जैसी करनी वैसी भरनी: कर्मों की 10 कहानियाँ
कहानी 1: दयालु और परोपकारी रमा
एक बार की बात है, एक गाँव में रमा नाम की एक लड़की रहती थी। रमा दयालु और परोपकारी स्वभाव की थी। वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद करती थी। एक दिन, रमा जंगल से लकड़ी इकट्ठा कर रही थी, तभी उसे एक बूढ़ी औरत दिखाई दी। बूढ़ी औरत थकी हुई और भूखी थी। रमा ने उसे अपने घर ले जाकर खाना और पानी दिया। बूढ़ी औरत रमा की दयालुता से बहुत प्रभावित हुई। उसने रमा को एक जादुई बीज दिया और कहा, "यह बीज तुम्हारी दयालुता का फल देगा। इसे अपने बगीचे में लगाओ और इसकी अच्छी देखभाल करो।"
रमा ने बूढ़ी औरत का धन्यवाद किया और बीज को अपने बगीचे में लगा दिया। रमा ने बीज की बहुत अच्छी देखभाल की। रोज सुबह, वह उसे पानी देती और उसकी मिट्टी को ढीला करती। कुछ ही दिनों में, बीज अंकुरित हो गया और एक सुंदर पौधा बन गया। पौधे पर खूबसूरत फूल खिले। रमा बहुत खुश थी।
कुछ दिनों बाद, रमा ने देखा कि पौधे पर एक फल लगा है। फल बहुत बड़ा और सुंदर था। रमा ने फल को तोड़ा और उसे अंदर ले गई। उसने फल को काटा और देखा कि उसके अंदर सोने के सिक्के भरे हुए हैं।
रमा बहुत खुश थी। उसे एहसास हुआ कि जैसी करनी वैसी भरनी। उसने अपनी दयालुता से दूसरों की मदद की और उसे बदले में फल मिला।
नैतिकता: जैसी करनी वैसी भरनी। हम जो कर्म करते हैं, उसका फल हमें जरूर मिलता है।
कहानी 2: लालच का फल (लघु कथा)
रामनगर नाम का एक छोटा सा गाँव था, जहाँ लोग सादगी से जीवन बिताते थे। वहीं गाँव के बीचों-बीच रमेश की एक किराने की दुकान थी। बाहर से देखने पर रमेश मुस्कराता था, पर अंदर से वह बहुत चालाक और लालची था।
जब भी कोई ग्राहक आता, वह चुपके से तौल में थोड़ा सामान कम कर देता और कहता,
"अरे भाई, माल महंगा हो गया है, थोड़ा बहुत तो चलता है!" ग्राहक कुछ कह नहीं पाते और चुपचाप चले जाते। रमेश हर दिन सोचता, "मैं सबसे ज़्यादा कमाई कर रहा हूँ। मैं सबसे होशियार हूँ!" लेकिन समय कभी एक जैसा नहीं रहता।
एक दिन गाँव में सुरेश नाम का एक नया दुकानदार आया। उसकी मुस्कान सच्ची थी और उसका दिल भी। वह कहता, "ईमानदारी से कमाया गया पैसा ही असली कमाई है।" सुरेश हर ग्राहक का स्वागत करता, सही तौल देता, और कभी झूठ नहीं बोलता।
धीरे-धीरे लोग रमेश की दुकान से मुँह मोड़ने लगे। रमेश की दुकान में अब सिर्फ मक्खियाँ भिनभिनाती थीं। उसका सामान धूल पकड़ने लगा, और उसकी कमाई दिन-ब-दिन घटती चली गई।
एक दिन रमेश अकेला दुकान में बैठा था, बहुत उदास और थका हुआ। उसे अपने लालच और धोखेबाज़ी पर पछतावा हुआ। वह सोचने लगा, "काश मैंने भी ईमानदारी से काम किया होता..."
