विक्रम और बेताल
राजा विक्रमादित्य एक तांत्रिक को पकड़ कर ला रहे थे। रास्ते में तांत्रिक, जिसे बेताल कहते थे, कहानी सुनाने लगा:
बेताल की कहानी
एक राज्य में एक राजा था जिसके तीन मंत्री थे। राजा उन तीनों मंत्रियों पर बहुत भरोसा करता था। एक दिन, राजा को किसी दूर के राज्य से युद्ध करने जाना पड़ा। जाते समय उसने राज्य का पूरा भार उन तीनों मंत्रियों को सौंप दिया।
युद्ध कई महीनों तक चला। इस दौरान, तीनों मंत्रियों ने आपस में मिलकर राज्य का खजाना लूट लिया। उन्होंने सोचा कि जब राजा वापस आएगा तो उन्हें सजा दे देगा, इसलिए वे राज्य छोड़कर भागने का फैसला करते हैं।
लेकिन उनमें से एक मंत्री, जो सबसे बुद्धिमान था, उसने कहा, "हमें भागने की जरूरत नहीं है। राजा को अभी पता नहीं चलेगा कि हमने चोरी की है। हम एक ऐसा नाटक रचते हैं जिससे राजा को लगेगा कि हम बेगुनाह हैं।"
मंत्रियों का प्लान
उसने अपने साथी मंत्रियों को अपना प्लान बताया। जब राजा युद्ध जीतकर वापस आया, तो उसने राज्य की खराब हालत देखी और बहुत क्रोधित हुआ। उसने तीनों मंत्रियों को बुलाया और पूछा, "मेरे जाने के बाद राज्य का क्या हाल हुआ?"
पहले मंत्री ने रोते हुए कहा, "महाराज, एक भयंकर अकाल पड़ा है। अकाल की वजह से खजाना खाली हो गया है।"
दूसरे मंत्री ने कहा, "हां महाराज, हमने जनता की मदद करने के लिए खजाना खर्च कर दिया।"
तीसरे मंत्री ने आगे बढ़कर कहा, "महाराज, ये दोनों झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने ही चोरी की है।"
राजा का निर्णय
राजा को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने पहले और दूसरे मंत्री को जेल में डालने का आदेश दिया। तीसरे मंत्री को उसने अपना सबसे विश्वासपात्र मंत्री बना लिया।
कुछ दिनों बाद, जेल में बंद दोनों मंत्रियों में से एक ने दूसरे से कहा, "देखा, कितनी चालाकी से उसने हमें फंसा दिया। हमें तो पता ही नहीं था कि वह इतना चालाक है।"
उनकी बातें जेल के बाहर खड़े तीसरे मंत्री ने सुन लीं। वह जेल में गया और उन दोनों से पूछा, "तुम किस बारे में बात कर रहे हो?"
दोनों मंत्रियों ने सब कुछ बता दिया। यह सुनकर तीसरा मंत्री घबरा गया। उसने सोचा कि अब राजा को पता चल जाएगा कि उसने भी चोरी की है।
वह जेल से बाहर आया और राजा के पास जाकर बोला, "महाराज, मैंने एक बहुत बड़ा गुनाह किया है। मैंने भी खजाने से चोरी की है।"
राजा को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, "तुमने ऐसा क्यों किया?"
ईमानदारी का रास्ता ही सबसे अच्छा
तीसरे मंत्री ने कहा, "महाराज, मैंने सोचा था कि आप मुझे पकड़ लेंगे, इसलिए मैंने झूठ बोला और उन दोनों को फंसा दिया। लेकिन अब मैं अपने गुनाह की सजा भुगतना चाहता हूं।"
राजा को उसकी ईमानदारी देखकर बहुत खुशी हुई। उसने उसे माफ कर दिया और पहले दो मंत्रियों को भी जेल से रिहा कर दिया। उसने यह सीखा कि चालाकी से मिली सफलता स्थायी नहीं होती, ईमानदारी का रास्ता ही सबसे अच्छा है।
बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा तीनों मंत्रियों में सबसे बुद्धिमान कौन ?
बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा, "राजन्, मुझे बताओ, इन तीन मंत्रियों में सबसे बुद्धिमान कौन था?"
राजा विक्रमादित्य ने कहा, तीनों मंत्रियों में सबसे बुद्धिमान कौन था, यह कहना मुश्किल है।
पहला मंत्री अपनी चालाकी से राजा को झूठ बोलकर बच गया।
दूसरा मंत्री पहले मंत्री के साथ मिलकर चोरी करने में शामिल था।
तीसरा मंत्री सबसे पहले तो झूठ बोलकर बचने की कोशिश करता है, लेकिन बाद में अपनी ईमानदारी दिखाता है।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि:
- चालाकी से मिली सफलता स्थायी नहीं होती।
- ईमानदारी का रास्ता ही सबसे अच्छा है।
- सच्ची बुद्धि ईमानदारी और विनम्रता में होती है।
यह कहना मुश्किल है कि इन तीनों में से कौन सबसे बुद्धिमान था।
यदि आप बुद्धिमानी को चालाकी से जोड़ते हैं, तो पहला मंत्री सबसे बुद्धिमान था।
यदि आप बुद्धिमानी को ईमानदारी से जोड़ते हैं, तो तीसरा मंत्री सबसे बुद्धिमान था।
अंत में, यह आप पर निर्भर करता है कि आप बुद्धिमानी को कैसे परिभाषित करते हैं।

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