रातोंरात दो इंच लंबी होने वाली लकड़ी! अकबर - बीरबल के दिलचस्प किस्से Short Story in Hindi

अकबर - बीरबल के दिलचस्प किस्से: आज की कहानी में हम आपको बताएंगे मुगल सम्राट अकबर के दरबार के एक दिलचस्प किस्से के बारे में. इस कहानी में एक चोरी का रहस्य है, जिसे सुलझाने के लिए बु...

रातोंरात दो इंच लंबी होने वाली लकड़ी! अक...
रातोंरात दो इंच लंबी होने वाली लकड़ी! अक...


अकबर - बीरबल के दिलचस्प किस्से

एक समय की बात है, धनी व्यापारी करीम को कुछ जरूरी काम से कुछ दिनों के लिए अपने सूबे से बाहर जाना पड़ा। वापस लौटने पर उन्हें एक भयानक दृश्य का सामना करना पड़ा - उनका पूरा खजाना, जो धन-दौलत से भरा हुआ था, खाली पड़ा था। चोर बिना कोई निशान छोड़े सारा धन चुरा ले गया था। करीम निराशा के सागर में डूब गए।

अपना खोया हुआ धन वापस पाने और अपराधी को सजा दिलाने के लिए करीम ने अपने पांच नौकरों को बुलाया। ये वही लोग थे जो उनकी गैरहाजरी में घर पर मौजूद थे। गुस्से और निराशा से भरे हुए करीम ने उन पर चोरी का आरोप लगाया।

"तुम सब की निगरानी में इतनी बड़ी चोरी कैसे हो सकती है?" उन्होंने मांग की। "जब चोर मेरा पूरा खजाना लूट रहा था, तब तुम सब कहाँ थे?"

करीम के आरोपों से चौंके हुए नौकर आपस में घबराए हुए नजरें मिलाने लगे। उनमें से एक युवा हसन थोड़ी सी कांपती आवाज में बोला, "मालिक, हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हमें इस चोरी की कोई जानकारी नहीं थी। चोरी के वक्त हम सब सो रहे थे।"

हालांकि, करीम उनकी बातों से कतई संतुष्ट नहीं हुए। उन्हें शक था कि उनके किसी विश्वासपात्र नौकर ने ही उनके साथ विश्वासघात किया है। वह उस अपराधी को बेनकाब करने के लिए दृढ़ थे। भारी मन से, उन्होंने न्याय के लिए प्रसिद्ध सम्राट अकबर के दरबार जाने का फैसला किया।

सम्राट अकबर के दरबार में पहुंचकर करीम ने अपना दुखड़ा सुनाया। उनकी आवाज पूरे दरबार में गूंज उठी। सम्राट अकबर ने ध्यान से उनकी बात सुनी और उन्हें न्याय दिलाने का वादा किया।

फिर उन्होंने अपने भरोसेमंद सलाहकार बीरबल की तरफ देखा, जो अपनी तेज बुद्धि और चालाकी के लिए जाने जाते थे। सम्राट ने बीरबल को इस रहस्य को सुलझाने का काम सौंप दिया। बीरबल चुनौती स्वीकार करते हुए करीम के साथ उनके घर वापस लौट आए।

वापस पहुंचने पर, बीरबल ने एक बार फिर उन पांचों नौकरों को बुलाया और उनकी आंखों में गौर से देखा। उन्होंने चोरी की रात वे कहाँ थे, इस बारे में पूछताछ की। नौकरों ने फिर से अपनी बेगुनाही का दावा किया।

लेकिन, बीरबल के पास एक योजना थी। उन्होंने हर नौकर को एक साधारण सी दिखने वाली लकड़ी दी। उन्होंने उन्हें बताया कि ये कोई साधारण लकड़ियां नहीं हैं, बल्कि इनमें जादुई शक्तियां हैं। उन्होंने समझाया कि चोर की लकड़ी रातोंरात चमत्कारिक रूप से दो इंच लंबी हो जाएगी और चोर पकड़ा जाएगा।

"कल यहीं वापस आना," बीरबल ने निर्देश दिया, "और देखते हैं कौन सी लकड़ी सच बताती है।"

नौकर, थोड़े उत्सुक और थोड़े आशंकित, लकड़ियां लेकर अपने-अपने कमरों में चले गए।

रात गहराती गई। अगले दिन, बीरबल ने एक बार फिर नौकरों को उनकी लकड़ियों के साथ बुला लिया। जैसा कि उन्होंने हर लकड़ी को ध्यान से देखा, उनके होठों से एक गहरी सांस निकली। राशिद नाम का एक नौकर, जो असली चोर था, उसकी लकड़ी दूसरों से स्पष्ट रूप से दो इंच छोटी थी।

बिना किसी हिचकिचाहट के, बीरबल ने राशिद की ओर इशारा करते हुए कहा, "अपराधी बेनकाब हो गया है!"

अन्य नौकर, स्तब्ध और निराश होकर, राशिद की ओर घूम गए, उनकी आंखों में विश्वासघात झलक रहा था। राशिद, जिसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था, वह सिर्फ शर्म से सिर झुका सकता था।

सम्राट अकबर, रहस्य खुलते देख, एक बार फिर बीरबल की सूझबूझ से प्रभावित हुए। उन्होंने बीरबल की चतुराई की सराहना की और राशिद को उसके अपराध के लिए दंडित करने का आदेश दिया।

करीम, अपना खोया हुआ खजाना वापस पाकर और चोर के बेनकाब होने से खुशी से झूम उठे। उन्होंने बीरबल और सम्राट अकबर का दिल से आभार व्यक्त किया। इस घटना से उन्होंने लालच के परिणाम और ईमानदारी के महत्व को सीख लिया।

करीम ने अपने सभी नौकरों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि बीरबल की लकड़ियों में कोई जादू नहीं था। असली जादू उनकी अपनी ईमानदारी में होता। चोरी का डर ही राशिद को बेनकाब कर गया।

यह सुनकर राशिद को अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी चालाकी उसे इस तरह फंसा देगी। करीम ने उसे माफ तो नहीं किया, पर उसे एक और मौका जरूर दिया। राशिद ने ईमानदारी से काम करने का वादा किया और अपनी गलती सुधारने की कसम खाई।

इस तरह, बीरबल की चतुराई और करीम की सतर्कता से न सिर्फ खजाना वापस मिला बल्कि राशिद को भी एक सबक सीखने का मौका मिला। कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी का मार्ग ही सही रास्ता है। गलत रास्ते पर चलने से भले ही शुरुआत में फायदा हो, पर अंत में पछतावा ही हाथ लगता है।

चर्चा में