नैतिकता: लालच और धोखा कभी भी ज्यादा दिन तक नहीं टिकते। जो जैसा करता है, वैसा ही फल उसे ज़रूर मिलता है।
कहानी 3: ईर्ष्यालु मोर और मेहनती चिड़िया
जंगल में एक खूबसूरत मोर रहता था। उसके पास रंगीन पंख थे, लेकिन वह बहुत ईर्ष्यालु था। वह हमेशा दूसरे पक्षियों की खूबियों से जलता था।
एक दिन, मोर ने एक छोटी सी चिड़िया को देखा जो बहुत मेहनत से घोंसला बना रही थी। मोर ने चिड़िया से पूछा, "तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? तुम्हारा घोंसला इतना छोटा और साधारण है।"
चिड़िया ने जवाब दिया, "मैं अपने बच्चों के लिए एक सुरक्षित घर बना रही हूं। भले ही मेरा घोंसला छोटा हो, लेकिन यह प्यार और मेहनत से बना है।"
मोर चिड़िया की बातों से और भी ज्यादा जल गया। उसने सोचा कि वह चिड़िया से भी ज्यादा खूबसूरत घोंसला बनाएगा। उसने जंगल से सबसे चमकदार पत्ते और फूल इकट्ठा किए। उसने घोंसला बनाने में जल्दबाजी की और उसे ठीक से मजबूत नहीं बनाया।
कुछ दिनों बाद, तेज हवा चली। मोर का घोंसला हवा में उड़ गया । मोर को बहुत दुख हुआ। उसे एहसास हुआ कि सिर्फ दिखावे से फायदा नहीं होता। मेहनत और लगन से किया गया काम ही सफल होता है।
नैतिकता: जैसी करनी वैसी भरनी। हमें दूसरों से जलने के बजाय मेहनत करनी चाहिए। ईर्ष्या से कभी कुछ हासिल नहीं होता।
कहानी 4: घमंड का अंजाम
जंगल में पिंकू और घीसू नाम के दो हिरण रहते थे। दोनों अच्छे दोस्त थे। पिंकू बहुत निडर था, जबकि घीसू थोड़ा संकोची और सतर्क। एक दिन दोनों जंगल में घूम रहे थे। हरियाली का आनंद लेते-लेते वो एक बड़े नीम के पेड़ के पास पहुंचे। वहाँ देखा कि एक भयानक शेर पेड़ के नीचे गहरी नींद में सो रहा था। घीसू की तो जैसे साँस अटक गई। उसने धीरे से पिंकू से कहा, “चल यार, यहाँ से चुपचाप निकलते हैं… ये शेर कभी भी जाग सकता है।”
लेकिन पिंकू तो अपने हिम्मत के घमंड में चूर था। वो बोला, “तू हमेशा डरता है घीसू! मैं तो किसी शेर-वेर से नहीं डरता। देख कैसे सोया है, जैसे कोई बिल्ली हो!” घीसू चुप रहा। उसे पता था कि ज्यादा बोलना बेकार है। लेकिन पिंकू को उसका चुप रहना अच्छा नहीं लगा। उसने समझा कि घीसू उसकी बहादुरी से जल रहा है।
गुस्से में पिंकू बोला, “अब देख, मैं क्या करता हूँ!” और वो सीधा शेर के पास गया… और उसके मुँह पर एक जोर की लात मार दी! शेर की नींद टूटी, और उसकी आँखों में आग सी जलने लगी। उसने एक ही झपट्टे में पिंकू पर हमला कर दिया। पलक झपकते ही… पिंकू का अंत हो गया।
ये देखकर घीसू के तो पैर कांपने लगे। लेकिन वो खुद को संभालते हुए बिजली की रफ्तार से भागा। बहुत दूर जाकर जब वो रुका, उसके मुँह से सिर्फ एक ही बात निकली—
"जैसी करनी, वैसी भरनी... ये तो बिलकुल सही कहा है!"
कहानी 5: मदद का फल
टिंकू और झुनझुन दो नन्हे खरगोश थे। दोनों एक ही खेत में रहते थे और बहुत अच्छे दोस्त थे। टिंकू थोड़ा चंचल और समझदार था, जबकि झुनझुन शांत और भोला था।
एक दिन खेत में तेज़ आंधी आई। चारों ओर धूल ही धूल फैल गई। उस दिन झुनझुन का छोटा भाई मिट्ठू खेत में कहीं खो गया। झुनझुन बहुत परेशान था। वह इधर-उधर दौड़ता रहा, लेकिन भाई नहीं मिला।
जब टिंकू को यह बात पता चली, तो उसने एक पल भी देर नहीं की। वो सीधे बगल के जंगल की ओर दौड़ा, जहाँ अक्सर छोटे जानवर भटक जाते थे। थोड़ी देर की खोजबीन के बाद, उसे मिट्ठू एक झाड़ी के पीछे डरा-सहमा मिला।
टिंकू ने मिट्ठू को कंधे पर बैठाया और सुरक्षित घर ले आया। झुनझुन की आँखें नम हो गईं। "टिंकू, तुमने मेरी दुनिया लौटा दी," उसने कहा।
समय बीतता गया। एक दिन टिंकू खेलते-खेलते एक फंदे में फँस गया, जो कुछ शिकारी खेत में लगाकर गए थे। वह छटपटाने लगा, लेकिन फंदा बहुत मज़बूत था। झुनझुन ने जब देखा कि टिंकू मुसीबत में है, तो बिलकुल नहीं घबराया। वह दौड़कर गाँव के बिल्लू हाथी को बुला लाया, जिसने अपने मजबूत सूंड से फंदा तोड़ा और टिंकू को आज़ाद किया।
टिंकू बहुत भावुक हो गया। "झुनझुन, तुमने मेरी जान बचा ली।" झुनझुन मुस्कराया और बोला — “भाई, जैसी करनी वैसी भरनी… तुमने मेरे भाई के लिए जो किया था, आज उसका बदला चुका पाया।”
नैतिकता: अच्छाई लौटकर जरूर आती है। जो दूसरों की मदद करता है, उसकी मदद भी वक़्त पर होती है।

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