धनतेरस 2025: सम्पन्नता, सेहत और समृद्धि के मंत्र – Dhanteras Tips

धनतेरस 2025 के लिए जानिए पूजा विधि, उचित समय, इतिहास और खरीदारी टिप्स। इस दीपावली शुरुआत पर लक्ष्मी-कुबेर की कृपा पाएं।

धनतेरस 2025: सम्पन्नता, सेहत और समृद्धि के मंत्र – Dhanteras Tips

धनतेरस क्या है? इतिहास और महत्व

“धन” और “तेरस” शब्द मिलकर “धनतेरस” बनता है — जहाँ “धन” का अर्थ है संपत्ति और “तेरस” तेरहवाँ दिन। धनतेरस हिंदू पंचतत्व एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दीपावली पर्व की शुरुआत का संकेत देता है।

ऋषियों के समय से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है — संपदा और स्वास्थ्य की कामना लिए।

लोक-कथाएँ और पौराणिक कथाएँ

धनतेरस की सबसे प्रसिद्ध कहानी है राजा हिम के पुत्र की जिसे चार दिन के विवाह के बाद साँप के काटने से मरने की भविष्यवाणी थी। उसकी नवविवाहिता पत्नी ने सारी चतुराई लगाई — सोने-चाँदी और आभूषणों को बाहर रखा, दीप जलाये और रात भर कहानियाँ सुनाईं। जब यमराज साँप के रूप में आए वह आभूषणों की चमक से चकमका गए और कहानियाँ सुनते-सुनते समय निकल गया। परिणामस्वरूप पुत्र की जान बची और उसी रात से यह त्योहार मनाया जाने लगा।

इसके अलावा, समु्द्र मंथन की कथा कहती है कि इसी दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इस कारण धनतेरस को स्वास्थ्य और आयु से भी जोड़कर देखा जाता है।

धनतेरस 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

2025 में धनतेरस 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। तिथि दिन में आरंभ होकर अगली दोपहर तक रहेगी।

शुभ मुहूर्त (Lakshmi Puja काल) 7:16 PM to 8:20 PM बताया गया है।

महत्वपूर्ण समय और सलाह

  • पूजा से पहले घर को अच्छी तरह साफ-सफाई करना चाहिए।
  • दीप जलाना और यमदीपदान करना शुभ माना जाता है।
  • लक्ष्मी जी की पूजा उसी मुहूर्त में करें जो सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है।
  • सोने-चांदी या नए बर्तन खरीदना शुभ फल देता है।
  • दिन में भोजन हल्का हो और शाम को हल्का फलाहार रखें।

धनतेरस की पूजा विधि: स्टेप बाय स्टेप

नीचे एक विशेष पूजा विधि दी जा रही है जिसे आप पालन कर सकते हैं:

1. तैयारी एवं स्थान चयन

पूजा स्थान साफ हो कपाट व दरवाजे खुले हों। गोमती चक्र, रोली-चावल, फूल, गंध, गुलाब जल, मोदक या मिश्री आदि सामग्री तैयार रखें।

2. देवताओं की स्थापना

मूर्तियाँ या तस्वीरें — देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, भगवान धन्वंतरि, और कुबेर — एकत्र कर पवित्र स्थान पर रखें।

3. प्रणाम एवं दीप प्रज्वलन

सबसे पहले यमदीपदान विधि करें — घर के पिछले भाग की दिशा (दक्षिण दिशा) में दीप जलाना। यह यमराज को प्रसन्न करने और पारिवारिक कल्याण हेतु।

4. पूजा एवं मंत्र जाप

सब देवताओं को स्नान (गंगाजल), वस्त्र चढ़ाना, फूल, रोली, अक्षत अर्पित करें। लक्ष्मी मंत्र एवं धन्वंतरि मंत्र कम-से-कम 108 बार जपें — ॐ धन्वंतरये स्वाहा आदि।

5. अर्पण एवं आरती

खीर, फल, मिठाइयाँ आदि प्रसाद चढ़ाएं। भोग लगाकर आरती करें। अंत में कुबेर-लक्ष्मी आरती करें और “श्रीं लक्ष्म्यै नमः” आदि मंत्र बोलें।

6. धनवापसी और भेंट वितरण

पूजा के बाद सदस्य घर में घूम-घूमकर देवता के आसपास प्रसाद वितरित करें।

धनतेरस पर खरीदारी और शुभ क्रय टिप्स

धनतेरस दिन को “संपत्ति वृद्धि” से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए सोना, चाँदी, नए बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि खरीदना शुभ माना जाता है।

क्या खरीदें?

