क्या है माँ का सच्चा प्यार? बेताल की पहेली और राजा विक्रम का जवाब! Vikram Betal ki Kahani

क्या एक माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी त्याग सकती है? रानी सुशीला की कहानी त्याग, ममता और माँ-बेटे के अटूट बंधन की परीक्षा लेती है. Vikram Betal ki Kahani A Short Story in Hindi

क्या है माँ का सच्चा प्यार? बेताल की पहे...
क्या है माँ का सच्चा प्यार? बेताल की पहे...


बेताल की पहेली

राजा विक्रमादित्य एक बार फिर श्मशान की ओर जा रहे थे। उनके कंधे पर लटका हुआ था कुख्यात बेताल। हर रात की तरह, बेताल एक कहानी सुनाता और फिर एक पेचीदा सवाल पूछता।

बेताल की कहानी

एक शांत राज्य में राजा धर्मदेव राज्य करते थे. उनकी रानी सुशीला रूपवान और बुद्धिमान थीं. उनके जीवन में सिर्फ एक कमी थी - संतान सुख. राजा-रानी हर रोज पूजा-पाठ करते, दान-पुण्य करते पर उन्हें कोई संतान नहीं हुआ. एक दिन, एक ज्योतिषी ने उन्हें सलाह दी कि वे गहरे जंगल में रहने वाले एक ऋषि से आशीर्वाद लें.

राजा-रानी जंगल की कठिन यात्रा करके ऋषि के आश्रम तक पहुँचे. ऋषि उनकी दशा देखकर द्रवित हुए और उन्हें आश्वासन दिया कि जल्द ही उनकी इच्छा पूरी होगी. परंतु, उन्होंने एक शर्त रखी. उन्होंने कहा, "आपको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, लेकिन वह केवल 16 वर्ष के लिए ही जीवित रहेगा." राजा-रानी दुविधा में पड़ गए. संतान सुख तो मिलेगा पर सिर्फ 16 साल के लिए!

राानी सुशीला ने राजा को समझाया, "संतान सुख पाना ही हमारा सौभाग्य होगा. उसकी उम्र ईश्वर के हाथों में है." राजा रानी ने ऋषि की शर्त मान ली. कुछ समय बाद, रानी सुशीला ने एक स्वस्थ्य बालक को जन्म दिया. राजकुमार अर्जुन, दयालु, साहसी और बुद्धिमान था. पूरे राज्य में उसकी चर्चा होती.

परंतु, 16वां जन्मदिन नजदीक आते ही राजा-रानी की खुशियाँ ग़म में बदल गईं. राजकुमार स्वस्थ था, पर ऋषि की भविष्यवाणी उन्हें सताती रही. जन्मदिन के दिन, महल में शोक का माहौल छा गया. उसी रात, अचानक राजकुमार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया. राज वैद्य भी कुछ नहीं कर सके.

अब राजा विक्रम, आप ही बताइए, इस परिस्थिति में रानी सुशीला को क्या करना चाहिए? अपने बेटे को बचाने के लिए वह क्या त्याग कर सकती हैं?

बेताल विक्रम से एक प्रश्न पूछता है

बताइए राजा विक्रम, रानी सुशीला अपने बेटे की जान बचाने के लिए क्या त्याग करेगी? अपना राज्य? अपना जीवन? या कुछ और?

विक्रम का जवाब

राजा विक्रम कहानी सुनकर गहरे विचार में डूब गए. रानी सुशीला की ममता और त्याग की परीक्षा वाकई कठिन थी. थोड़ी देर सोचने के बाद, उन्होंने बेताल को जवाब दिया, "रानी सुशीला अपने बेटे के लिए कुछ भी त्याग कर सकती हैं. शायद, वह..."

विक्रम का जवाब पूरा होने से पहले ही बेताल बीच में कूद पड़ा, "रुको राजा विक्रम! जल्दबाजी में उत्तर मत दो. कहानी अभी अधूरी है."

बेताल मुस्कुराया और आगे सुनाने लगा, "उस रात, रानी सुशीला मंदिर में जाकर देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने घुटने के बल गिरी. उसने आँखों से आंसू बहाते हुए प्रार्थना की, 'हे देवी! आप सभी माताओं की रक्षक हैं. मेरा बेटा मेरी आँखों का तारा है. उसे बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ. कृपया, मेरी उम्र मेरे बेटे को दे दें. उसे लंबी आयु प्रदान करें. मैं खुशी से अपने शेष जीवन का त्याग कर दूंगी.'"

रानी सुशीला की सच्ची ममता और त्याग से देवी दुर्गा प्रसन्न हुईं. एक दिव्य प्रकाश मंदिर में फैल गया. अगले दिन, राजकुमार अर्जुन पूरी तरह स्वस्थ हो गया था, लेकिन रानी सुशीला कमजोर और बूढ़ी हो चुकी थीं. उनकी सारी जवानी उनके बेटे में वापस आ गई थी.

