रामचरितमानस के रचयिता: तुलसीदास (1511-1623)
गोस्वामी तुलसीदास, जिनका जन्म 1511 में, कुछ मान्यताओं के अनुसार बांदा के राजापुर, तो कुछ के अनुसार एटा के सोरी गांव में हुआ था। राम भक्ति की आग उनके बचपन से ही धधकती थी, और यही ज्वाला उनकी रचनाओं में सदियों से जगमगा रही है।
तुलसीदास जी का जीवन अनोखा था। जन्म के समय उनके 32 दाँत थे और ये माना जाता है कि उन्होंने 'राम' शब्द बोला था। कुछ समय उनके बचपन का नाम रामबोला भी रहा। किंतु भाग्य के फेर से उन्हें अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिला। परंतु, माता पार्वती ने उनकी रक्षा की, ऐसा माना जाता है। शिक्षा और ज्ञान की प्यास उन्हें काशी ले गई, जहाँ उन्होंने संस्कृत, वेद, पुराणों का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रतिभा और भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें "गोस्वामी" की उपाधि दी गई।
तुलसीदास जी का प्रेम सिर्फ भगवान राम के लिए ही नहीं था। उनकी विवाह रत्नावली से हुआ, पर कुछ समय बाद वो वैराग्य धारण कर संसारिक मोह त्याग दिए। उन्होंने अयोध्या, काशी, चित्रकूट जैसे तीर्थस्थलों की यात्राएँ की और राम कथा से जुड़े स्थानों को खोजा। उनकी लेखनी से 'विनय पत्रिका', 'गीतावली', 'कवितावली' जैसी अनेक रचनाएँ निकलीं, लेकिन उनकी चिरस्थायी कृति थी "रामचरितमानस"।
ब्रजभाषा की मिठास में डूबा "रामचरितमानस" सिर्फ महाकाव्य नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रामभक्तों के चरित्रों के माध्यम से तुलसीदास जी ने धर्म, कर्तव्य, प्रेम, त्याग जैसे मूल्यों को जीवंत किया। उनकी चौपाइयाँ आज भी लोगों के हृदय को छूती हैं और जीवन का मार्गदर्शन करती हैं।
राम की कहानी को जन-जन तक पहुंचाने वाला सफर: तुलसीदास की रचनाएँ और योगदान
रामचरितमानस के अलावा, तुलसीदास जी ने कई रचनाएँ कीं, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण हैं:
- हनुमान चालीसा: यह चालीसा संकटमोचन हनुमान की स्तुति है, जिसे आज भी लाखों लोग नियमित रूप से पढ़ते हैं।
- दोहावली: छोटे छंदों में लिखी यह रचना जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार प्रस्तुत करती है।
- विनय पत्रिका: भक्ति से ओत-पोत यह रचना ईश्वर से कृपा की याचना करती है।
- गीतावली: गीता के सार को सरल भाषा में प्रस्तुत करती है।
इन रचनाओं ने न केवल धर्म और दर्शन का ज्ञान फैलाया, बल्कि उन्होंने:
- हिंदी भाषा को समृद्ध किया: तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली और अवधी भाषा का प्रयोग किया, जिससे हिंदी को एक नई पहचान मिली।
- समाजिक सुधार का प्रयास किया: उन्होंने जाति-पाति भेदभाव का विरोध किया और समाज में समानता का संदेश दिया।
- रामलीला की परंपरा को मजबूत किया: रामलीला के आयोजन में उनकी सक्रिय भूमिका रही, जिससे आज भी रामकथा जीवंत हो उठती है।
तुलसीदास जी: कालजयी कवि और आदर्श
तुलसीदास जी सिर्फ एक कवि नहीं थे, वे संत, समाज सुधारक और आदर्श पुरुष थे। उनका जीवन धर्म के प्रति समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा और त्याग का उदाहरण है। उनकी रचनाएँ सदियों से लोगों को प्रेरित कर रही हैं। गोस्वामी तुलसीदास का नाम भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।
तुलसीदास: प्रेरणा जगाने वाली चौपाइयाँ
गोस्वामी तुलसीदास की अमर कृतियों ने न सिर्फ साहित्य जगत को समृद्ध किया, बल्कि जीवन के विभिन्न आयामों पर सारगर्भित संदेश दिए। आज भी उनकी अनेक चौपाइयाँ प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। आइए, कुछ ऐसी ही चिरस्थायी चौपाइयों को देखें:
भक्ति की शक्ति:
"हे राम रावण दुर्बल जानि के, लंका जियै नहिं कोइ। भरोसे रामबल के बलवानि मन, अति अभिमानी सोइ।।" (रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)
अर्थ: इस चौपाई में तुलसीदास जी रावण के अहंकार को उजागर करते हैं। राक्षस राजा रावण अपने बल को ही सब कुछ समझता है और श्रीराम को कमजोर मानता है। वह ये नहीं समझता कि असली ताकत तो राम के धर्म और न्याय के साथ रहने में है। इसलिए ही उसे हार निश्चित है।
कर्म और भाग्य:
"कर्महीन जन भजहिं न भगवाना। जोग मुनिराज तप करहिं बिबाना।।" (रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)
अर्थ: यह चौपाई कर्म की महत्ता को बताती है। तुलसीदास जी कहते हैं कि केवल ईश्वर की भक्ति या ध्यान करने से ही मोक्ष नहीं मिलता। कर्म से जुड़े रहना भी जरूरी है। भले ही वह कर्म ज्ञान के साथ किया गया हो या सिर्फ भक्ति के लिए हो।
साहस और धैर्य:
"कायर भयभीत दीन दुखी लघु जिय लघु करम कराही। सूर बिरुद बल धीरज धर्म सत्य पराक्रम जमाही।।" (दोहावली)
अर्थ: इस चौपाई में साहस और धैर्य के महत्व को बताया गया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि कायर और डरपोक व्यक्ति हमेशा छोटे-छोटे काम ही करते हैं, जबकि महान और वीर व्यक्ति साहस, धैर्य, धर्म, सत्य और पराक्रम से युक्त होते हैं।
दया और क्षमा:
"कबि जन बिचारि करन चहहिं, जग पर उपकार। पर दुःख सुख ब्यापार, नहिं देखहिं बेचार।। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण। बिनु दया नर पशु समान, तास जीवत मरत समान।।" (दोहावली)
अर्थ: ये दोहे दया और क्षमा के गुणों को आगे बढ़ाते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि कवि या विद्वान लोग जगत का भला करना चाहते हैं, परंतु वे दूसरों के सुख-दुख को गौर से नहीं देखते। लेकिन उन्होंने यह नहीं समझा कि दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है। जब तक शरीर में सांस चल रही है, दया का भाव बनाए रखना चाहिए। दया के बिना तो इंसान और पशु में कोई फर्क नहीं रहता।
सदाचार और मर्यादा:
"बिनु सत गुमानि नहिं कछु होइ। सत ही सब सुख कर, सत सब सोइ।।" (दोहावली)
अर्थ: यह दोहा सत्य के महत्व को बताता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि बिना सत्य के कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। सत्य ही सभी सुखों का कारण है और वही सब कुछ है। इस चौपाई का अर्थ यही नहीं है कि सिर्फ बोलचाल में सत्य का पालन करना जरूरी है, बल्कि विचारों, कर्मों और जीवन के हर पहलू में ईमानदारी रखना भी जरूरी है।
ये कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं। तुलसीदास जी की चौपाइयाँ जीवन के विभिन्न आयामों पर मार्गदर्शन करती हैं। उनकी रचनाओं का अध्ययन करना और उनका सार ग्रहण करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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