युग-चारण: रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन परिचय! Biography of Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी साहित्य के एक चमकदार तारे थे। उन्हें 'युग-चारण' और 'काल के चारण' की उपाधियां मिलीं, जो उनके राष्ट्रवाद और समय की पीड़ा को व्यक्त करने वाली कविताओं के कार...

युग-चारण: रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन प...
युग-चारण: रामधारी सिंह 'दिनकर' का जीवन प...


रामधारी सिंह 'दिनकर': युग-चारण का जीवन

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी साहित्य के एक चमकदार तारे थे। उन्हें 'युग-चारण' और 'काल के चारण' की उपाधियां मिलीं, जो उनके राष्ट्रवाद और समय की पीड़ा को व्यक्त करने वाली कविताओं के कारण मिलीं।

रामधारी सिंह दिनकर का प्रारंभिक जीवन

जन्म: 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में।

परिवार: भूमिहार ब्राह्मण परिवार से थे।

शिक्षा: पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का भी गहरा अध्ययन किया।

रामधारी सिंह दिनकर का करियर

शिक्षक: बीए करने के बाद एक विद्यालय में अध्यापक बने।

सरकारी सेवा: 1934 से 1947 तक बिहार सरकार में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग में उपनिदेशक रहे।

अकादमिक जीवन: 1950 से 1952 तक लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे। 1963 से 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। इसके बाद भारत सरकार के हिंदी सलाहकार बने।

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक योगदान

कविता: दिनकर की कविता में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार के साथ-साथ कोमल शृंगारिक भावनाओं की भी झलक मिलती है। उनकी प्रमुख कृतियों में 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मि-रथी', 'उर्वशी', 'परशुराम की प्रतीक्षा' आदि शामिल हैं।

गद्य: कविता के अलावा उन्होंने निबंध, संस्मरण, आलोचना, डायरी और इतिहास पर भी लिखा।

रामधारी सिंह दिनकर की विरासत

दिनकर की कविताएं आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। उनके विचार राष्ट्रीयता, मानवता और देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं। उन्हें भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है।

दिनकर का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ।

रामधारी सिंह दिनकर का करियर और साहित्यिक यात्रा

बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद, दिनकर ने एक स्कूल में अध्यापक के रूप में कार्य किया। बाद में वे बिहार सरकार में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पद पर रहे। 1950 से 1952 तक वे मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा, वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे।

दिनकर की कविता यात्रा शुरू हो गई थी जब वे हाई स्कूल में थे। उन्होंने 'युवक' पत्रिका में 'अमिताभ' नाम से कविताएँ लिखना शुरू किया। उनकी पहली कविता संग्रह 'बारदोली विजय' 1928 में प्रकाशित हुआ।

राष्ट्रवाद के कवि रामधारी सिंह दिनकर

दिनकर को आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रवाद, देशभक्ति और क्रांति की भावना का पुट है। 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मि रथी', 'परशुराम की प्रतीक्षा' जैसी उनकी रचनाएँ राष्ट्रीय चेतना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।

रामधारी सिंह दिनकर की अन्य साहित्यिक कृतियाँ

दिनकर ने केवल कविता ही नहीं, बल्कि निबंध, संस्मरण, आलोचना, डायरी, इतिहास आदि विधाओं में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी गद्य रचनाओं में भी राष्ट्रवाद और समाज के प्रति उनकी चिंता झलकती है।

रामधारी सिंह दिनकर का व्यक्तित्व

दिनकर एक गंभीर और संवेदनशील कवि थे। वे देशभक्ति और राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। वे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाते थे।

रामधारी सिंह दिनकर का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

रामधारी सिंह दिनकर ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रत्यक्ष रूप से सड़कों पर उतरकर भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना को जगाने और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

दिनकर का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान निम्न प्रकार से था:

देशभक्ति की भावना जगाना: उनकी कविताओं में देशभक्ति की गहरी भावना झलकती थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देश प्रेम की भावना जगाई और उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।

राष्ट्रीय एकता पर जोर: उनकी कविताओं में राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया गया था। उन्होंने विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के लोगों को एकजुट होने का आह्वान किया।

