गुरु नानक देव जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 ईस्वी में तलवंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता मेहता कालू जी और माता तृप्ता देवी थीं। जन्म नाम नानक था। बचपन से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति और गहन चिंतन के लिए जाने जाते थे। सांसारिक चीज़ों से कम और आध्यात्मिक खोज से अधिक जुड़ाव उनका जीवन मार्ग बना।
ईश्वरीय अनुभूति और आध्यात्मिक जागरण
युवावस्था में Guru Nanak Dev Ji को रावी नदी के किनारे ध्यान करते समय दिव्य अनुभव हुआ। अलौकिक ज्योति का दर्शन हुआ और उन्हें ईश्वर का संदेश मिला। इसी क्षण से उन्होंने अपना जीवन ईश्वर की भक्ति और मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
भ्रमण और उपदेश
गुरु नानक देव जी ने भारत ही नहीं बल्कि तिब्बत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को उदासियाँ कहा जाता है। उन्होंने अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों से संवाद किया और लोगों को उपदेश दिया:
- एक ईश्वर (ੴ इक ओंकार) की उपासना
- समानता, भाईचारा और सहिष्णुता
- जाति-पाति भेद, मूर्तिपूजा और आडंबर का विरोध
सिख धर्म की स्थापना और मूल मंत्र
गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी। उनका मूल मंत्र था – "नाम जपो, कीरत करो, वंड छको" (ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी से कमाओ और जरूरतमंदों के साथ बाँटो)। यही आज भी सिख धर्म की आधारशिला है।
गुरुद्वारों की स्थापना और लंगर परंपरा
गुरु नानक देव जी ने सामुदायिक जीवन को मजबूत करने के लिए गुरुद्वारों की स्थापना की। यहाँ सभी धर्मों और जातियों के लोगों का स्वागत था। लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा भी उन्होंने शुरू की, जो आज पूरी दुनिया में सिख धर्म की सबसे पवित्र परंपरा मानी जाती है।
गुरु परंपरा की शुरुआत
जीवन के अंतिम समय में उन्होंने गुरु अंगद देव जी को उत्तराधिकारी बनाया। इस प्रकार सिख धर्म में गुरु परंपरा की नींव पड़ी।
गुरु नानक देव जी की विरासत
गुरु नानक देव जी का जीवन केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक सुधार का भी प्रतीक है। उन्होंने समानता, भाईचारा, सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी विश्व शांति और मानवता के लिए प्रेरणा हैं।
गुरु नानक देव जी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ
| जन्म | कार्तिक पूर्णिमा, 1469 (तलवंडी, पाकिस्तान) |
| जन्म नाम | नानक |
| माता-पिता | मेहता कालू जी और तृप्ता देवी |
| धर्म | सिख धर्म के संस्थापक |
| मुख्य उपदेश | "ੴ इक ओंकार" (एक ईश्वर) |
| विरोध | जाति-पाति भेद, मूर्तिपूजा, आडंबर |
| मूल मंत्र | "नाम जपो, कीरत करो, वंड छको" |
| स्थापना | गुरुद्वारे और लंगर परंपरा |
| उत्तराधिकारी | गुरु अंगद देव जी |
| जयंती | प्रकाश पर्व (गुरु नानक जयंती) |
| उपदेश संग्रह | गुरु वाणी |
| शिक्षाएँ | गुरुबाणी |

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