भारत की लोककविता में दोहे सादगी और गहराई का अनूठा संगम होते हैं। संत-कवि कबीर का यह दोहा हमें मानव संबंधों की वास्तविकता और सहस्त्र व्यवहार का संदेश देता है।
दोहे का शाब्दिक पाठ
कबीरा इस संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
सबसे हँस-मिल बोलिए, नदी–नाव संजोग॥
दोहे का सरल शब्दार्थ:
“कबीरा कहते हैं कि इस दुनिया में हर तरह के लोग मिलेंगे—कुछ खुशमिजाज, कुछ गंभीर, कुछ मिलनसार, कुछ ठीक से बात नहीं करते। फिर भी हम सबके साथ मुस्कराकर और प्यार से मिलना-जुलना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे नदी और नाव एक-दूसरे से मजबूती से जुड़ी होती हैं। नाव नदी के पानी के साथ बिना किसी संयोग या वजह के नहीं चलती, बल्कि नदी का साथ होते हुए ही नाव आगे बढ़ती है।”
“भाँति-भाँति के लोग”: लोगों के स्वभाव और तरीके बहुत अलग-अलग होते हैं।
“सबसे हँस-मिल बोलिए”: सामने वाला जो भी हो, गर्मजोशी और मुस्कान के साथ बात करें।
“नदी–नाव संजोग”: नाव और नदी का साथ सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि एक आवश्यक संबंध है—जहाँ नदी है, वहीं नाव मजबूती से रहती है।
इस दोहे से सीख: चाहे कोई भी हो, सबको अपनत्व और सम्मान के साथ स्वीकार करें, तभी संबंध मजबूत होते हैं और मन खुश रहता है।
गहनार्थ और भावार्थ
विविधता में एकता
संसार विविधताओं से भरा है—कुछ लोग मिलनसार हैं तो कुछ रूखे, कुछ संवेदनशील तो कुछ भावुक नहीं।
इन भिन्नताओं के बीच भी हमें मिलनसार बने रह कर एकता स्थापित करनी चाहिए।
सौहार्दपूर्ण व्यवहार
“सबसे हँस-मिल बोलिए” का सीधा-सा उपदेश है कि चाहे सामने वाला जैसा भी हो, हम गर्मजोशी और सम्मान के साथ व्यवहार करें।
हँसी और मधुर वाणी से दरारें मिटती हैं, और नए संबंध बनते हैं।
नदी और नाव का प्रतिरूप
नदी जहाँ भी बहती है, नाव उसी के साथ चलती है—यह स्थिरता और समर्पण का प्रतीक है।
जैसे नदी और नाव में विश्वास और अनुग्रह का संबंध है, वैसे ही मनुष्य-मनुष्य के बीच भी विश्वास और सहयोग होना चाहिए।
जीवन में आवश्यकता
समाज में सामंजस्य
विविध व्यक्तियों से मिलकर ही समाज का ताना-बाना बुना जाता है। सौहार्द न हो तो समाज में दूरी और कलह बढ़ जाती है।
हँसकर मिलने से आपसी समझ बढ़ती है, संघर्ष कम होते हैं, और सहयोग के अवसर बनते हैं।
व्यक्तिगत संतोष
दूसरों से मधुर संबंध बनने पर आत्मा को शांति मिलती है।
नकारात्मकता, द्वेष और कटुता दूर होती है, मन हल्का-सा और प्रसन्न रहता है।
व्यवसायिक लाभ
कामकाजी जीवन में आपके साथ काम करने वाले—सहकर्मी, ग्राहक, भागीदार—जो भी हों, मित्रवत् व्यवहार से भरोसा बनता है।
भरोसे के साथ काम में गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ती है।
मानवता का सार्वभौमिक संदेश
कबीर का यह दोहा धर्म, जाति, भाषा या संस्कृति की सीमाओं से परे जाकर “सभी के साथ मिलकर चलने” का संदेश देता है।
वैश्विक स्तर पर यदि हम इस सिद्धांत को अपनाएँ, तो शांति, सौहार्द और सहयोग के नए मार्ग खुलेंगे।

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