प्रेमचंद की कहानी 'कफन' : गरीबी, संवेदनहीनता और समाज का दर्पण! कफन कहानी का सारांश
प्रेमचंद की कहानी "कफन" भारतीय ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और मानव प्रवृत्तियों का सजीव चित्रण करती है। यह कहानी घीसू और माधव नामक बाप-बेटे की जोड़ी पर आधारित है, जो गरीबी, आलस्य और...
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कहानियाँ Last Update Wed, 05 February 2025, Author Profile Share via
कफन: कहानी का सारांश
घीसू और माधव दोनों पिता-पुत्र हैं, जो गांव के सबसे निकम्मे और कामचोर माने जाते हैं। दोनों को काम करने की आदत नहीं है। घीसू पहले थोड़ा बहुत खेती का काम करता था, लेकिन अब वह भी बिल्कुल आलसी हो चुका है। माधव भी अपने पिता की तरह लापरवाह और आलसी है। दोनों मिलकर एक दिन काम करते हैं और तीन दिन आराम। इनके आलसीपन और निकम्मेपन का यह आलम है कि जब घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता, तो ये लोग गांव में भीख मांगकर या किसी के घर से थोड़ा-बहुत काम करके गुज़ारा करते हैं।
घीसू की पत्नी मर चुकी है, और अब घर में बस तीन लोग हैं - घीसू, माधव और माधव की गर्भवती पत्नी। माधव की पत्नी गर्भवती होने के बावजूद उनके लिए मेहनत करती है और उन्हें खाना बनाकर खिलाती है। एक दिन, माधव की पत्नी प्रसव पीड़ा से तड़पती है, लेकिन घीसू और माधव को उसकी कोई परवाह नहीं होती। वे दोनों चूल्हे के पास बैठे हुए आलू भून रहे होते हैं और उसकी पीड़ा को अनदेखा कर देते हैं।
जब पत्नी की हालत बहुत खराब हो जाती है, तो माधव उसके पास जाकर देखता है और घीसू से कहता है कि उसकी हालत बहुत बुरी है, कुछ करना चाहिए। लेकिन दोनों फिर से आलस्य में डूब जाते हैं और उसकी मदद करने की बजाय सो जाते हैं। अगले दिन सुबह जब माधव की पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तब भी दोनों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता।
अब समस्या यह होती है कि पत्नी का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए, क्योंकि उनके पास इतना भी पैसा नहीं है कि कफन खरीद सकें। दोनों गांव के जमींदार और अन्य लोगों से मदद मांगने का फैसला करते हैं। गांव के लोग उनकी स्थिति पर तरस खाकर कुछ पैसे इकट्ठा कर देते हैं ताकि वे कफन खरीद सकें और मृत शरीर का अंतिम संस्कार कर सकें।
लेकिन घीसू और माधव का ध्यान कफन पर नहीं, बल्कि शराब और खाने पर होता है। जब उनके पास पैसे आ जाते हैं, तो वे सोचते हैं कि कफन तो आखिर जल ही जाएगा, तो क्यों न इन पैसों से पेट भर लिया जाए? दोनों बाजार जाते हैं और वहां से शराब और खाना खरीदकर पीने-खाने लगते हैं। वे इस बात पर तर्क करते हैं कि मृत आत्मा को स्वर्ग में अच्छा कफन मिल जाएगा, लेकिन उन्हें अपनी भूख पहले शांत करनी चाहिए।
दोनों खूब खाते-पीते हैं और शराब के नशे में डूबकर अपने दुखों को भूलने की कोशिश करते हैं। इस दौरान, वे यह भी भूल जाते हैं कि घर में एक मृत शरीर पड़ा हुआ है। कहानी के अंत में, दोनों अपनी भूख और लालच के आगे पूरी तरह से हार चुके होते हैं और नैतिकता और इंसानियत के सारे बंधन टूट जाते हैं।
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