  • सोना / चांदी की ज्वैलरी या सिक्के
  • नए बर्तन / किचनवेयर
  • नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
  • प्रॉपर्टी या जमीन — बड़े निवेश को शुभ माना जाता है

क्या नहीं खरीदें?

किसी भी कर्ज़, लोन या उधार को इस दिन लेना शुभ नहीं माना जाता। कांच के बर्तन या ग्लास की वस्तुएँ खरीदने से बचें।

धनतेरस: स्वास्थ्य, समृद्धि और सामूहिक भावना

धनतेरस सिर्फ वित्तीय समृद्धि का त्योहार नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, समय, सामूहिक सहयोग और संकल्प का पर्व भी है।

भगवान धन्वंतरि की पूजा से यह सिख मिलती है कि धन और स्वास्थ्य दोनों साथ-साथ चाहिए।

जब परिवार, पड़ोसी, समाज — सब मिलकर दीप जलाते हैं तो अँधेरी रात भी उजाले में बदल जाती है।

धनतेरस और आयुर्वेद संबंध

धनतेरस को ही राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के देवता माना जाता है।

इस दिन हल्का भोजन, उचित दिनचर्या, योग और ध्यान को शामिल किया जाना शुभ रहता है।

धनतेरस कैसे मनाते हैं – विभिन्न प्रदेशों में विविधता

भारत के अलग-अलग भागों में धनतेरस के अनुष्ठान और परंपराएँ अलग होती हैं।

महाराष्ट्र और दक्षिण भारत

यहाँ धनतेरस को “धनत्रयोदशी” कहते हैं। कई जगहों पर “मरुन्डू” तैयार किया जाता है — औषधीय मिश्रण जिसे पूजा के बाद ग्रहण किया जाता है।

गुजरात, राजस्थान, उत्तर भारत

लक्ष्मी जी और कुबेर को विशेष पूजा देकर नए घरेलू सामान की खरीदारी की जाती है। घरों को दीपों और रंगोली से सजाया जाता है।

जैन धर्म में धनतेरस / धान्यतेरस

जैनों द्वारा इस दिन “धान्यतेरस” मनाया जाता है जो मोक्ष और संयम की ओर इशारा करता है।

धनतेरस के आध्यात्मिक लाभ तथा मानसिक शांति

धनतेरस न सिर्फ बाह्य समृद्धि का प्रतीक है बल्कि यह आंतरिक शांति, मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक समृद्धि की ओर मार्गदर्शक भी है। इस दिन की ऊर्जा सकारात्मक होती है जिससे मनोबल बढ़ता है और नकारात्मक विचार कम होते हैं।

पूजा और ध्यान के दौरान मन को शुद्ध रखना चाहिए। सांस की धीमी गति पर ध्यान देना, मंत्र जप का समय उपयोगी बनता है। जब हम धीरज, नम्रता और श्रद्धा के साथ पूजा करें तो मात्र धन ही नहीं, आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है।

धनतेरस और वास्तु-उपाय

धनतेरस के अवसर पर कुछ विशेष वास्तु टिप्स अपनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है:

  • घर के मुख्य द्वार को साफ रखें और हल्की रंगोली व पुष्प अंकन करें।
  • दीपों को घर के चारों ओर रखें — मुख्यतः दीवार किनारों में और पूजा स्थान पर।
  • अकसर कहा जाता है कि सोने-चांदी को घर के पूरब या उत्तर दिशा में रखने से ऊर्जा सकारात्मक बनी रहती है।
  • उपयोगी वस्तुएँ ध्यान से चुनें — जैसे कि बूढ़ी वस्तु न रखें, टूटे-फूटे सामान तुरंत बदलें।

धनतेरस पर इनमें भी ध्यान दें

धनतेरस का लुक केवल पूजा और खरीदारी तक सीमित नहीं है — जीवनशैली, सोच और संबंधों को भी नया दृष्टिकोण दे सकता है।

दान और सेवा

अच्छा है कि इस दिन सिर्फ खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ करें — गरीबों को भोजन, जरूरतमंदों को चादरें, वृद्धाश्रमों में दान इत्यादि। दान करने से मन को तृप्ति मिलती है और सकारात्मक कर्म अपने आप फल देते हैं।

