श्रीनिवास रामानुजन: परिचय
श्रीनिवास रामानुजन इयंगर (22 दिसंबर 1887 – 26 अप्रैल 1920) भारत के उन महान गणितज्ञों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपने अल्पायु जीवन में भी गणित को एक नई दिशा दी। उन्हें अक्सर "भारत का गणितीय रत्न" कहा जाता है। औपचारिक शिक्षा की कमी, सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयाँ, और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद उनकी गणितीय प्रतिभा इतनी अद्भुत थी कि उन्होंने ऐसे सूत्र और प्रमेय दिए जिन्हें समझने और प्रमाणित करने में दुनिया के महानतम गणितज्ञों को भी दशकों लग गए।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड नामक छोटे से कस्बे में हुआ। उनके पिता श्री के. श्रीनिवास अय्यर एक साड़ी की दुकान में क्लर्क थे और माता कोमलातम्मल एक गृहणी थीं। परिवार आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न नहीं था लेकिन परंपरागत धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण में उनका पालन-पोषण हुआ।
बचपन में ही वे असाधारण रूप से बुद्धिमान और एकाग्रचित्त थे। उन्हें गणित और संख्याओं से विशेष लगाव था। उनकी माँ ने उन्हें भक्ति और धार्मिकता का संस्कार दिया जबकि पिता ने अनुशासन और मेहनत का।
बाल्यकाल की प्रतिभा
रामानुजन जब मात्र 10 वर्ष के थे, तभी उन्होंने गणित में ऐसी रुचि दिखाई कि उनके शिक्षक भी अचंभित हो जाते। साधारण अंकगणितीय सवालों को हल करने में वे अनोखी गति और समझ का परिचय देते थे।
कहते हैं कि विद्यालय में जब शिक्षक गणित पढ़ाते, तो रामानुजन उनके उत्तर आने से पहले ही पूरा समाधान कर देते। उनकी यह जिज्ञासा उन्हें किताबों की दुनिया में ले गई।
शिक्षा और स्वाध्याय
रामानुजन की औपचारिक शिक्षा अधिक सफल नहीं रही। वे पारंपरिक विषयों में अच्छे अंक नहीं ला पाते थे, लेकिन गणित में उनकी पकड़ अद्भुत थी। 16 वर्ष की आयु में उन्हें एक पुस्तक मिली – “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics” जिसे कैर नामक लेखक ने लिखा था। इस पुस्तक में हज़ारों सूत्र बिना प्रमाण के संकलित थे।
यहीं से उनकी गणितीय यात्रा ने एक नया मोड़ लिया। उन्होंने इन सूत्रों को समझना शुरू किया, फिर अपने अंतर्ज्ञान और गणना से नए-नए परिणाम खोजने लगे।
अवचेतन और गणितीय अंतर्ज्ञान
रामानुजन का गणितीय अंतर्ज्ञान विलक्षण था। वे अक्सर कहते थे कि देवी नामागिरी उन्हें सपनों में सूत्र दिखाती हैं। यह उनकी गहरी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। उनके लिए गणित सिर्फ विज्ञान नहीं बल्कि ईश्वर का स्वरूप था।
उनका प्रसिद्ध उद्धरण है: "An equation for me has no meaning, unless it expresses a thought of God." – “मेरे लिए कोई भी समीकरण तब तक अर्थपूर्ण नहीं है जब तक वह ईश्वर के विचार को व्यक्त न करे।”
संघर्ष और कठिनाइयाँ
युवावस्था में रामानुजन को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, औपचारिक शिक्षा अधूरी रह गई, और समाज से प्रोत्साहन नहीं मिला।
वे अक्सर अपने गणितीय शोध में इतने व्यस्त रहते कि नौकरी और पढ़ाई में असफल हो जाते। कॉलेज की पढ़ाई भी अधूरी रह गई क्योंकि वे केवल गणित में ही रुचि रखते थे।
मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में नौकरी
जीविका चलाने के लिए उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। यहाँ भी वे दिन-रात गणितीय सूत्र लिखते रहते। सहकर्मियों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कुछ ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे अपने काम को बड़े गणितज्ञों तक पहुँचाएँ।
गणितीय नोटबुक्स की शुरुआत
रामानुजन ने किशोरावस्था से ही अपनी खोजों को नोटबुक्स में लिखना शुरू किया। इन नोटबुक्स में हजारों सूत्र और परिणाम दर्ज हैं। इनका कोई औपचारिक प्रमाण नहीं होता था, लेकिन परिणाम इतने सटीक होते कि बाद में गणितज्ञों ने उन्हें प्रमाणित किया।
उनकी नोटबुक्स को आज भी “गणित का खजाना” कहा जाता है।
आर्थिक संघर्ष
रामानुजन के जीवन में धन की कमी हमेशा रही। कई बार उन्हें गणितीय किताबें खरीदने और लिखने के लिए साधन नहीं मिलते थे। बावजूद इसके, उन्होंने हार नहीं मानी।
उनका संघर्ष बताता है कि सच्ची प्रतिभा कठिन परिस्थितियों में भी दमकती है।
सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रभाव
भारतीय संस्कृति में गणित और ज्योतिष का गहरा संबंध है। प्राचीन भारत में गणित को न केवल विज्ञान बल्कि आध्यात्मिक अनुशासन का भी हिस्सा माना जाता था। रामानुजन इस परंपरा के प्रतीक थे।
वे मानते थे कि गणित ईश्वर के विचारों की भाषा है। उनकी गणितीय यात्रा एक तरह से भारतीय सांस्कृतिक विरासत का पुनर्जागरण थी।
व्यक्तिगत जीवन
14 जुलाई 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी अम्माल से हुआ। उस समय जानकी केवल 10 वर्ष की थीं, जो उस दौर की सामाजिक परंपरा को दर्शाता है।
जानकी अम्माल ने रामानुजन के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संघर्षों में उनका साथ दिया और उनकी प्रतिभा को समझने का प्रयास किया।
स्वास्थ्य समस्याएँ
कम उम्र से ही रामानुजन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे। पोषण की कमी, आर्थिक तंगी और लगातार मानसिक परिश्रम ने उनके स्वास्थ्य को प्रभावित किया। बाद में उन्हें तपेदिक जैसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया।
इसके बावजूद, वे अपने अंतिम समय तक गणित पर कार्य करते रहे।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
रामानुजन गहरे धार्मिक थे। उनका विश्वास था कि देवी नामागिरी उन्हें स्वप्न में गणितीय विचार देती हैं। यह दृष्टिकोण पश्चिमी वैज्ञानिक पद्धति से भिन्न था, लेकिन उनके परिणामों की सटीकता ने इसे और भी अद्भुत बना दिया।
प्रारंभिक मान्यता
शुरुआत में उनके शोध को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन धीरे-धीरे उनके आसपास के गणितज्ञ उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए। मद्रास के कुछ प्रोफेसरों ने उनके काम को देखा और उन्हें सलाह दी कि वे विदेश के विद्वानों से संपर्क करें।
नोटबुक्स की विशेषताएँ
रामानुजन की तीन मुख्य नोटबुक्स प्रसिद्ध हैं:
- नोटबुक 1: शुरुआती कार्य – अंकगणितीय फलन, अनंत श्रेणियाँ।
- नोटबुक 2: उन्नत गणित – एलिप्टिक फलन, हाइपरज्योमेट्रिक श्रृंखला।
- लॉस्ट नोटबुक: अंतिम वर्षों के कार्य, जिसमें मॉक थीटा फलन जैसे गहन परिणाम हैं।

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