भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर : बाबा साहेब जीवन परिचय और उपलब्धियां
डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar), जिन्हें बाबासाहेब आंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है, आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक हैं। यह ब्लॉग (Biography) उनकी असाधारण यात...
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जीवनी Last Update Thu, 25 July 2024, Author Profile Share via
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जन्म और प्रारंभिक जीवन:
डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें "बाबासाहेब" के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू सैन्य छावनी में हुआ था। वे 14 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल, सेना में सूबेदार थे और उनकी माता भीमाबाई, एक गृहिणी थीं।
शिक्षा:
अस्पृश्यता के कारण, भीमराव को शिक्षा प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन, अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
उच्च शिक्षा:
1913 में, उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से विदेश में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति मिली। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. और Ph.D. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से D.Sc. की उपाधि भी प्राप्त की।
सामाजिक कार्य:
अंबेडकर एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना जीवन दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने जाति व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।
राजनीतिक जीवन:
अंबेडकर एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे और उन्होंने भारत के संविधान का निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बौद्ध धर्म अपनाना:
1956 में, अंबेडकर ने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनका मानना था कि बौद्ध धर्म सभी लोगों को समानता और भाईचारा का संदेश देता है।
मृत्यु:
6 दिसंबर 1956 को, 65 वर्ष की आयु में, अंबेडकर का निधन हो गया। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया है।
डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर के जीवन और योगदान को आज भी भारत में बहुत सम्मान दिया जाता है। वे भारत के दलितों और वंचितों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनके कुछ महत्वपूर्ण योगदान:
- भारत के संविधान का निर्माण
- जाति व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन
- दलितों और वंचितों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि
- महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाना
- बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार
डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर एक महान विद्वान, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ और वकील थे। उन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत के इतिहास में एक महान व्यक्तित्व हैं।
डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर: एक प्रेरणादायक जीवनगाथा
डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें आदर से "बाबासाहेब" कहा जाता है, भारत के इतिहास में एक विराट व्यक्तित्व हैं। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू (अब मध्य प्रदेश में डॉ. अंबेडकर नगर) में हुआ था। वह एक दलित परिवार में पैदा हुए थे, जिन्हें उस समय समाज में अछूत माना जाता था। उन्हें बचपन से ही छुआछूत और जाति व्यवस्था के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा।
शिक्षा और संघर्ष:
अपने संघर्षपूर्ण बचपन के बावजूद, भीमराव रामजी अंबेडकर शिक्षा के महत्व को समझते थे। उन्होंने कठिन परिश्रम किया और स्कूल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्हें शिक्षा के दौरान भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, उन्हें कक्षा में अलग बैठाया जाता था और यहाँ तक कि उन्हें पीने के पानी के लिए भी अलग बर्तन दिया जाता था। लेकिन, उन्होंने इन कठिनाइयों को हार नहीं बनने दिया। वह लगातार पढ़ते रहे और उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।
विदेश में शिक्षा और विद्वत्ता:
उनकी प्रतिभा को देखते हुए, उन्हें विदेश में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति मिली। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) से अर्थशास्त्र में मास्टर और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की। डॉ. अंबेडकर एक विपुल पाठक और तीव्र लेखक थे। उन्होंने जाति व्यवस्था, सामाजिक असमानता और भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई शोधपत्र और किताबें लिखीं। उनकी पुस्तक "अछूत: एक भारतीय जाति का अपमान" ने जाति व्यवस्था की कटु सच्चाई को उजागर किया।
सामाजिक सुधारक के रूप में योगदान:
डॉ. अंबेडकर केवल एक विद्वान ही नहीं थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास किया। वह जाति व्यवस्था और छुआछूत के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने मंदिर प्रवेश आंदोलन और महाड सत्याग्रह जैसे कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने "बहिष्कृत हिताकारी सभा" की स्थापना भी की, जिसका उद्देश्य दलितों को शिक्षित करना और उन्हें उनका उचित स्थान दिलाना था।
भारतीय संविधान के निर्माता:
भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में मौलिक अधिकारों, अस्पृश्यता निवारण और आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल करवाया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि भारत का प्रत्येक नागरिक समानता और सामाजिक न्याय प्राप्त कर सके।
बौद्ध धर्म अपनाना:
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म में दलितों के लिए कोई उचित स्थान नहीं है। 1956 में, उन्होंने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म समता और भाईचारा का मार्ग दिखाता है।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की विरासत:
डॉ. अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारतरत्न" से सम्मानित किया गया है। उनका जीवन और संघर्ष आज भी दलितों और वंचित समुदायों के लोगों को शिक्षा, सामाजिक न्याय और समानता के लिए प्रेरित करता है।
डॉ. अंबेडकर की विरासत बहुआयामी है। आइए उनकी विरासत के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को देखें:
संविधान का रक्षक: भारतीय संविधान को मौलिक अधिकारों और सामाजिक न्याय का दस्तावेज बनाने में डॉ. अंबेडकर का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने संविधान में ऐसे प्रावधान शामिल करवाए जिनसे यह सुनिश्चित हुआ कि देश का हर नागरिक, चाहे उसका जन्म किसी भी जाति, धर्म या लिंग में हुआ हो, समान अवसर प्राप्त कर सके।
शिक्षा का महत्व: डॉ. अंबेडकर शिक्षा को सामाजिक बदलाव का सबसे शक्तिशाली हथियार मानते थे। उन्होंने दलित समाज को शिक्षा के लिए लगातार प्रेरित किया और जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण उपकरण माना।
महिलाओं के अधिकारों के समर्थक: डॉ. अंबेडकर महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि सामाजिक न्याय तभी स्थापित हो सकता है, जब महिलाओं को भी समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों। उन्होंने हिंदू कोड बिल के प्रारूप को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य महिलाओं को हिंदू विवाह कानून में अधिकार दिलाना था।
आर्थिक सशक्तीकरण: डॉ. अंबेडकर का मानना था कि सामाजिक समानता आर्थिक समानता के बिना अधूरी है। उन्होंने दलितों के आर्थिक सशक्तीकरण पर भी बल दिया। वह श्रमिकों के अधिकारों के समर्थक थे और उन्होंने श्रमिकों के लिए बेहतर वेतन और कार्य परिस्थितियों की वकालत की।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर भारत के इतिहास में एक प्रेरणादायक शख्सियत हैं। उन्होंने अपने अथक प्रयासों और संघर्षों से सामाजिक न्याय की नींव रखी। उनका जीवन दर्शन हमें यह शिक्षा देता है कि शिक्षा, संघर्ष और आत्मविश्वास के बल पर कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और समाज को बेहतर बनाने में योगदान दे सकता है।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर: एक संक्षिप्त परिचय
जीवन क्षेत्र | विवरण |
जन्म | 14 अप्रैल 1891, महू (मध्य प्रदेश) |
जाति | दलित (महार) |
शिक्षा | बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में एम.ए. कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) से अर्थशास्त्र में एम.ए. और डॉक्टरेट लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से डॉक्टरेट |
सामाजिक कार्य | जाति व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन, दलितों के उत्थान के लिए कार्य, "बहिष्कृत हिताकारी सभा" की स्थापना |
राजनीतिक योगदान | भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष, भारतीय संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका |
धर्म | बौद्ध धर्म (1956 में अपनाया) |
मृत्यु | 6 दिसंबर 1956 |
सम्मान | भारत रत्न |
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