छठ पूजा क्या है? इतिहास और महत्व
“छठ” शब्द संस्कृत के “षष्ठी” से बना है जिसका अर्थ होता है “छठा दिन”। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का महान उत्सव है। छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन मनाई जाती है और इसे भारत के सबसे पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। यह केवल धार्मिक कार्यक्रम नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के बीच संतुलन का प्रतीक है।
सूर्य देव को समस्त ब्रह्मांड का ऊर्जा स्रोत माना गया है। उनकी किरणों से ही जीवन संभव है। छठ व्रत सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने का माध्यम है — यह दर्शाता है कि मनुष्य अपनी भक्ति और अनुशासन के बल पर दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।
छठ पूजा का पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
रामायण में वर्णन है कि जब भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे तब माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा की थी। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोगों ने सूर्य उपासना को जीवन का हिस्सा बना लिया।
महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि द्रौपदी और पांडवों ने भी सूर्य देव की उपासना कर अपने कष्टों से मुक्ति पाई थी। इसी कारण छठ व्रत को “कृतज्ञता का पर्व” भी कहा जाता है।
छठ पूजा 2025 की तिथियां और चार पवित्र दिन
साल 2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाई जाएगी।
- पहला दिन – नहाय-खाय: 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार)
- दूसरा दिन – खरना: 26 अक्टूबर 2025 (रविवार)
- तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
- चौथा दिन – उषा अर्घ्य: 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार)
पहला दिन – नहाय-खाय (शरीर और आत्मा की शुद्धि)
पहले दिन व्रती सुबह नदियों या पवित्र जलाशयों में स्नान करते हैं और घर में सात्विक भोजन बनाते हैं। यह दिन शरीर की शुद्धि और आत्म-संयम का प्रतीक होता है। व्रती केवल एक बार भोजन करते हैं — आमतौर पर कद्दू-भात और चने की दाल। यह आहार ऊर्जा प्रदान करता है और अगले तीन दिनों के उपवास के लिए शरीर को तैयार करता है।
दूसरा दिन – खरना (संकल्प और संयम का दिन)
खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर, रोटी और केले का प्रसाद बनाते हैं। यह प्रसाद केवल घर के पवित्र वातावरण में तैयार किया जाता है। खरना का अर्थ है “पापों की क्षमा” — माना जाता है कि इस दिन का उपवास व्यक्ति को भीतर से शुद्ध करता है।
इस अवसर पर परिवार और पड़ोसी एकत्र होकर “छठी मैया” के गीत गाते हैं। वातावरण भक्ति और शांति से भर जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य की पूजा)
तीसरे दिन शाम को व्रती नदी या तालाब के तट पर पहुँचते हैं। मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं, बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, ईख और नारियल रखा जाता है। डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है।
डूबते सूर्य की पूजा का अर्थ है — जीवन में विनम्रता और अस्तित्व की स्वीकृति। यह दर्शाता है कि अंत भी उतना ही पवित्र है जितनी शुरुआत। इस क्षण की आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यधिक होती है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (उगते सूर्य की आराधना)
आखिरी दिन सुबह-सुबह व्रती और परिवारजन नदी के किनारे जाते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह क्षण पूर्णता और नव-आशा का प्रतीक है। व्रती अपनी कामनाओं और संकल्पों की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है।
छठ पूजा के दौरान पूजा सामग्री
- बांस की टोकरी और सुप
- मिट्टी के दीपक और दिया-बाती
- ईख, नारियल, ठेकुआ, केला, अमरूद, सिंघाड़ा
- गुड़, चावल और गेहूं का आटा
- जल पात्र और दूध का कलश
छठ पूजा की तैयारी और वातावरण
पूरे बिहार और पूर्वी भारत में छठ से पहले घरों की सफाई, दीवारों की लिपाई और पवित्रता बनाए रखी जाती है। नदी-घाटों की सजावट की जाती है। बच्चे छठ गीत गाते हैं और महिलाएं नई साड़ियाँ पहनकर घाट की ओर जाती हैं।
गांव-गांव में लोकगीत और भजन गूंजते हैं जैसे — “केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव” या “छठी मईया के पूजा।” यह संगीत वातावरण में अध्यात्मिकता घोल देता है।
सूर्य उपासना का दार्शनिक अर्थ
