ऊँट के मुँह में जीरा: मुहावरे की उत्पत्ति, उपयोग और 5 छोटी कहानियाँ

"ऊँट के मुँह में जीरा" एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है जो उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी बड़ी आवश्यकता या समस्या के समाधान के लिए किया गया प्रयास बहुत ही छोटा या अपर्याप्त होता है।

ऊँट के मुँह में जीरा: मुहावरे की उत्पत्त...
ऊँट के मुँह में जीरा: मुहावरे की उत्पत्त...


ऊँट के मुँह में जीरा मुहावरे का अर्थ

यह मुहावरा उस स्थिति को व्यक्त करता है जब किसी बड़ी समस्या के समाधान के लिए किया गया प्रयास बहुत ही तुच्छ या अपर्याप्त होता है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां ज़रूरत बहुत बड़ी होती है, लेकिन मदद बहुत छोटी होती है।

मुहावरे की उत्पत्ति

इस मुहावरे की उत्पत्ति ऊँट की विशालकाय शरीर और उसकी भूख से जुड़ी है। ऊँट एक ऐसा जानवर है जिसे बहुत अधिक भोजन की आवश्यकता होती है। जीरा एक बहुत ही छोटा मसाला है। इसलिए, ऊँट के मुँह में जीरा डालना उसकी भूख मिटाने के लिए बहुत ही अपर्याप्त होगा। इसी विरोधाभास से यह मुहावरा बना है।

मुहावरे का उपयोग

यह मुहावरा अक्सर तब उपयोग किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी बड़ी समस्या के समाधान के लिए बहुत ही छोटा या अपर्याप्त प्रयास करता है। यह एक व्यंग्यात्मक तरीके से उस प्रयास की अपर्याप्तता को व्यक्त करता है।

कुछ उदाहरण:

कर्ज़ चुकाना: रमेश पर लाखों का कर्ज़ है और उसने दस हज़ार रुपये की बचत की है। यह तो ऊँट के मुँह में जीरा है!

भूख मिटाना: मोहन को बहुत ज़ोर की भूख लगी है और उसके पास बस एक बिस्कुट है। यह तो ऊँट के मुँह में जीरा हुआ!

प्यास बुझाना: रेगिस्तान में फँसे व्यक्ति के पास बस एक घूँट पानी बचा है। यह तो ऊँट के मुँह में जीरा है!

सीख

यह मुहावरा हमें सिखाता है कि हमें समस्याओं के समाधान के लिए उचित और पर्याप्त प्रयास करने चाहिए। छोटे-मोटे प्रयासों से बड़ी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें समस्या की गंभीरता को समझना चाहिए और उसके अनुसार ही कदम उठाने चाहिए।

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