यह देखकर पूरा राज्य स्तब्ध रह गया. राजा धर्मदेव समझ गए कि रानी सुशीला ने अपने पुत्र के लिए कितना बड़ा त्याग किया है. राज्य में रानी सुशीला की ममता और त्याग की चर्चा होने लगी.

कुछ समय बाद, रानी सुशीला शांति से सो गईं. उन्हें पूरे राज्य में एक महान माता के रूप में सम्मान दिया गया. राजकुमार अर्जुन एक महान राजा बने. उन्होंने अपनी माँ के त्याग को कभी नहीं भुलाया और हमेशा माता को सम्मान दिया.

अब राजा विक्रम, आप बताएं, क्या रानी सुशीला का त्याग सार्थक था? क्या माँ का प्यार वाकई इतना महान होता है?

राजा विक्रम ने बेताल की कहानी सुनी और सिर हिलाकर कहा, "हाँ, रानी सुशीला का त्याग वाकई सार्थक था. एक माँ का प्यार दुनिया का सबसे महान प्यार होता है. अपने बच्चे के लिए वो अपनी खुशियाँ, यहाँ तक कि अपनी जिंदगी भी कुर्बान कर सकती है."

बेताल राजा विक्रम के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ. वो चालाकी से मुस्कुराया और बोला, "शायद आप सही कहते हैं, राजा विक्रम. पर क्या हर माँ का प्यार एक जैसा होता है? कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. जरा सुनिए..."

बेताल ने कहानी आगे बढ़ाई, "कुछ साल बाद, पड़ोसी राज्य के राजा, हेमंत, ने युद्ध की घोषणा कर दी. राजा धर्मदेव बूढ़े हो चुके थे और युद्ध के लिए तैयार नहीं थे. राजकुमार अर्जुन युद्ध का नेतृत्व करने के लिए तैयार हुआ. रानी सुशीला, हालांकि अब बूढ़ी थीं, पर उनके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी."

"युद्ध के मैदान में राजकुमार अर्जुन और राजा हेमंत आमने-सामने आए. युद्ध भयंकर था. दोनों तरफ से कई सैनिक मारे गए. अचानक, राजा हेमंत ने राजकुमार अर्जुन पर वार किया. राजकुमार अर्जुन बच नहीं पाए और घायल होकर जमीन पर गिर पड़े."

"यह देखकर रानी सुशीला युद्धस्थल पर दौड़ पड़ीं. उन्हें अपने बेटे की हालत देखी नहीं गई. वो चीखते हुए राजकुमार अर्जुन के पास पहुँचीं और उन्हें गोद में ले लिया. तभी, एक विचित्र घटना घटी. रानी सुशीला के स्पर्श से राजकुमार अर्जुन के घाव भरने लगे और उनकी ताकत लौटने लगी."

"यह देखकर सभी सैनिक अवाक् रह गए. रानी सुशीला कमजोर दिख रही थीं, पर उनके हाथों से एक अद्भुत शक्ति निकल रही थी. राजकुमार अर्जुन ताकत से भर उठे और युद्ध जीत लिया. युद्ध के बाद, अर्जुन अपनी माँ के पास गए और पूछा, 'माँ, यह कैसे हुआ? आपके स्पर्श से मुझे नई शक्ति मिल गई!' "

रानी सुशीला ने बेटे को गले लगाते हुए धीमी आवाज में कहा, "बेटा, याद है उस रात मैंने देवी दुर्गा से क्या माँगा था? मैंने अपनी उम्र तुम्हें दे दी थी, लेकिन बदले में मैंने उनसे एक वरदान माँगा था. वो वरदान था - तुम्हारी रक्षा करने की शक्ति. जब भी तुम्हें खतरा होगा, मेरा प्यार तुम्हें बचा लेगा."

यह सुनकर राजकुमार अर्जुन भावुक हो गए. उन्हें अपनी माँ के त्याग का असली अर्थ समझ आ गया. उन्होंने रानी सुशीला से वादा किया कि वो हमेशा उनकी रक्षा करेंगे और उनके त्याग को कभी नहीं भूलेंगे.

बेताल का प्रश्न

अब राजा विक्रम, आप ही बताइए, रानी सुशीला का प्यार कितना अद्भुत था? क्या माँ का त्याग ही संतान की सबसे बड़ी ढाल होता है?

राजा विक्रम का जवाब

राजा विक्रम ने बेताल की कहानी सुनकर द्रवित होकर कहा, "बिल्कुल, बेताल! रानी सुशीला का प्यार अद्भुत और अथाह है. एक माँ का त्याग ही उसकी संतान की सबसे बड़ी ढाल होता है. रानी सुशीला ने न सिर्फ अपने बेटे को जीवनदान दिया, बल्कि युद्ध में भी उसकी रक्षा की. उनके जैसा त्याग और ममता संसार में कहीं नहीं मिलती."

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