढ़ता से निभाना कितना महत्वपूर्ण है।

कर्म का महत्त्व:

इस दोहे का मुख्य उद्देश्य यह है कि कर्म जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कर्म ही वह माध्यम है जिससे हम अपने जीवन में प्रगति करते हैं और सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। कबीरदास जी का यह दोहा हमें सिखाता है कि बिना किसी संदेह या अनिर्णय के, कर्म करते रहना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। यदि आप किसी कार्य को करने का निर्णय ले चुके हैं, तो उसे पूरी निष्ठा और ध्यान के साथ करें।

आधे-अधूरे प्रयास का हानिकारक प्रभाव:

जब हम किसी काम को बिना पूर्ण समर्पण या अधूरे मन से करते हैं, तो वह कार्य न तो सही ढंग से पूरा होता है और न ही उसमें कोई संतुष्टि प्राप्त होती है। आधे-अधूरे प्रयास जीवन में नकारात्मक परिणाम देते हैं। यह न केवल हमारे लक्ष्यों को धूमिल करता है, बल्कि हमारी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा का भी अपव्यय करता है। कबीरदास जी के अनुसार, "करत हो तो कर" का मतलब है कि यदि आप किसी काम को हाथ में लेते हैं, तो उसे पूर्णता के साथ करें, बिना किसी द्विधा के।

ध्यान और संकल्प:

यह दोहा "ध्यान" और "संकल्प" की महत्ता को भी उजागर करता है। ध्यान का अर्थ है केंद्रित मन से काम करना, और संकल्प का मतलब है किसी काम को करने का दृढ़ निर्णय लेना। जब हम किसी कार्य को ध्यान और संकल्प के साथ करते हैं, तो वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होता है। यह जीवन के हर पहलू पर लागू होता है, चाहे वह हमारा व्यक्तिगत जीवन हो या पेशेवर जीवन।

निश्चय का अभाव और उसके परिणाम:

अक्सर लोग किसी काम को करने का निर्णय तो ले लेते हैं, लेकिन उस काम को लेकर उनके मन में संदेह बना रहता है। वे यह नहीं सोचते कि कैसे उस कार्य को पूरा किया जाए। इस अनिर्णय की स्थिति में, उनका पूरा ध्यान केवल उस कार्य को न करने के कारणों पर होता है, और इस प्रकार उनका ध्यान भटक जाता है। यही कबीरदास जी हमें "मत करने का ध्यान" कहकर बताना चाहते हैं—कि अगर आप कोई काम नहीं कर सकते, तो उसे बिल्कुल भी मत करो, लेकिन न करने का ध्यान रखना भी एक प्रकार की मानसिक बर्बादी है।

जीवन में सफलता का सूत्र:

यह दोहा जीवन में सफलता प्राप्त करने के सूत्र को भी दर्शाता है। जब तक आप किसी कार्य में पूरी तरह समर्पित नहीं होते, तब तक सफलता की आशा करना व्यर्थ है। आधे-अधूरे प्रयास, नकारात्मक विचार और अनिर्णय की स्थिति से दूर रहते हुए हमें पूरी तरह से अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

नकारात्मकता और असफलता:

जब हम किसी कार्य को न करने के बारे में अधिक सोचने लगते हैं, तो यह नकारात्मकता हमारे भीतर असफलता का बीज बो देती है। हम पहले ही हार मान लेते हैं, और परिणामस्वरूप, हमारा प्रयास भी निष्क्रिय हो जाता है। कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से यह सिखाया है कि नकारात्मक विचार और असफलता के भय को पीछे छोड़ते हुए, हर कार्य में पूर्णता और उत्साह के साथ जुटना ही सफलता की कुंजी है।

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