अंग्रेजी शासन की निंदा: उन्होंने अपनी कविताओं में अंग्रेजी शासन की निंदा की और लोगों को गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए प्रेरित किया।

स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा: उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा दी और उन्हें अपने संघर्ष में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया।

उनकी कुछ कविताएँ जो स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित हैं:

रश्मि-रथी: इस कविता में उन्होंने भारत माता को रथ की सवारी करते हुए दिखाया है। यह कविता भारत की स्वतंत्रता के लिए एक प्रतीकात्मक चित्रण है।

कुरुक्षेत्र: इस महाकाव्य में उन्होंने महाभारत के युद्ध को एक राष्ट्रीय संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया है।

परशुराम की प्रतीक्षा: इस कविता में उन्होंने ब्राह्मण समाज को जागृत करने और देश की सेवा करने का आह्वान किया है।

रामधारी सिंह दिनकर की गद्य रचनाएँ

रामधारी सिंह दिनकर मुख्य रूप से एक कवि के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने गद्य साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी गद्य रचनाओं में निबंध और संस्मरण प्रमुख हैं।

प्रमुख गद्य कृतियाँ

मिट्टी की ओर: यह दिनकर का एक महत्वपूर्ण निबंध संग्रह है जिसमें उन्होंने समाज, संस्कृति और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है।

अर्धनारीश्वर: इस निबंध संग्रह में दिनकर ने समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके महत्व पर प्रकाश डाला है।

रेती के फूल: यह दिनकर के संस्मरण हैं जिनमें उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न अनुभवों को साझा किया है।

इन कृतियों में दिनकर ने अपनी गद्य शैली में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उनकी गद्य में कविता जैसी गहराई और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया गया है।

हरिवंश राय बच्चन के दिनकर पर विचार

हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के एक अन्य महान स्तंभ हैं। उन्होंने दिनकर के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया है। बच्चन का मानना था कि दिनकर ने हिंदी साहित्य को एक नई ऊँचाई प्रदान की है।

चार ज्ञानपीठ पुरस्कार: बच्चन का कहना था कि दिनकर को चार ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने चाहिए थे - कविता, गद्य, भाषा और हिंदी सेवा के लिए। यह उनकी रचनाओं की व्यापकता और प्रभाव को दर्शाता है।

राष्ट्रीय कवि: बच्चन ने दिनकर को राष्ट्र कवि की उपाधि दी। उन्होंने कहा कि दिनकर की कविताओं ने राष्ट्रीय चेतना को जगाया और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भाषा की महारत: बच्चन ने दिनकर की भाषा पर प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दिनकर ने हिंदी भाषा की समृद्धि और शक्ति को उजागर किया।

हरिवंश राय बच्चन और रामधारी सिंह दिनकर दोनों ही हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष थे। उनके विचारों और रचनाओं का आज भी अध्ययन किया जाता है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का दिनकर पर दृष्टिकोण

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक अन्य प्रमुख हिंदी साहित्यकार थे जिन्होंने दिनकर के काम की सराहना की है। द्विवेदी ने दिनकर की कविताओं में राष्ट्रीय भावना और सामाजिक चेतना की गहरी उपस्थिति देखी।

हिंदी भाषा के प्रति प्रेम: द्विवेदी ने दिनकर को हिंदी भाषा के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण वाला कवि माना। उन्होंने दिनकर की भाषा की शक्ति और प्रभावशीलता की प्रशंसा की।

राष्ट्रीय चेतना: द्विवेदी ने दिनकर की कविताओं में राष्ट्रीय चेतना की प्रबल उपस्थिति देखी। उन्होंने कहा कि दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और स्वाभिमान को जगाया।

समाजिक चेतना: द्विवेदी ने दिनकर की कविताओं में समाज के विभिन्न मुद्दों पर गंभीर चिंतन देखा। उन्होंने कहा कि दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया।

द्विवेदी और दिनकर दोनों ही हिंदी साहित्य के दिग्गज थे और उनके विचारों का आज भी अध्ययन किया जाता है।