सूर्य देव को साक्षात् भगवान का स्वरूप माना गया है। वे ऊर्जा, प्रकाश और जीवन के स्रोत हैं। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना यह सिखाता है कि हर स्थिति में संतुलन बनाए रखना चाहिए — चाहे जीवन में उतार हो या चढ़ाव।
छठ व्रत का अनुशासन और त्याग
छठ व्रत में चार दिन तक अत्यंत अनुशासन आवश्यक होता है। व्रती केवल सात्विक भोजन लेते हैं, ज़मीन पर सोते हैं और किसी भी प्रकार की अशुद्ध वस्तु या व्यवहार से दूर रहते हैं।
यह व्रत व्यक्ति को सिखाता है कि आत्म-नियंत्रण ही सच्चा सुख है। आज के तनाव-भरे युग में यह त्योहार मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनूठा साधन है।
छठ पूजा में परिवार की भूमिका
यह पर्व पारिवारिक एकता और सहयोग का भी प्रतीक है। व्रती के साथ पूरा परिवार उसकी सहायता में रहता है। बच्चे प्रसाद तैयार करते हैं, पुरुष घाट सजाते हैं और महिलाएँ गीत गाती हैं।
इस तरह छठ पूजा केवल धार्मिक व्रत नहीं बल्कि संयुक्त परिवार और सामाजिक एकता का सुंदर उदाहरण है।
छठ पूजा से जुड़े लोकविश्वास
- माना जाता है कि छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और परिवार को निरोग रखती हैं।
- जो व्रती सच्चे मन से छठ मनाता है उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होती हैं।
- सूर्य को अर्घ्य देते समय मन में शुद्ध विचार रखना अत्यंत आवश्यक है।
छठ पूजा 2025 केवल पूजा या व्रत नहीं बल्कि प्रकृति, विज्ञान और अध्यात्म के संगम का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि जब हम आत्म-संयम, शुद्धता और कृतज्ञता के साथ जीवन जीते हैं तो हर दिन उगते सूर्य की तरह नई ऊर्जा लेकर आता है।
इस वर्ष 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक जब पूरा आकाश सूर्य की आराधना से झिलमिलाएगा तब हर भक्त के मन में यही भावना गूंजेगी —
“सूर्य देव, हमारी आस्था को प्रकाश दें, और छठी मैया हमारे घर को सुख-समृद्धि से भर दें।”
छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व
छठ पूजा केवल सूर्य देव की आराधना नहीं है बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, मानसिक एकाग्रता और कृतज्ञता की गहराई को दर्शाती है। इस व्रत के दौरान व्रती पूरी श्रद्धा और अनुशासन से उपवास करते हैं। कहा जाता है कि जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को त्याग कर केवल भक्ति में लीन हो जाता है तो वह स्वयं में दिव्यता को अनुभव करता है।
छठ पूजा का मूल भाव यही है — “अहंकार का त्याग और आस्था का स्वीकार।” सूर्य देव को दिया गया अर्घ्य केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि यह उस ऊर्जा को समर्पण है जो समस्त जीवन को चलाती है।
छठ पूजा की कथा (Chhath Puja Katha)
छठ पूजा की कथा अत्यंत प्रेरणादायक और पौराणिक रहस्यों से भरी है। इस कथा में भक्ति, कृतज्ञता और सूर्य उपासना की शक्ति का गहरा संदेश निहित है।
1️⃣ प्रथम कथा — सूर्यपुत्र कर्ण की उपासना
कहा जाता है कि महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्य देव की उपासना करते थे।
वे जल में खड़े होकर घंटों ध्यान लगाते थे और सूर्य को अर्घ्य देते थे।
सूर्य देव से प्राप्त ऊर्जा और आशीर्वाद ही उनकी अद्भुत शक्ति का स्रोत थी।
इसी से प्रेरित होकर लोगों ने सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू की जो आगे चलकर “छठ पूजा” के रूप में प्रसिद्ध हुई।
2️⃣ द्वितीय कथा — राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की संतान प्राप्ति
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी रानी मालिनी के कोई संतान नहीं थी।
उन्होंने महर्षि कश्यप की सलाह पर एक यज्ञ करवाया जिसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र मिला लेकिन वह मृत पैदा हुआ।
दुःखी राजा-रानी ने भगवान सूर्य की उपासना की और गहन तप किया।
तभी आकाश से देवी छठी प्रकट हुईं और उन्होंने कहा —
“हे राजा, मैं प्रकृति की छठी शक्ति हूँ। मैं तुम्हारे पुत्र को जीवन दूँगी।”
रानी ने श्रद्धा से व्रत किया और देवी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ।
तब से छठ व्रत को संतान-सुख और परिवार की रक्षा के लिए मनाया जाने लगा।
3️⃣ तृतीय कथा — माता सीता की आराधना
जब भगवान श्रीराम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे तब माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा की थी।
उन्होंने व्रत रखकर अपने परिवार और राज्य की समृद्धि की कामना की।