परिवार और सामूहिक पूजा

जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करें, समर्पण और विश्वास और गहरा होता है। बच्चों को इस परंपरा का महत्व समझाना अच्छा रहता है।

धनतेरस के बाद की तैयारी: दीपावली तक यात्रा

धनतेरस के बाद अगले दो दिन नरका चतुर्दशी (छोटी दिवाली) और फिर दीपावली आते हैं। इस दौरान घर की सजावट, मिठाइयाँ आदि की तैयारी शुरू हो जाती है।

व्यापारी दृष्टिकोण

धनतेरस के दिन व्यापारी अपने दुकान, गोदाम, स्टॉक आदि की पूजा करते हैं और नई शुरुआत का संकल्प लेते हैं। लेखा-जोखा ठीक किया जाता है और आने वाले वर्ष की योजनाएँ बनती हैं।

धनतेरस से जुड़े मिथक एवं तथ्य

कुछ मिथक प्रचलित हैं जो वास्तव में सत्य नहीं हैं — उदाहरण के लिए:

  • “धनतेरस पर जितना सामान खरीदा, उतनी वृद्धि होगी” — यह अल्पसमय का सोच हो सकता है। बुद्धिमानी से निवेश अधिक फल देती है।
  • “अगर सोना न खरीदा, धनतेरस अधूरा है” — पूजा, श्रद्धा और कर्म भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।

इन मिथकों से दूर रहकर सत्य और संतुलन की ओर बढ़ना चाहिए।

2025 में धनतेरस पर ध्यान देने योग्य टिप्स

  • सुबह जल्दी उठकर पूजा सामग्री खरीद लें — भीड़ और मूल्यों से बचने के लिए।
  • उन दुकानों/ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की सूची बनाएं जो “धनतेरस सेल” ऑफर कर रही हैं।
  • सोने / चांदी के दाम चेक करें और समय पूर्व फैसला लें — सपाट भावों पर impulsive खरीदारी न करें।
  • एक बजट तय करें ताकि आप आवश्यकता से अधिक खर्च न करें।
  • ऑनलाइन भुगतान के दौरान भरोसेमंद प्लेटफार्म चुनें और सुरक्षा चेक करें।

धनतेरस मनाने का संदेश: विश्वास, योजना और श्रद्धा

धनतेरस हमें यह सिखाता है — धन, स्वास्थ्य और संबंधों का संतुलन ज़रूरी है। कुछ दीप जला देने, पूजा अर्चना करने से ज़्यादा मायने है — सच्ची श्रद्धा, समर्पण और सकारात्मक विचारों की।

इस दिन को एक reset की तरह लें — पुराने दोष, आलस्य, अनुत्तरित समस्या को पीछे छोड़ें और नए उत्साह से आगे बढ़ें।

Frequently Asked Questions

धनतेरस देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह समृद्धि, धन और स्वास्थ्य की कामना का दिन है।

2025 में धनतेरस का शुभ मुहूर्त 7:16 PM से 8:20 PM तक बताया गया है।

हाँ, सोना या चाँदी खरीदना बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि ऐसा करने से धन की वृद्धि होती है।

नहीं — अधिकांश मान्यताओं के अनुसार, इस दिन उधार देना या लेना अशुभ माना जाता है।

यमदीपदान वह परंपरा है जिसमें धनतेरस की रात को दक्षिण दिशा (यमलोक) की ओर दीप जलाते हैं। यह यमराज को प्रसन्न करने और untimely death से परिवार को बचाने की मान्यता से जुड़ा है।

धनतेरस को भगवान धन्वंतरि के दिन भी माना जाता है — वह देवताओं के वैद्य थे। इसलिए इसे आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

हाँ, पूजा से पहले घर की पूरी सफाई और हल्का रंग-रोगन करना शुभ माना जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

धनतेरस के बाद नरका चतुर्दशी, दीपावली आदि त्योहारों की तैयारी शुरू हो जाती है — घर सजाना, मिठाइयाँ बनाना, फुलझड़ियाँ आदि।

हाँ, बच्चों को पूजा की विधि, अर्थ और महत्व बताना अच्छा होता है — इससे वे परम्परा और संस्कृति के साथ जुड़े रहते हैं।

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