रामधारी सिंह 'दिनकर' - महत्वपूर्ण जानकारी

विवरण

जानकारी

पूरा नाम

रामधारी सिंह 'दिनकर'

जन्म तिथि

23 सितंबर, 1908

जन्म स्थान

सिमरिया, बेगूसराय, बिहार, भारत

निधन तिथि

24 अप्रैल, 1974

शिक्षा

पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान

पेशा

शिक्षक, सरकारी अधिकारी, साहित्यकार

उपनाम

युग-चारण, काल के चारण

प्रमुख कृतियाँ

कुरुक्षेत्र, रश्मि-रथी, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा

पुरस्कार

ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण

योगदान

हिंदी साहित्य में राष्ट्रवाद, मानवतावाद और इतिहास को एक नई दिशा प्रदान की

दिनकर की कविता में प्रमुख शैलीगत प्रयोग

दिनकर की कविता में शैलीगत प्रयोगों का एक समृद्ध संग्रह देखने को मिलता है। उनकी कविता में राष्ट्रीयता, मानवतावाद और इतिहास को एक अद्वितीय शैली में पिरोया गया है।

दिनकर की कविता में प्रमुख शैलीगत प्रयोग इस प्रकार हैं:

ओजस्वी भाषा: दिनकर की भाषा में ओज और शक्ति का पुट होता है। उन्होंने अपनी कविताओं में तेजस्वी शब्दों और वाक्यांशों का प्रयोग कर पाठकों को प्रभावित किया है।

प्रतीकात्मकता: उन्होंने अपनी कविताओं में प्रतीकों का व्यापक उपयोग किया है। जैसे कि 'रश्मि-रथी' में भारत माता को रथ की सवारी करते हुए दिखाया गया है।

अलंकार: दिनकर ने अपनी कविताओं में विभिन्न प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है। जैसे कि उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि।

वर्णन: उन्होंने प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक घटनाओं और मानवीय भावनाओं का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है।

संवाद: कुछ कविताओं में उन्होंने पात्रों के बीच संवाद का प्रयोग किया है, जिससे कविता में गतिशीलता आती है।

शास्त्रीय छंद: दिनकर ने अपनी कई कविताओं में शास्त्रीय छंदों का प्रयोग किया है, जिससे उनकी कविता में संगीत की ध्वनि आती है।

आधुनिकता: दिनकर ने अपनी कविता में कुछ आधुनिक तत्वों को भी शामिल किया है। जैसे कि मुक्त छंद और प्रयोगात्मक भाषा।

दिनकर की कविता की शैलीगत विशेषताओं का कारण:

शास्त्रीय ज्ञान: संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी का गहरा ज्ञान होने के कारण दिनकर की भाषा में समृद्धि थी।

राष्ट्रीय भावना: राष्ट्रीयता और मानवतावाद की भावना ने उनकी कविता को एक नई ऊंचाई दी।

इतिहास का ज्ञान: इतिहास के गहन अध्ययन ने उन्हें अपनी कविताओं में ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को शामिल करने में सक्षम बनाया।

रामधारी सिंह 'दिनकर' की प्रमुख काव्य कृतियाँ

रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीयता, मानवतावाद और इतिहास को एक नई ऊँचाई प्रदान की। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

महाकाव्य

कुरुक्षेत्र: इस महाकाव्य में महाभारत के युद्ध को एक राष्ट्रीय संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

काव्य संग्रह

उर्वशी: एक प्रेम-काव्य जिसमें पुराणों की देवी उर्वशी को एक आधुनिक नारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

संस्कृति के चार अध्याय: इसमें संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है।

द्वंद्वगीत: इस संग्रह में जीवन के द्वंद्वों को कवि ने अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किया है।

धूपछाँह: जीवन के विभिन्न पक्षों पर विचार-विमर्श किया गया है।

बापू: महात्मा गांधी को समर्पित काव्य संग्रह।

अन्य काव्य कृतियाँ

1. रेणुका

2. हुंकार

3. रसवन्ती

4. सामधेनी

5. इतिहास के आँसू

6. धूप और धुआँ

7. नीम के पत्ते

8. दिल्ली

9. नील कुसुम

10. नये सुभाषित

11. सीपी और शंख

12. हारे को हरि नाम

13. प्रणभंग

14. सूरज का ब्याह

15. कविश्री

16. कोयला और कवित्व

17. मृत्तितिलक

दिनकर की इन कृतियों में उन्होंने राष्ट्रीयता, मानवतावाद, इतिहास, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार किया है। उनकी कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और युवा पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की विभिन्न रचनाएँ के कुछ अंश:

1. “सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।” - “सच है, विपत्ति जब आती है”

2. “समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।” - “समर शेष है”

3. “वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का;” - “कुरुक्षेत्र”

4. “हिमालय के आँगन में उसे, पहली किरण का चुम्बन मिले, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।” - “रश्मिरथी”

5. “वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है, थक कर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।” - “परशुराम की प्रतीक्षा”

6. “कुरुक्षेत्र के मैदान में, जो भी हुआ, वह सब सत्य है, परन्तु, यह भी सत्य है कि, युद्ध ही अंतिम सत्य नहीं है।” - “कुरुक्षेत्र”

7. “कलम, आज उनकी जय बोल, जो अग्निपरीक्षा से हो कर निकले और शोलों में तप कर भी, जो कुंदन के समान चमकते हैं।” - “कलम, आज उनकी जय बोल”

8. “वह कौन है, जो मृत्यु से डरता नहीं, जो मृत्यु को भी हँसते-हँसते गले लगाता है।” - “कुरुक्षेत्र”

9. “जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।” - “स्वदेश”

10. “आओ फिर से दिया जलाएँ, भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा, अंतर्मन का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ।” - “आओ फिर से दिया जलाएँ”

11. “रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव है, उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।” - “रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद”

12. “वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है, थक कर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।” - “परशुराम की प्रतीक्षा”

13. “किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी के हाथों में होता है।” - “कुरुक्षेत्र”

14. “कर्मवीर जो कर्म करते हैं, वे कभी हारते नहीं, वे सदा विजयी होते हैं।” - “कुरुक्षेत्र”

15. “जो लोग अपने देश के लिए मरते हैं, वे कभी नहीं मरते।” - “कुरुक्षेत्र”

दिनकर जी की रचनाएँ वीरता, राष्ट्रीयता और सामाजिक न्याय की भावना से ओतप्रोत हैं। उनकी कविताएँ और महाकाव्य भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

रामधारी सिंह दिनकर के निबंध: राष्ट्रवाद और समाज की प्रतिछाया

रामधारी सिंह दिनकर केवल एक महान कवि ही नहीं थे, बल्कि एक गंभीर विचारक और निबंधकार भी थे। उनके निबंधों में राष्ट्रवाद, समाज, संस्कृति और राजनीति जैसे गंभीर विषयों पर उनकी गहन समझ झलकती है।

दिनकर के निबंधों की प्रमुख विशेषताएं:

राष्ट्रवाद का उत्सव: दिनकर के निबंधों में राष्ट्रवाद की भावना का पुट स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने भारत की प्राचीन संस्कृति और गौरव को जीवंत शब्दों में उकेरा है।

समाज की आलोचनात्मक समीक्षा: दिनकर ने समाज की कुरीतियों और बुराइयों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता, अंधविश्वास और जातिवाद के खिलाफ अपनी कलम उठाई।

शैली की सरलता: दिनकर की निबंध शैली सरल और सहज है, जिससे उनके विचार पाठकों तक आसानी से पहुंचते हैं।

प्रासंगिकता: दिनकर के निबंध आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि उन्होंने उठाए गए मुद्दे आज भी समाज में मौजूद हैं।

दिनकर के कुछ महत्वपूर्ण निबंध:

भारतीय संस्कृति

राष्ट्रवाद का स्वरूप

समाज की चुनौतियाँ

शिक्षा का महत्व

दिनकर के निबंधों का अध्ययन हमें उनके व्यक्तित्व और विचारों के बारे में गहराई से जानने का अवसर प्रदान करता है। उनके निबंधों में राष्ट्रवाद, समाज, संस्कृति और शिक्षा जैसे विषयों पर उनके विचारों की झलक मिलती है।

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