तब से यह परंपरा लोक में फैल गई और “छठ पर्व” के रूप में मनाई जाने लगी।
4️⃣ चतुर्थ कथा — द्रौपदी और पांडवों की भक्ति
महाभारत के अनुसार जब पांडव कठिन समय से गुजर रहे थे तब द्रौपदी ने सूर्य देव की आराधना की थी।
उन्होंने छठी देवी का व्रत रखा और उनसे शक्ति व समृद्धि की कामना की।
इस व्रत के बाद उनके जीवन में खुशहाली लौटी और वे अपने सभी संकटों से मुक्त हो गए।
इसलिए छठ पूजा को “कष्टों से मुक्ति देने वाला पर्व” भी कहा जाता है।
कथा का संदेश
इन सभी कथाओं में एक ही संदेश छिपा है —
सूर्य देव और छठी मैया की भक्ति से जीवन में ऊर्जा, समृद्धि, और परिवार की रक्षा होती है।
यह व्रत हमें सिखाता है कि जब हम पूरी श्रद्धा और संयम के साथ प्रकृति की शक्तियों का आदर करते हैं,
तो जीवन में हर अंधकार मिट जाता है।
छठ पूजा की कथा केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि
“सच्ची भक्ति में शक्ति है, और संयम में सबसे बड़ा सुख।”
सूर्य देव की पूजा का दार्शनिक अर्थ
सूर्य देव को “साक्षात् भगवान” कहा गया है क्योंकि वे सभी के लिए समान रूप से ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करते हैं। वे किसी में भेदभाव नहीं करते — चाहे अमीर हो या गरीब, धर्म या जाति कुछ भी हो। छठ पूजा इसी समानता और उदारता का प्रतीक है।
डूबते और उगते सूर्य दोनों को अर्घ्य देना यह दर्शाता है कि जीवन के हर चरण — आरंभ और अंत — दोनों का समान सम्मान किया जाना चाहिए। यह सिखाता है कि हर परिवर्तन, चाहे सुखद हो या कठिन, जीवन का अनिवार्य हिस्सा है।
छठ पूजा और विज्ञान
विज्ञान की दृष्टि से देखें तो छठ पूजा का हर नियम अत्यंत वैज्ञानिक है।
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने से शरीर को संतुलित तापमान मिलता है।
जल में खड़े रहकर सूर्य दर्शन करने से शरीर में विटामिन D का उत्पादन होता है और रक्त संचार बेहतर होता है।
साथ ही लंबे समय तक ध्यान मुद्रा में रहने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और हार्मोनल संतुलन बनता है।
व्रती जब जल में अर्घ्य देते हैं तब उनकी श्वास और नाड़ी की गति नियंत्रित होती है — यह योग और ध्यान की अवस्था है। इसीलिए कहा जाता है कि छठ पूजा केवल धर्म नहीं बल्कि वैज्ञानिक योग साधना भी है।
छठ पूजा के दौरान अपनाए जाने वाले नियम
- व्रती पूरे व्रत के दौरान सात्विक आहार ग्रहण करते हैं और मांस-मद्य का सेवन वर्जित होता है।
- घर में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- सूर्यास्त और सूर्योदय का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है; अर्घ्य उसी सटीक समय पर दिया जाता है।
- पूजा स्थल पर जूते-चप्पल पहनकर जाना निषिद्ध है।
- छठ के प्रसाद को अत्यंत पवित्र माना जाता है, इसे किसी भी अपवित्र स्थान पर नहीं रखा जाता।
छठ पूजा में ठेकुआ का महत्व
ठेकुआ छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद है। यह गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है। इसे प्रसाद के रूप में सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि ठेकुआ भक्ति और परिश्रम का प्रतीक है क्योंकि इसे बनाने में पूरी श्रद्धा और प्रेम की आवश्यकता होती है।
छठ पूजा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- छठ पूजा किसी भी पंडित या पुरोहित के बिना की जाती है; व्रती स्वयं पूजा करते हैं।
- यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य को सीधे अर्घ्य दिया जाता है।
- छठ पूजा में संगीत, अनुशासन और पवित्रता का अद्भुत संगम होता है।
- कहा जाता है कि छठ पूजा के समय की गई प्रार्थनाएँ तुरंत फल देती हैं क्योंकि उस समय प्रकृति सबसे अधिक संवेदनशील होती है।
छठ पूजा का निष्कर्ष
छठ पूजा 2025 (25 से 28 अक्टूबर) केवल व्रत का समय नहीं है, यह वह क्षण है जब लाखों लोग एक ही भावना से जुड़ते हैं — आस्था, ऊर्जा और प्रकाश।
यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं और अपनी इच्छाओं पर संयम रखते हैं तो जीवन में सबकुछ संभव हो जाता है।
छठ पूजा हमें सिखाती है कि सूर्य सिर्फ आकाश में नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के भीतर चमकता है जो सत्य, अनुशासन और भक्ति के मार्ग पर चलता है।
इसलिए, जब 28 अक्टूबर की सुबह उगता सूरज नदी के जल पर सुनहरी लहरें बिखेरेगा तब हर व्रती की यही प्रार्थना होगी —
“छठी मैया, हमारे जीवन में प्रकाश बना रहे, जैसे यह सूरज कभी नहीं बुझता।”
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